सुनामी के 10 साल बाद जापान से ग्राउंड रिपोर्ट:जलजले से उबरा जापान, सबसे ज्यादा प्रभावित मिनामिसानरिकु, इशिनोमाकी और लिटेट में तबाही के निशान संजो रहे लोगजब्जे का दूसरा नाम जापान है। यही वजह है कि जब-जब त्रासदी आई, जापान उससे दोगुनी ताकत से लड़कर खड़ा हुआ। 2011 में 11 मार्च को दोपहर 3 बजे 9 तीव्रता का भूकंप आया। फिर तट पर उठीं 40 मीटर ऊंची लहरें सुनामी में बदल गई। इन लहरों के रास्ते में जो भी आया, वो इसमें समाता गया। 15,899 लोग मारे गए। 2500 अब तक लापता हैं। इस आपदा को आए 10 साल बीत चुके हैं। सबसे ज्यादा तबाह तीन जगहों मिनामिसानरिकु, इशिनोमाकी और लिटेट का हाल जानने भास्कर मौके पर पहुंचा। वहां पता लगा कि ये शहर कैसे न सिर्फ उठ खड़े हुए, बल्कि दौड़ रहे हैं। पढ़िए, ग्राउंड रिपोर्ट…जापान के उत्तर पूर्वी सनरिकू तट पर बर्फीली हवाओं के झोंके बह रहे हैं। यहां 10 साल पहले आई इतिहास की चौथी सबसे शक्तिशाली सुनामी अब भी महसूस की जा सकती है। यहां से करीब 85 किमी दूर ओशिका प्रायद्वीप में 11 मार्च को 9 तीव्रता का भूकंप आया था। फिर यहीं से सुनामी शुरू हुई। 700 किमी घंटे की रफ्तार से बढ़ रहीं लहरों ने रास्ते में जो आया, उसे निगल लिया।
इन लहरों ने सनरिकू तट के किनारे बसे मिनामिसानरिकु शहर को जापान के नक्शे से ही मिटा दिया। इस शहर ने इससे पहले 100 साल में 4 भूकंप देखे थे। हर तबाही के बाद ये खड़ा हुआ, पर अब ये कभी नहीं बसाया जाएगा। वजह है- प्राकृतिक बनावट और नदी के मुहाने पर होने से खतरा बना रहेगा। इस इलाके के 1206 लोग सुनामी में समा गए थे। सुनामी के गवाह चोको हागा बताते हैं, ‘मेरा घर शहर के मध्य में हॉस्पिटल के पास था। सैलाब थमने के बाद वहां लौटा तो सिर्फ घर की नींव बची थी।
इसलिए नए घर के गार्डन में याद के तौर पर सुनामी से तबाह पुराने घर की नींव का एक हिस्सा लाकर लगाया है।’ शहर के लोगों को ऊंचाई वाले इलाकों में बसाया जा रहा है। पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए यहां तीन साल पहले कृत्रिम बीच भी खोला गया है। जो अस्पताल तबाह हुआ था। उसकी जगह 3500 करोड़ रुपए से नया अस्पताल बन रहा है। इसमें से 1500 करोड़ रुपए ताइवान रेड क्रास ने दिए हैं।’
सबसे ज्यादा तबाही: शिनोमाकी में अब नदी से खतरा नहीं, ब्रिज से बाजार तक में बहार
दक्षिण में तटीय शहर इशिनोमाकी, जो इस क्षेत्र का सबसे बड़ा शहर भी है। यह 2011 की त्रासदी में तबाह हो गया था। जो सड़कें बर्बाद हो गई थीं, पुल ढह गए थे, वो फिर से बन गए हैं। कंक्रीट के बांधों से नदियों पर भी काबू पाया जा चुका है। एक दशक पहले कीताकामी नदी ने शहर तो तहस नहस कर दिया था। पानी ने शहर की गलियों को डुबो दिया था। लकड़ी से बने पुराने पारंपरिक घर ढह चुके थे। जो नए घर बने थे, उनकी नींव उभर आई थी।
नदी की लहरें मलबे के साथ बोट, गाड़ियां और खंभे तक अपने साथ बहा ले गई थी। जिसके कारण यहां की आपस में गुथी हुई सामाजिक व्यवस्था जमींदोज हो गई थी। आज भी कई खाली जमीन के टुकड़े शहर के बीचों बीच दिखाई पड़ते हैं। हालांकि अब दुकानें और रेस्त्रां खुल चुके हैं। वो ट्रेन स्टेशन जो एक मीटर पानी में डूबा हुआ था, अब शुरू हो चुका है। यहां पहाड़ी की तलहटी में स्थित साइको मंदिर इस शहर की आस्था का बड़ा केंद्र है। पूरा शहर बह गया था।
मलबा मंदिर के साथ इस पहाड़ी के चारों तरफ जमा हो गया था। कारें, बिल्डिंग से निकले मलबे इस मंदिर की छत पर जमा थे। मंदिर के मुख्य बौद्ध भिक्षु नोबुआ हिगूची ने बताया, ये चमत्कार ही है कि इतनी बड़ी आपदा के बावजूद मंदिर जस का तस खड़ा रहा। हिगूची को उम्मीद है कि पहले की तरह यहां के लाेग एक-दूसरे से घुलने-मिलने लगेंगे। समुदाय उठ खड़ा होगा।
यहां भविष्य भी दांव पर था: रेडिएशन प्रभावित इलाके में उम्मीदें बाकी, लोग घरों की ओर लौट रहे
2011 में जो त्रासदी हुई उसमें फुकुशिमा दाईची न्यूक्लियर प्लांट ने आग में घी का काम किया। ये प्लांट इशिनोमाकी शहर से 140 किमी दक्षिण में है। रेडिएशन के गुबार यहां से उत्तर पश्चिम की तरफ हवा के सहारे बढ़े और अपने रास्ते में आए शहरों और गांवों, खेतों और जंगलों को जहरीला करते चले गए। हजारों लोगों को उनके घरों से निकाला गया, क्योंकि इस प्लांट के तीन रिएक्टर पिघल चुके थे। लिटेट गांव ऐसा ही उदाहरण है, जिसे न्यूक्लियर रिसाव के बाद खाली कराया गया था।
कभी 5800 लोगों से गुलजार लिटेट में 2016 से लोग फिर बसने लगे हैं। यहां अभी करीब 1500 लोग रह रहे हैं। बीते साल गांव ने 44 वर्षीय बौद्ध पुरोहित माकोटो सूजियाका को महापौर चुना है। उनके संपर्क में ऐसे लोग भी हैं जो 1945 के युद्ध के समय बच्चे थे। वे कहते हैं कि जब उस कठिन दौर को सह लिया तो हम न्यूक्लियर से अब क्यों घबराएं। सूजियाका बताते हैं कि पहले ज्यादातर लोग कृषि पर निर्भर थे, पर रेडियो एक्टिव रिसाव से खेती तबाह हो गई।
आज जिन फसलों को जांच के बाद स्वास्थ्य के अनुकूल होने का सर्टिफिकेट दिया गया, उन्हें खरीदने लोग सामने नहीं आ रहे हैं। मेरी पहली प्राथमिकता पलायन कर चुके, खासकर युवाओं को वापस लाना है। यहां करीब 3000 हेक्टयर जमीन खेती के लिए सुरक्षित है। 28 वर्षीय नाना मैट्सुमोटो के ऊपर लोगों को आने के लिए प्रेरित करने की जिम्मेदारी है।