यूरो कप डायरी:इस बार की परीकथा का नाम है डेनमार्क, रूस को 4-1 से रौंदकर दिया फैंस को जश्न मनाने का मौकाजिसमें कोई परीकथा ही ना हो वो फ़ुटबॉल-टूर्नामेंट कैसा। इस बार की परीकथा का नाम है डेनमार्क। ये वो टीम है, जो बीते यूरो कप के लिए क्वालिफ़ाई भी नहीं कर पाई थी और उससे पहले वाले यूरो कप में ग्रुप स्टेज से बाहर हो गई थी। ये वो टीम भी है, जिसमें 10 नम्बर की जर्सी पहनने वाला उनका सबसे महत्वपूर्ण खिलाड़ी क्रिस्तियान एरिकसन महज़ नौ दिन पहले खेल के बीच में ग़श खाकर गिर पड़ा था, उसके दिल की धड़कन रुक गई थी, बीच मैदान में उसे इमर्जेंसी सीपीआर ट्रीटमेंट दिया गया था।
जब कुछ देर बाद उसने अस्पताल में आँखें खोलीं तो समूचे डेनमार्क ने केवल इसी बात का जश्न मनाया कि उनका अटैकिंग मिडफ़ील्डर अभी जीवित है। यूएफ़ा ने डेनमार्क की टीम को मैच पूरा करने की हिदायत दी और वो टूटे मन से खेलने उतरे और हारे। हार के बावजूद दुनिया में डेनमार्क के खिलाड़ियों की टीम-भावना और उनके कप्तान सिमोन कियार की नेतृत्वशीलता, प्रत्युत्पन्नमति और धैर्य की सराहना की जा रही थी, उन्हें वास्तविक विजेता बताया जा रहा था। लेकिन सब जानते हैं कि सांत्वना पुरस्कारों से एक क़िस्म का संतोष भले मिलता हो, वह पराजय का ही बोध कराते हैं।
जब कोई आपसे कहता है कि वो जीत गए तो क्या, सच्ची सफलता तो तुमने पाई है तो वो प्रकारान्तर से आपको यह याद दिला रहा होता है कि आप हार गए हैं। लेकिन इसके महज़ एक हफ्ता दो दिन बाद डेनमार्क के खिलाड़ी कोपेनहेगन में अपने उन्मादी समर्थकों के सम्मुख उत्सव मना रहे थे और यह प्रोत्साहन पुरस्कार का नहीं एक ज़ोरदार जीत का जश्न था। डेनमार्क ने रूस को 4-1 से रौंद दिया था और टूर्नामेंट के आगामी राउंड के लिए जगह बना ली थी। ये वो जगह थी, जिस पर अपना दावा ठोंकने के लिए आज दसियों टीमें जी-जान लगाए हुए हैं।
डेनमार्क ने जिस ब्रांड का फ़ुटबॉल खेला और उनके खिलाड़ियों ने जिस शैली के गोल किए, वह सच्ची फ़ुटबॉल-भावना की तस्वीर थी। वैसे गोल फ़ुटबॉल के सितारा खिलाड़ियों ने किए होते तो उनकी पी.आर. एजेंसियाँ आज सोशल मीडिया पर कोलाहल मचा रही होतीं। घरेलू दर्शकों से खचाखच भरे स्टेडियम में यह कर गुज़रना स्कैंडिनेविया के बेहलचल समुद्रतटीय इलाक़ों में एक मिनिमलिस्ट क़िस्म का जीवन बिताने वाले इन खिलाड़ियों के लिए कितना बड़ा लमहा रहा होगा, इसकी कल्पना करना कठिन है। टीम में सम्मिलित अनेक युवा खिलाड़ियों के लिए यह स्वप्नवत था
ऐसे ही दृश्यों के लिए एदुआर्दो गैलियानो ने फ़ुटबॉल को एक ग्रेट पैगन मास की संज्ञा दी थी, अपने उत्कर्ष के क्षणों में यह खेल सामूहिक आवेग का एक उत्सव बन जाता है, जिसमें निष्ठा, हर्षातिरेक, गर्व और संतोष की भावनाएँ घुली-मिली होती हैं। डेनमार्क के लिए पहला गोल उस खिलाड़ी (मिकेल दाम्सगार्द) ने किया, जिसे क्रिस्तियान एरिकसन के स्थान पर टीम में शामिल किया गया था। क्या ही निहायत ख़ूबसूरत गोल था वह। दाम्सगार्द