लैंगिक समानता के लिए पहल:मैनचेस्टर यूनिवर्सिटी ने कहा- महिला या पुरुष सूचक शब्द से बचें, माता-पिता की जगह पैरेंट्स या गार्जियन कहेंब्रिटिश शिक्षण संस्थान ने लैंगिक असमानता के शब्दों पर रोक लगाने की पहल की
ब्रिटेन की मैनचेस्टर यूनिवर्सिटी ने लैंगिक असमानता के शब्दों पर रोक लगाने की पहल की है। इन शब्दों को स्त्री या पुरुष के लिए इस्तेमाल किया जाता है, जिससे लैंगिक असमानता झलकती है। यूनिवर्सिटी ने अपने स्टाफ से कहा कि वे ऐसी भाषा को व्यवहार में लाएं, जिससे लड़का या लड़की का भेद ही न झलके। संस्थान ने स्टाफ को दिशा-निर्देश की कॉपी भी दी है। इसमें कहा गया है कि मदर या फादर (मां या पिता) की जगह पैरेंट्स या गार्जियन जैसे शब्दों का इस्तेमाल करें।
यूनिवर्सिटी ने कहा कि बोलचाल और आधिकारिक कामों में मैनपावर की जगह वर्कफोर्स, मैनकाइंड की बजाय ह्यूमनकाइंड, मैन मेड की जगह आर्टिफिशियल या सिंथेटिक जैसे शब्दों का इस्तेमाल करें। संस्थान ने बताया कि यह गाइडलाइन कुछ सहयोगियों की प्रतिक्रिया के बाद जारी की गई है।
दरअसल, संस्थान में कार्यरत कुछ लोगों का सुझाव था कि लैंगिक भेद मिटाने की दिशा में किस प्रकार की भाषा का उपयोग करना चाहते हैं। उक्त शब्दों की व्यावहारिकता में भी कोई परेशानी नहीं है, क्योंकि कई तो पहले ही इस्तेमाल किए जा रहे हैं।
सोशल मीडिया पर आलोचना:
मां जैसे शब्दों को खत्म करने का प्रयास बताकर इस पहल की सोशल मीडिया पर आलोचना भी हाे रही है। आलोचना करने वालों का तर्क है कि स्कूलों और यूनिवर्सिटीज ने दशकों से मां-पिता की जगह पैरेंट्स/गार्जियन शब्द लाकर भाषाई बंदिशें लगा दी हैं। यह फ्री स्पीच के अधिकार को खत्म करने जैसा है।
‘ही/शी’ की जगह ‘दे/ देयर/देम’ इस्तेमाल हो
यूनिवर्सिटी ने गाइडलाइन के साथ कुछ शब्दों की सूची भी जारी की है। इसके मुताबिक ही या शी की बजाय दे, देयर या देम, वहीं मैन, वूमन की बजाय पीपुल या पर्सन या इंडीविजुअल का प्रयोग करें। इसी तरह लेडीज और जेंटलमैन या गाइज की जगह एवरीवन/कलीग्स, रादर देन। मैन की जगह कवर या स्टाफ के इस्तेमाल को तवज्जो दें। हसबैंड और वाइफ के बजाय पार्टनर। लेडीज और जेंटलमैन की बजाय एवरीवन या कलीग्स, ब्रदर या सिस्टर की जगह सिब्लिंग शब्द को व्यवहार में लाएं।