2020 में ट्रैवल टेक स्टार्टअप शुरू किया, दो महीने बाद लॉकडाउन लगा; नवंबर में दोबारा शुरू किया काम, 5 महीने में 2 करोड़ का बिजनेसमध्य प्रदेश और राजस्थान के रहने वाले दो दोस्तों ने पंजाब में पढ़ाई के बाद शुरू किया था स्टार्टअप
लॉकडाउन के सात महीनों में गूगल प्ले स्टोर पर ऐप की 1800 रु. फीस भरने तक के पैसे नहीं बचे थे
आज की कहानी है दो दोस्तों की। जो इंजीनियरिंग की पढ़ाई के दौरान जूनियर-सीनियर थे, लेकिन कॉलेज के बाद जब स्टार्टअप शुरू किया तो बराबर के हिस्सेदार बने। मूलतः मध्य प्रदेश के भोपाल से ताल्लुक रखने वाले 28 साल के शाहवर हसन और राजस्थान के सीकर के दीपक धायल ने पंजाब की लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी से इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की। जनवरी 2020 में दोनों ने मिलकर ‘किंग हिल्स’ नाम से ट्रैवल टेक स्टार्टअप की शुरुआत की, लेकिन दो महीने बाद ही लॉकडाउन लग गया। तब तक वे महज डेढ़ लाख रुपए का बिजनेस ही कर पाए थे। इसके बाद सात महीनों तक उन्होंने अपने बिजनेस को बढ़ाने पर काफी रिसर्च की। इस बीच उनकी सेविंग्स भी खत्म हो गई। नवंबर 2020 में दोबारा बिजनेस की शुरुआत की। पहले तो घाटा उठाया, लेकिन अब वो इन पांच महीनों में भारत के तमाम टूरिस्ट डेस्टिनेशन के अलावा मालदीव्स और दुबई तक 3500 से अधिक लोगों को ट्रैवल करवा चुके हैं और 2 करोड़ रुपए का बिजनेस भी कर चुके हैं।
गोल्फ कार्ट की मैन्युफैक्चरिंग से की शुरुआत
शाहवर ने साल 2015 में अपनी पढ़ाई पूरी कर ली थी, उस वक्त दीपक पढ़ाई कर रहे थे। दोनों को जॉब करने में कोई दिलचस्पी नहीं थी, क्योंकि उनका मानना था कि वो एक सीट पर बैठकर सुबह 10 से 5 की नौकरी नहीं कर सकते। लिहाजा, दोनों ने साथ मिलकर गोल्फ कार्ट की मैन्युफैक्चरिंग कर उसे रेंट पर देने का काम शुरू किया।
शाहवर बताते हैं, ‘हम गोल्फ कार्ट की मैन्युफैक्चरिंग करके उसे रेंट पर देते थे। करतारपुर कॉरिडोर के लिए हमने मिनिस्ट्री ऑफ होम को भी रेंट पर गोल्फ कार्ट दी हुई है। इसके अलावा कई बड़े-बड़े कैंपस में भी हमने गोल्फ कार्ट दी है। इस बिजनेस को करते हुए हमारे पास हॉलीडे पैकेज की इंक्वायरी आती थी। तो हमने सोचा कि चलो, ट्राई करते हैं। फिर सोचा कि देश में कई लोग ये काम कर रहे हैं तो हम इसमें अलग क्या करें। इसे लेकर हमने काफी विचार और रिसर्च की। हमने ग्रुप डिपार्चर पर फोकस किया, क्योंकि ये पॉकेट फ्रेंडली होते हैं और अच्छी सुविधाएं मिलती हैं। इसमें कंपनी के ट्रैवल मैनेजर, कंसल्टेंट टूरिस्ट के साथ जाते हैं। हमने देखा कि छोटे शहरों से ग्रुप डिपार्चर नहीं होते थे, कंपनियां टूरिस्ट को दिल्ली या मुम्बई बुलाकर वहां से डिपार्चर करती थीं। इसलिए हमने तय किया कि टूरिस्ट के शहर से ही डिपार्चर करेंगे और यहीं पर वापसी होगी। इसके अलावा हमने कपल स्पेशल के लिए अलग ग्रुप्स बनाए, फैमिली के लिए अलग और बैचलर्स के लिए अलग।’
