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ओडिशा की साधना मिश्रा ने अपनी ही तरह के 100 से ज्यादा लोगों की जिंदगियां बदलीं,

ट्रांसजेंडर की कहानी:ओडिशा की साधना मिश्रा ने अपनी ही तरह के 100 से ज्यादा लोगों की जिंदगियां बदलीं, इस बात से खुश हैं कि जेंडर से ज्यादा, समाज के प्रति योगदान से मिली पहचानसाधना मिश्रा का बचपन भाइयों और समाज के ताने सुनते हुए बीता। भुवनेश्वर की साधना (36) को महज इसलिए अपमान सहना पड़ा, क्योंकि वे एक ट्रांसजेंडर हैं। लेकिन साधना ने शिक्षा और उपलब्धियों के जरिए अपनी इसी पहचान को न सिर्फ अपनी ताकत बनाया, बल्कि अपने जैसी 100 जिंदगियों को भी बदला। आज ओडिशा में उन जैसे 100 ट्रांसजेंडर्स सरकारी नौकरी और बिजनेस समेत विभिन्न क्षेत्रों में काम कर रहे हैं। वहीं साधना भुवनेश्वर के प्रतिष्ठित कलिंगा इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल साइंस में सोशल डेवलेपमेंट ऑफिसर के पद पर 4 साल से कार्यरत हैं। वे अपना आधा वेतन समुदाय के अन्य युवक-युवतियों को पढ़ाने और पेशेवर बनाने पर खर्च करती हैं। लेकिन सम्मान पाने का साधना का यह सफर आसान नहीं था।साधना ओडिशा के एक छोटे से गांव की रहने वाली हैं। दो भाई और दो बहनों के साथ बड़ी हुईं साधना का बचपन आम बच्चों की तरह खेलकूद या स्कूल में मस्ती करते हुए नहीं बीता। घर से लेकर मोहल्ले तक, उन्होंने अपमान सहा। बहनों और पिता का साथ जरूर मिला। सबसे ज्यादा जुड़ाव पिता से रहा, जो हमेशा आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते रहे। साल 2004 में पिता के गुजरने के बाद साधना ने ठाना कि वे खुद को इस काबिल बनाएंगी कि लोगों की सोच बदल जाए।

वे ट्रांसजेंडर होने के कारण बधाई व ताली बजाते हुए पैसे मांगने तक सीमित नहीं रहना चाहती थीं। पहले उन्होंने मास्टर ऑफ सोशल वर्क (एसएसडब्ल्यू) के साथ एमबीए में नियमित रूप से पढ़ाई की। ओडिशा से बाहर निकलकर गुजरात में ट्रांसजेंडर कम्युनिटी के लिए चल रहे कुछ अभियानों से जुड़ीं और नौकरी की। इसके बाद मुंबई, दिल्ली व बेंगलुरु में भी काम किया। फिर 2006 में लौट आईं। उन्हें 2016 में अमेरिका से भारत का प्रतिनिधित्व करने का बुलावा आया। वे ओडिशा की पहली ट्रांसजेंडर पासपोर्टधारी बनीं।

साधना अब हेल्थ, शिक्षा, बच्चों‌, महिलाओं, गरीबों और ट्रांसजेंडर्स के लिए अलग-अलग संस्थानों से जुड़कर इन्हें प्रोफेशनल बनाने व उच्च शिक्षा दिलाने में लगी हुईं हैं।

बच्चों की पढ़ाई से जुड़ीं, हर माह आधा वेतन दान

साधना बताती हैं कि बचपन में जो भाई उन्हें पसंद नहीं करते थे, वे आज गर्व से मुझसे अपना जुड़ाव व रिश्ता बताते हैं। मां कहती हैं कि मेरे पांचों बच्चों में इसने परिवार का नाम रोशन कर दिया। साधना को खुशी है कि उन्हें अब उनके जेंडर से ज्यादा, काम व समाज के प्रति योदगदान के लिए जाना जाता है। बाल विवाह, महिला उत्पीड़न, एचआईवी व सेक्स वर्कर के लिए काम कर चुकीं साधना की इच्छा अब ट्रांसजेंडर के लिए एक वृद्धाश्रम बनाना है।

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