इतालवी लीग में सैम्पदोरिया के लिए खेलते हैं। इटली में ही अतालान्ता के लिए खेलने वाले योकिम माहेले ने चौथा गोल किया। जर्मन लीग की तेज़तर्रार टीम आरबी लाइपज़ीग के लिए खेलने वाले यूसुफ़ पोल्सेन को दूसरे गोल के लिए गोलची की ग़लती का लाभ मिला। फ़ुटबॉल की दुनिया के उभरते हुए सितारे आंद्रेस क्रिस्तेन्सन के थंडरबोल्ट गोल ने लंदन में बैठे फ़ुटबॉल-प्रशंसकों में हर्ष की लहर दौड़ा दी होगी।
क्रिस्तेन्सेन लंदन के क्लब चेल्सी के लिए खेलते हैं और महज़ एक महीना पहले चेल्सी की चैम्पियंस लीग विजेता टीम का वे हिस्सा थे। तब वे बेंच से उठकर आए थे लेकिन अपने खेल से सबको प्रभावित किया था, किंतु डेनमार्क की स्टार्टिंग-इलेवन का वो अटूट हिस्सा हैं। अलबत्ता वो सेंटर बैक पोज़िशन में खेलते हैं, लेकिन चेल्सी के प्रशंसक उनके खेल से इतने उत्साहित हैं कि विनोद-भाव से उन्हें अपना नया नम्बर 9 बतला रहे हैं। नम्बर 9 की जर्सी फ़ुटबॉल में सेंटर-फ़ॉरवर्ड के द्वारा पहनी जाती है। इस आकांक्षा के पीछे छिपी इस कल्पना को आप सहज ही परख सकते हैं कि कदाचित् चेल्सी के प्रशंसक अपने सेंटर फ़ॉरवर्ड टीमो वेर्नर से इतने ख़ुश नहीं हैं। बार्सीलोना के लिए खेलने वाले मार्टिन ब्रेथवेट ने अलबत्ता कोई गोल नहीं किया, लेकिन खेल के दौरान वो निरंतर अपनी मौजूदगी दर्ज कराते रहे और कुछ ख़ूबसूरत मूव उन्होंने बनाए।
डैनिश प्रशंसकों के उत्साह का यह आलम था कि रूसी खिलाड़ी इससे हतप्रभ रह गए। उनके गोलची मात्वेई सफ़ोनफ़ ने कहा, उनके एक खिलाड़ी ने महज़ एक पास ही कम्प्लीट किया था कि समूचा स्टेडियम झूम उठा, मानो उन्होंने कोई गोल कर दिया है। मात्वेई की बात में आगे जोड़ते हुए कहा जा सकता है कि अलबत्ता डेनमार्क ने चार गोल ज़रूर किए, लेकिन जश्न ऐसे मनाया, जैसे टूर्नामेंट जीत लिया हो।
फ़ुटबॉल की दुनिया में जो टॉप-टीम्स नहीं होती हैं और टूर्नामेंट-फ़ेवरेट्स नहीं मानी जाती हैं, वो ऐसी जीतों में ही अपना सर्वस्व देखती हैं। बीती शाम डेनमार्क के दर्शकों ने अपनी विजेता टीम को भावभीनी विदाई दी, क्योंकि इसके बाद अब यह टीम कोपेनहेगन के पार्केन स्टेडियम में नहीं खेलेगी। यूएफ़ा ने कोपेनहेगन को चार मैचों की ही मेज़बानी दी थी, जिनमें तीन डेनमार्क के थे।
फ़ैन्स के द्वारा अपने खिलाड़ियों को दिया जाने वाला वैसा ट्रिब्यूट फ़ुटबॉल के उन दृश्यों में से है, जो बीते डेढ़ेक सालों से महामारी के कारण कम ही दिखलाई दिए थे। बहुतेरे मुक़ाबले ख़ाली स्टेडियम में खेले जा रहे थे। इस यूरो कप में स्कैंडिनेवियाई देशों के घरू दर्शकों ने जैसा उत्साह दिखलाया है, उसमें इस बात का संकेत भी निहित है कि शायद अब दुनिया महामारी की गिरफ़्त से बाहर निकलकर पुराने दिनों की ओर वापसी कर रही है- जिनमें सामूहिक सन्निधि के वैसे उत्सव सहज घटित हो सकते हैं। और फ़ुटबॉल के सिवा और कौन-सी परिघटना इसे यों रूपायित कर सकती थी? हमारे हारे, हताश, हतभागे संसार को डेनमार्क जैसी परीकथाओं की सख़्त ज़रूरत है।