मिसिंग चिंटू जी:जब पहली बार ऋषि कपूर को महसूस हुआ उनके पास अमिताभ बच्चन से ज्यादा स्कोप थाडायरेक्टर उमेश शुक्ला और राइटर सौम्य जोशी ने बताया ऋषि कैसे इन्वॉल्व हुए थे
ऋषि कपूर और चैलेंजिंग रोल करना चाहते थे, बोलते थे मेरे लिए कुछ नया लिखो
अमिताभ और ऋषि कपूर, एक एक्शन हीरो दूसरा रोमांटिक हीरो। दोनों का दौर लगभग साथ साथ चला, दोनों ने साथ-साथ काम भी किया। ‘नसीब’ का गाना ‘चल चल मेरे भाई’ हो या फिर ‘कुली’ का सॉन्ग ‘लंबूजी लंबूजी’ ये दोनों जब भी स्क्रीन पर साथ-साथ आते थे तब दर्शकों से दोगुना प्यार पाते थे।
ऋषि कपूर एक एक्टर के तौर पर अपनी दूसरी पारी में अपने किरदारों के प्रति बहुत ही सचेत हो गए थे। वो किरदार की मनोस्थिति में जाकर उसे प्रकट करने की कोशिश में रहते थे। वो चाहते थे कि उन्हें अभी बहुत ही डेप्थ वाले किरदार करना हैं। ऋषि कपूर की पहली पुण्यतिथि पर फिल्म के राइटर डायरेक्टर ने शेयर किए अपने अनुभव।
अमिताभ के साथ काम पर कही थी ये बात
अपनी किताब ‘खुल्लम खुल्ला’ में ऋषि कपूर ने बेझिझक बताया है कि वो दौर ही एक्शन फिल्मों का था, अमिताभ के लिए ही खास स्क्रिप्ट लिखी जाती थी। इसलिए जिन फिल्मों में अमिताभ हों उन में दूसरे कलाकारों को ज्यादा अहमियत नहीं मिलती थी। यही कारण था जिसके चलते ऋषि ने ‘कभी कभी’ में काम करने से साफ मना कर दिया था। वो तो यश चोपड़ा ने शशि कपूर को दरम्यान होने को कहा और तब जाकर ऋषि और अमिताभ पहली बार ऐसी फिल्म में साथ आए जिसमें दोनों के रोमांटिक किरदार थे।
अपने एक्टिंग करियर के उत्तरार्ध में अमिताभ और ऋषि दोनों ने अपनी स्थापित इमेज को तोड़ दिया और कई यादगार रोल निभाए। और इसी दौर में 27 साल बाद पहली बार दोनों स्क्रीन पर साथ आए वो फिल्म थी ‘102 नॉट आउट’। इसी नाम के गुजराती प्ले पर बनी ये ऐसी फिल्म थी जहां ऋषि कपूर को शायद लगा था कि उन के किरदार में अमिताभ से भी ज्यादा स्कोप है। 102 साल के दत्तात्रेय वखारिया के किरदार में अमिताभ वैसे ही जैसे वो पहले से हैं पर जो किरदार बदलता है, यानी कि जिस किरदार में परिवर्तन आता है वो है उन के 75 साल के बेटे बाबूलाल का। जैसे-जैसे फिल्म आगे बढ़ती है, 102 साल के पिता अपने 75 साल के बेटे का जिंदगी जीने का अंदाज बदल देते हैं। और बाबूलाल रूप में इस बदलाव को ऋषि कपूर ने बहुत बखूबी दिखाया था।
पहली बार वर्कशॉप की और कहा अब हर फिल्म में करूंगा
‘102 नॉट आउट’ के डायरेक्टर उमेश शुक्ला ने ‘दैनिक भास्कर’ से बातचीत में कहा कि जब मैंने और फिल्म के राइटर सौम्य जोशी ने उनको पहली बार फिल्म की स्टोरी बताई तो वे बहुत ही रोमांचित हो उठे थे और सिर्फ दस मिनट में बोल दिया था कि हां मैं ये फिल्म करूंगा। फिल्म में सीधा शूटिंग करने से पहले वर्कशॉप करने का तय हुआ। ये सुनकर ऋषि ने पहले तो इनकार कर के बोल दिया कि इतने सालों में हम तो सीधा शूटिंग शुरू करते हैं, ऐसी वर्कशॉप कभी नहीं की। फिर उन्हें बताया गया कि अमिताभ भी वर्कशॉप के लिए तैयार हैं। अमिताभ के लिए उनके मन में इतनी रिस्पेक्ट थी कि उन्होंने तुरंत हां कर दी।
वर्कशॉप शुरू हुई तो पहले रीडिंग सेशन्स हुए। रीडिंग में अमिताभ अपना किरदार खुद पढ़ते थे जबकि ऋषि का किरदार कभी मैं खुद या सौम्य पढ़ते थे। बाद में ऋषि जी भी इसे इंजॉय करने लगे और उन्होंने अपना किरदार खुद पढ़ना शुरू कर दिया। बाद में तो उन्हें इतना मजा आने लगा कि वो बोलते थे कि ये बहुत अच्छी प्रोसेस है, अब से मैं हर फिल्म में ये करूंगा ताकि शूटिंग के वक्त ज्यादा सवाल ही न आएं।राइटर सौम्य से बन गया था अनोखा रिश्ता
ओरिजिनल गुजराती ड्रामा और उसका फिल्मी संस्करण दोनों लिखने वाले राइटर सौम्य जोशी ‘दैनिक भास्कर’ के साथ बातचीत में याद करते हैं कि वो जब पहली बार ऋषि कपूर के साथ स्क्रिप्ट रीडिंग के लिए बैठे तब उनकी आंखों में एक चमक आ गई थी, वो बोल पड़े थे, ‘यार बहुत कमाल का सब्जेक्ट है, और इसमें ये कॉमेडी कैसे ला पाए हो। कुछ सीन पढ़ने के बाद ऋषि ने सौम्य को बोला था- ‘यार, आप पठन भी बहुत अच्छा कर लेते हो’ बस उसी वक्त से उनके साथ एक अनोखा रिश्ता शुरू हुआ था।