आज से कान चीरा संस्कार:जोगियों का जोग, 40 दिन दर्द के साथ एकांत की साधना में तप कर बनेंगे योगीश्री बाबा मस्तनाथ अस्थल बोहर मठ में आज औघड़ जन को दिया जाएगा कान चीरा संस्कार, दीक्षा के सबसे कठोर नियम में है ये शुमार
एकांत और दर्द के बीच 40 दिन की कठोर साधना से गुजरने के बाद नाथ संप्रदाय में साधक योगी बनते हैं। इस आध्यात्मिक संप्रदाय में पहले औघड़ फिर योगी बनाने की परंपरा है। बाबा मस्तनाथ अस्थल बोहर मठ नाथ संप्रदाय का जाग्रत शक्तिपीठ है। इस बार यहां वार्षिक मेले के दो दिन बाद से होली तक कान चीरा संस्कार करके योगी बनाने का विधान पूरा किया जा रहा है। शुक्रवार को सुबह 10 बजे अस्थल बोहर मठ में दो औघड़ जन को कान चीरा संस्कार देकर योगी की साधना के लिए एकांतवास में भेेजेंगे।
ऐसे चलती है कान चीरा संस्कार की साधना
नाथ सिद्धों की दी हुई व्यवस्था पर पहले औघड़ जन को वार्षिक मेले के तीसरे दिन नवमी को गद्दी में विराजमान महंत योगी से दीक्षा की अनुमति लेनी होती है। इसके बाद कान चीरा संस्कार कर कान में कुंडल डाल दिया जाता है। कान चीरा संस्कार बिल्कुल गुप्त प्रक्रिया है। इस दौरान साधक व गुरु के अलावा और किसी को भी उस एकांत वास में जाने की अनुमति नहीं होती है। यह साधना 40 दिन तक चलती है। इस दौरान साधक को बाबा मस्तनाथ व गुरु गोरखनाथ महाराज के नाम-मंत्र का निरंतर जप करना होता है। गुरु ही साधक की साधना के क्रम व जरूरतों का पूरा ख्याल रखते हैं।
विश्व में नाथ संप्रदाय के 5 प्रमुख सेंटर
विश्व में नाथ संप्रदाय के 5 प्रमुख रिसर्च सेंटर हैं। यहां बाबा गोरखनाथ की सभी 28 ध्यान विधियों पर करीब 500 योगी अनुसंधान में लगे हुए हैं। डॉ. योगी विलासनाथ ने बताया कि योगियों का मकसद व्यावहारिक जीवन जीते हुए आमजन को आध्यात्मिक उत्कर्ष तक पहुंचाना है। इस अभियान का केंद्र अस्थल बोहर स्थित सिद्ध शिरोमणि बाबा मस्तनाथ मठ है। इसे नाथ संप्रदाय के आई पंथ का जाग्रत शक्ति पीठ का दर्जा प्राप्त है। यहां तपस्या-तितिक्षा, धूना, जल व वायु आदि की अति कठोर साधना-परीक्षा से साधकों का व्यक्तित्व निर्मित किया जाता है। ताकि विकार रहित होकर उनका अंतर्मन निर्मल हो सके। यहां से कान चीरा संस्कार से दीक्षित योगी देश-दुनिया में ज्ञान व जन कल्याण की अलख जगा रहे हैं।
गुरु मत्स्येंद्र नाथ के दौर की है परंपरा
गुरु मत्स्येंद्र नाथ ने आदिनाथ से नाथ का स्वरूप देने को कहा था। तब भगवान शिव ने अपने त्रिशूल से उनके कान मे चीरा लगाकर कुंडल पहना दिया। तब यह नाथ संप्रदाय में कान में चीरा लगाकर दीक्षित करने की परंपरा चली आ रही है। इसलिए कान चीरा के बाद ही कोई पूर्ण संन्यासी बनता है।