ट्रैवलिंग को टेक्नोलॉजी से जोड़ा
दीपक बताते हैं, ‘3 जनवरी 2020 को इस बिजनेस की शुरुआत की। हमने ट्रैवलिंग को टेक्नोलॉजी से जोड़ा, ताकि जब कोई घूमने निकले तो उसके पैरेंट्स, रिलेटिव्स या दोस्त उसकी सेफ्टी और सिक्योरिटी को लेकर निश्विंत रहें। इसके लिए हमने अपने ऐप पर कुछ फीचर्स दिए हैं, जिससे आप उन्हें ट्रैक या मॉनिटर भी कर सकते हैं।’
ऐप के फीचर के बारे में दीपक बताते हैं, ‘जब आप ऐप के जरिए कोई ट्रिप बुक करते हैं तो इसकी जानकारी ऑपरेशन टीम को जाती है, फिर आपको ट्रैवल मैनेजर असाइन होता है। यह ग्रुप की संख्या और जरूरत के मुताबिक वर्चुअल और फिजिकल दोनों मोड में उपलब्ध होता है। यह आपकी पैकिंग में मदद कराता है। मसलन, क्या रखना है, क्या नहीं रखना है। आपको जो गाड़ी या होटल अलॉट होता है वो भी ऐप पर ही दिखेगा। इसके साथ ही हर टूरिस्ट को एक शेयर कोड अलॉट होता है, इसे आप अपनी फैमिली से शेयर करेंगे तो वो आपको इसी ऐप के जरिए आपकी लोकेशन मॉनिटर कर सकेंगे।’
बिजनेस शुरू होने के दो महीने बाद ही लग गया था लॉकडाउन
शाहवर बताते हैं, ‘जनवरी 2020 में हमने एक लाख रुपए की लागत से बिजनेस शुरू किया। यह पैसा ऐप बनवाने में खर्च हुआ था। जब हमने बिजनेस की शुरुआत की तो दो महीनों में बमुश्किल डेढ़ लाख रुपए का बिजनेस ही किया था। इस बीच लॉकडाउन की घोषणा हो गई और पूरा बिजनेस ठप हो गया। अप्रैल और इससे आगे की सभी बुकिंग कैंसिल की और कस्टमर को 100 प्रतिशत रिफंड देना पड़ा। 7 महीने तक जीरो बिजनेस रहा। हालांकि इस टाइम में हमने अपने स्टार्टअप को और बेहतर बनाने के तमाम आइडियाज पर काम किया। इन सात महीनों में हमारी सारी सेविंग्स खत्म हाे गई थी। उस वक्त हमारे पास ऐप के लिए गूगल प्ले स्टोर की फीस (1800 रुपए) भरने तक के लिए पैसे नहीं बचे थे। इस बीच घरवालों ने कहा कि ट्रैवल इंडस्ट्री में अब अगले तीन-चार सालों तक कोई स्कोप नहीं है, इसलिए कुछ और करो या नौकरी करो, लेकिन मैं इसी बिजनेस को आगे बढ़ाना चाहता था।’
ट्रैवलिंग को टेक्नोलॉजी से जोड़ा
दीपक बताते हैं, ‘3 जनवरी 2020 को इस बिजनेस की शुरुआत की। हमने ट्रैवलिंग को टेक्नोलॉजी से जोड़ा, ताकि जब कोई घूमने निकले तो उसके पैरेंट्स, रिलेटिव्स या दोस्त उसकी सेफ्टी और सिक्योरिटी को लेकर निश्विंत रहें। इसके लिए हमने अपने ऐप पर कुछ फीचर्स दिए हैं, जिससे आप उन्हें ट्रैक या मॉनिटर भी कर सकते हैं।’
