कुंडली बॉर्डर:हाईवे पर पैदल चलते काफिलों का शोर थमा, ट्रैक्टर-ट्रालियों की जगह ले चुकी बांस-घास की झोपड़ियांगाड़ियों में ड्यूटी के अनुसार पहुंच रहे किसान, अब गांव अनुसार बन रहे ठिकाने
गेहूं उठान सीजन और किसान नेताओं की दूसरे राज्यों में चल रही किसान पंचायतों के बीच बॉर्डर पर नजारा बदल चुका है। हाईवे पर 8 से 10 हजार की संख्या में सटकर खड़े ट्रैक्टर-ट्राॅलियों की जगह बांस-घास की झोपड़ियां बन चुकी हैं।
सड़कों पर पैदल व ट्रैक्टरों में किसानों के झंडे लेकर नारेबाजी करते निकलते काफिलों की जगह सन्नाटा पसरा है। सुबह के समय थोड़ी हलचल दिखती है। तपन बढ़ते ही हाईवे खाली हो जाता है। पुलिस ने बढ़ती धूप को देखते हुए वाहनों को डायवर्ट करने के लिए केएमपी-केजीपी पुल के नीचे ही नाका लगाया है। यहीं से वाहनों को केजीपी व केएमपी पर चढ़ाया जा रहा है।
बोतल बंद पानी कम, टंकी लगाई
आंदोलन के शुरुआती महीनों में पेयजल के लिए यहां बंद बोतलों में खूब पानी सप्लाई होता था। अब राई एजुकेशन सिटी के सामने ऊंची मचान बनाकर टंकियां रखी हैं और हाईवे पर पाइप दबाकर जगह-जगह टोंटी कनेक्शन कर दिए हैं।
ठंडे पानी के लिए आरओ कूलर भी लगाए हैं। कुरुक्षेत्र के हथीरा गांव से भी किसानों ने अपनी झोपड़ी नुमा ठिकाना बनाया है। किसान धर्मपाल, बलबीर, राजसिंह ने बताया कि किसान एक सप्ताह ठहरते हैं और फिर दूसरे आते हैं। कई किसान लगातार रह रहे हैं। एक-दूसरे के गांवों के कार्यों में मिलकर सहयोग दे रहे हैं।
अपनी-अपनी झोपड़ियों में खाना
आंदोलन में पहले कदम-कदम पर लंगर सेवा, मिठाई व अन्य पकवान खिलाने की सेवा चल रही थी। अब खाप व अन्य क्षेत्र के किसानों ने अपने-अपने परिसर भी तय कर लिए हैं। धार्मिक व सामाजिक संस्थाओं के कुछ जगह लंगर चल रहे हैं, लेकिन ज्यादातर जगह किसान अपने बनाए परिसरों में सुबह-शाम भोजन बनाते हैं।
पंजाब से पैदल आए चाची-भतीजा
पंजाब से किसान ट्रैक्टर, गाड़ियों के अलावा बाइक, साइकिल और पैदल भी पहुंच रहे हैं। रविवार को गुरदासपुर से पैदल चलते हुए लवप्रीत सिंह अपनी चाची मंजीत कौर के साथ आंदोलन स्थल पर पहुंचे। उन्होंने 11 दिन में सफर तय किया। उन्होंने बताया कि अगले कई दिन वे धरने पर रहेंगे।
भाकियू क्रांतिकारी पदाधिकारी कश्मीर सिंह, मुख्तयार सिंह, महेंद्र सिंह खेरा ने इनका फूल मालाएं पहनाकर स्वागत किया। वहीं, अमृतसर के गाेंदवाल गांव के किसानों ने अपनी झोपड़ी बनाकर खास किलोमीटर प्लेट बनवाकर ‘गाेंदवाल जीरो किलोमीटर’ लिखवाया है। किसानों का कहना है कि यहां भी किसानों में गांव जैसा माहौल है।