र्जुन कपूर स्टारर ‘संदीप और पिंकी फरार’ 19 मार्च को होगी रिलीज, बोले- सिर्फ 2 महीने में ही की थी फिल्म की शूटिंग, लेकिन कैरेक्टर की तैयारी में लग गए थे 3 महीनेफिल्म ‘रूही’ के बाद से प्रोड्युसर्स के हौसले बुलंद हुए हैं। अर्जुन कपूर की अपकमिंग फिल्म ‘संदीप और पिंकी फरार’ इस शुक्रवार को सिनेमाघरों में रिलीज हो रही है। इसमें वो एक कॉप पिंकी दाहिया के रोल में नजर आएंगे। उनके अपोजिट परिणीति चोपड़ा हैं और वो संदीप कौर के रोल में दिखेंगी। हाल ही में दैनिक भास्कर से बातचीत के दौरान, अर्जुन ने बताया कि 2 महीने में पूरी हो गई थी फिल्म की शूटिंग पर 3 महीने तक उन्होंने कैरेक्टर की तैयारी की थी।
Q-आप की कैरेक्टर की प्रिपेरेशन डिटेल्ड होती है। पिंकी दाहिया के लिए क्या सब किया?
A-क्या सब नहीं किया? दिबाकर सर ने साइन किया था तो साफ-साफ कहा था कि तीन महीने कैरेक्टर प्रिपेरेशन को देन हैं, शूटिंग तो बस दो महीने की ही रहेगी। दिबाकर सर रोज मेरे घर आते थे और तरुण ने डायलेक्ट पर मेरी बहुत मदद की थी। मैं पांचवीं कक्षा की किताबें पढ़ता था। कोशिश करता था कि पिंकी दाहिया के लहजे को पकड़ सकूं। तैयारी इतनी डिटेल्ड रही कि दिबाकर सर के साथ निजी जिंदगी के बारे में बातें भी हरियाणवी डायलेक्ट में ही होती थी। सबसे अहम चीज रही दिल्ली टूर, वहां वे मुझे महिपालपुर इलाके ले गए और वहां के रिटायर्ड पुलिस वालों से मिलवाया। ताकी मैं समझ सकूं कि दिल्ली का जाट हरियाणा के जाट से अलग होता है।
Q-पिंकी दाहिया को मुंबई पुलिस से किस तरह अलग पाया?
A-पिंकी दाहिया और मुंबई पुलिस में जमीन आसमान का अंतर है। पिंकी दाहिया दिल्ली-गुड़गांव के बॉर्डर पर रहता है, उसका माइंडसेट अलग है, हालात में फर्क है, उन्हें हैंडल करने का तरीका भी अलग है। यह फिल्म पुलिस के अलावा पिंकी दाहिया जो इंसान है, उसके बारे में है। वे एक एसा इंसान है जो सिस्टम में अटका हुआ है। वह जब संदीप के साथ फरार होता है तो वैसा ही करता, जैसा पुलिस न होते हुए भी करता।
Q-इससे पहले की फिल्मों के कोई दो ऐसे कैरेक्टर प्रिपेरेशन के किस्से शेयर कर सकें, जो बड़े रोचक थे?
A-जी हां, फिल्म ‘फाइंडिंग फैनी’ में डायरेक्टर होमी अदजानिया वॉक कराते हुए रीडिंग करवाते थे। फिल्म ‘पानीपत’ के लिए घुड़सवारी सीखनी थी, ऑलमोस्ट तीन महीनों तक हर रोज सुबह उसे सीखता था। जैसा इन दिनों विक्की कौशल कर रहे हैं अपनी फिल्म के लिए। फिल्म ‘इश्कजादे’ के दौरान तो 6 महीने रीडिंग की ही स्क्रिप्ट की।
Q-दिबाकर बनर्जी के साथ नैरेशन या रीडिंग का किस्सा शेयर कर सकते हैं? उनकी फिल्मों को आप किस तरह रियल होते हुए भी लार्जर दैन लाइफ पाते हैं?
A-उनके साथ पहली मुलाकात में नैरेशन के महज 15 मिनटों बाद, हम बातों में ही खो गए। हम उनकी पिछली फिल्मों पर बातें ही करने लगे। साथ ही जिंदगी और पॉलिटिक्स भी डिस्कस करने लगे। उस दिन नैरेशन अधूरा ही रह गया। फिर बाद में उन्होंने स्क्रिप्ट भेजी और तब उसे मैं पढ़ पाया। बाकी जो तीन महीनों का कैरेक्टर प्रिपरेशन था, वो बहुत काम आया। सेट पर भी वो मुझे अर्जुन नहीं पिंकी बुलाते थे। दिबाकर दरअसल हिंदुस्तान के कोने-कोने से वाकिफ हैं। तभी उनके किरदार रियल रहते हुए भी लार्जर दैन लाइफ रहते हैं। उनकी फिल्में सोसायटी पर सवाल होती हैं और सोचने पर मजबूर करती हैं। बताती हैं, कि मुंबई में बैठे हुए छोटे शहरों के बारे में जो सोच है, जिंदगी उससे कहीं ज्यादा रहस्यमयी है।
Q-किन लोकेशनों पर शूट हो गए हैं? उनके जरिए आप इंडिया के बारे में क्या नया जान पाए?
A-शूट गुड़गांव और दिल्ली में हुआ है। इससे पहले फिल्म ‘औरंगजेब’ के वक्त गुड़गांव में भी शूट किया था। हम उत्तराखंड के पिथौरागढ़ भी गए थे। वह नेपाल बॉर्डर पर है और वहां से बस 150 कदम चलकर हम बॉर्डर क्रॉस कर सकते हैं। पहले लगता था कि बॉर्डर क्रॉस करना बिग डील है, मगर यह एक यूनीक एहसास था। पिथौरागढ़ में मेरी पहली विजिट थी।