ऐप के फीचर के बारे में दीपक बताते हैं, ‘जब आप ऐप के जरिए कोई ट्रिप बुक करते हैं तो इसकी जानकारी ऑपरेशन टीम को जाती है, फिर आपको ट्रैवल मैनेजर असाइन होता है। यह ग्रुप की संख्या और जरूरत के मुताबिक वर्चुअल और फिजिकल दोनों मोड में उपलब्ध होता है। यह आपकी पैकिंग में मदद कराता है। मसलन, क्या रखना है, क्या नहीं रखना है। आपको जो गाड़ी या होटल अलॉट होता है वो भी ऐप पर ही दिखेगा। इसके साथ ही हर टूरिस्ट को एक शेयर कोड अलॉट होता है, इसे आप अपनी फैमिली से शेयर करेंगे तो वो आपको इसी ऐप के जरिए आपकी लोकेशन मॉनिटर कर सकेंगे।’
बिजनेस शुरू होने के दो महीने बाद ही लग गया था लॉकडाउन
शाहवर बताते हैं, ‘जनवरी 2020 में हमने एक लाख रुपए की लागत से बिजनेस शुरू किया। यह पैसा ऐप बनवाने में खर्च हुआ था। जब हमने बिजनेस की शुरुआत की तो दो महीनों में बमुश्किल डेढ़ लाख रुपए का बिजनेस ही किया था। इस बीच लॉकडाउन की घोषणा हो गई और पूरा बिजनेस ठप हो गया। अप्रैल और इससे आगे की सभी बुकिंग कैंसिल की और कस्टमर को 100 प्रतिशत रिफंड देना पड़ा। 7 महीने तक जीरो बिजनेस रहा। हालांकि इस टाइम में हमने अपने स्टार्टअप को और बेहतर बनाने के तमाम आइडियाज पर काम किया। इन सात महीनों में हमारी सारी सेविंग्स खत्म हाे गई थी। उस वक्त हमारे पास ऐप के लिए गूगल प्ले स्टोर की फीस (1800 रुपए) भरने तक के लिए पैसे नहीं बचे थे। इस बीच घरवालों ने कहा कि ट्रैवल इंडस्ट्री में अब अगले तीन-चार सालों तक कोई स्कोप नहीं है, इसलिए कुछ और करो या नौकरी करो, लेकिन मैं इसी बिजनेस को आगे बढ़ाना चाहता था।’
नवंबर में दोबारा शुरू किया बिजनेस, 5 महीनों में 2 करोड़ का बिजनेस किया
’10 नवंबर को जब हमने दोबारा अपना बिजनेस शुरू किया तो ये सोच कर किया कि अब आर या पार ही होगा। या तो हम खेल जाएंगे या इसे बंद कर देंगे। इस पर पूरा फोकस किया, लेकिन शुरुआत में हमें काफी घाटा हुआ, क्योंकि जब लोग बड़े ग्रुप में आते हैं तभी फायदा होता है, लेकिन हमने किसी भी कस्टमर को मना नहीं किया, भले ही हमें घाटा उठाना पड़ा हो, लेकिन हमने कोई भी ट्रिप कैंसिल नहीं की।’
‘हमने होटल्स से टाइअप किया कि आपका पैसा थोड़ा-थोड़ा करके दे देंगे। चूंकि होटल इंडस्ट्री भी इतने समय से बंद रही थी तो वो भी तैयार हो गए। धीरे-धीरे लोगों ने जब हमारा काम के प्रति कमिटमेंट देखा तो वो प्रभावित हुए और इसके बाद कुछ लोगों ने हमारे बिजनेस को आगे बढ़ाने के लिए अलग-अलग शहरों में ब्रांच ऑफिस खोले और हमारे साथ काम करना शुरू किया। यही वजह रही कि इन पांच महीनों में हम 3500 से अधिक लोगों को ट्रैवल करा चुके हैं और 2 करोड़ रुपए का बिजनेस कर चुके हैं।’
शाहवर बताते हैं कि आज उनके भोपाल, इंदौर, रायपुर, जालंधर, लुधियाना, फगवाड़ा, अहमदाबाद, राजकोट, सूरत, जयपुर और सीकर में ब्रांच ऑफिस हैं, इसके अलावा अगले महीने दुबई में भी वो अपना एक ब्रांच ऑफिस खोलने की तैयारी में हैं। साथ ही अब कुछ इनवेस्टर्स को भी उनका आइडिया काफी पसंद आया है और वे उनके बिजनेस में इनवेस्ट करने के लिए तैयार हैं।