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नेपाल के कंचनवन से ग्राउंड रिपोर्ट: होली से दस दिन पहले भगवान राम ने ससुराल जनकपुर में खेली होली,

नेपाल के कंचनवन से ग्राउंड रिपोर्ट:होली से दस दिन पहले भगवान राम ने ससुराल जनकपुर में खेली होली, जमकर बरसे रंग-गुलालत्रेतायुग की परंपरा, राम-सीता ने पहली होली यहीं खेली थी
नेपाल के जनकपुर मंदिर से निकला श्रीराम और जानकी का डोला शनिवार दोपहर कंचनवन पहुंचा तो रंग-गुलाल की वर्षा होने लगी। इसके साथ ही त्रेतायुग से चली आ रही परंपरा के तहत होली से दस दिन पूर्व भगवान राम और सीता की होली के साथ मिथिला में फागोत्सव शुरू हो गया। कहते हैं कि श्रीराम विवाह के बाद माता सीता के साथ मिथिला दर्शन के लिए निकले थे। इस 15 दिन की परिक्रमा के 7वें दिन जब वे कंचनवन पहुंचे तो वह होली का दिन था। इसी कंचनवन में ही नवदंपती ने पहली होली खेली।

इस फागोत्सव में राम-जानकी के साथ मिथिला के आम लोग भी शामिल हुए थे। तब से आज तक हर वर्ष हजारों साधु-संत, महिला-पुरुष कंचनवन पहुंचकर फगुआ (होली) की शुरुआत करते हैं। जानकी मंदिर के मुख्य महंत ने बताया, ऐसी मान्यता है कि दूल्हा श्रीराम हर वर्ष मां जानकी और उनकी सहेलियों के साथ होली खेलने कंचनवन आते हैं।

इसलिए इस मौके पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां जुटते हैं। अल सुबह से देर शाम तक श्रद्धालुओं की टोली कंचनवन पहुंचती है। जैसे ही श्री मिथिला बिहारी और किशोरीजी की डोली पहुंचती है सभी एक-दूसरे पर रंग-गुलाल की वर्षा शुरू कर देते हैं। कंचनवन निवासी रामदुलार यादव बताते हैं कि लोग आज भी भगवान राम और मां जानकी की होली की परंपरा कायम रखे हैं। गेहूं और चावल के आटे में हल्दी और गेंदे के फूल मिलाकर पीला, गुलाब से लाल, सिंघाड़े के फूल से गुलाबी और बेल पत्र से हरा रंग बनाते हैं।

धीरे-धीरे बाजार के रंग बढ़े हैं लेकिन कंचनवन के लोग आज भी परंपरा का निर्वाह करते हुए रंग तैयार करते हैं।

कंचनवन को लेकर कई कथाएं प्रचलित है। कहा जाता है कि भगवान राम 15 दिन की मिथिला की परिक्रमा पर निकले तो 7वें दिन कंचनवन में रुके थे। यहीं उन्होंने होली खेली थी। श्रीराम-सीता समेत चारों भाई के विवाह के बाद अयोध्या जाने लगे तो राजा जनक ने कंचनवन से सैकड़ों बैलगाड़ियों पर सोने-चांदी के आभूषण उपहार स्वरूप बेटी-दामाद को भेंट किए। कहते हैं कि अयोध्या के महल में उपहार रखने की जगह नहीं बची तो उन्हें एक खाली जगह पर रखा गया। जिसे बाद में मणि पर्वत कहा गया।

विवाह के बाद परिक्रमा के दौरान जब श्रीराम और सीता समेत चारों भाई कंचनवन पहुंचे तो देखा कि वहां चारों ओर जंगल ही जंगल है। वानवासियों ने उनसे जंगल में पानी न होने की समस्या बताई तो राम ने वाण चलाया और धरती से जल प्रवाह शुरू हो गया। इस जलस्रोत को बिग्घी गंगा के नाम से जाना जाता है। जहां आज भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु स्नान को पहुंचते है। कंचनवन को लेकर यह भी कथा प्रचलित है कि एक बार भगवान शिव-मां पार्वती के साथ भ्रमण कर रहे थे। इस दौरान पार्वती का कुंडल गिर गया। महादेव ने कहा, जिस जगह कुंडल गिरा है उसे कंचनवन के नाम से जाना जाएगा।

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