6 साल पहले पढ़ाई के दौरान वर्मीकम्पोस्टिंग शुरू की, अब हर महीने 150 टन का प्रोडक्शन करती हैं; सालाना टर्नओवर एक करोड़ रुपएमेरठ की रहने वाली सना खान ने बायोटेक्नोलॉजी की पढ़ाई के दौरान शुरू किया था वर्मीकम्पोस्ट का बिजनेस
इस काम के चलते वो मेरठ में स्वच्छता की ब्रांड एम्बेसडर बनीं, फिर ‘मन की बात’ प्रोग्राम में पीएम मोदी ने भी उनके काम की तारीफ की
आज की कहानी है उत्तर प्रदेश के शहर मेरठ में रहने वाली 27 साल की सना खान की। जो अपनी कंपनी ‘एसजे ऑर्गेनिक्स’ के जरिए पारंपरिक तरीकों से वर्मीकम्पोस्ट (केंचुआ खाद) तैयार करती हैं। सना ने वर्मीकम्पोस्टिंग कंपनी नवंबर 2014 में उस वक्त शुरू की थी जब वो बी.टेक बायोटेक्नोलॉजी के फाइनल ईयर में थीं। 6 साल पहले शुरू हुए वर्मीकम्पोस्टिंग के बिजनेस का सालाना टर्नओवर अब एक करोड़ रुपए तक पहुंच चुका है। इसके अलावा उन्होंने अपनी कंपनी में करीब 25 लोगों को रोजगार भी दिया है। वहीं साल 2018 में सना के काम की सराहना देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी अपने शो ‘मन की बात’ के 41वें एपिसोड में भी कर चुके हैं।
सना कहती हैं, ‘मेरे पापा लेडीज टेलर हैं, मेरे नाना गैराज चलाते थे और मेरे भाई एक फैक्ट्री में जॉब करते थे। वो सब चाहते थे कि मैं डॉक्टर बनूं, लेकिन मेडिकल एंट्रेंस एग्जाम में मेरी 18 रैंक कम थी तो सिलेक्शन नहीं हो पाया। वहीं UPTU में 45वीं रैंक थी तो मुझे ट्यूशन फीस वेवर पर गाजियाबाद के IMS इंजीनियरिंग कॉलेज में बीटेक बायोटेक में एडमिशन मिल गया। मैं मेरठ से गाजियाबाद अप-डाउन करती थी, मुझे ट्रेन से आने-जाने में रोजाना तीन घंटे लगते थे। जबकि मेरे साथ की बाकी लड़कियां हॉस्टल में रहती थीं।’
कॉलेज के फाइनल ईयर में वर्मीकम्पोस्टिंग प्रोजेक्ट पर काम शुरू किया था
जब सना फाइनल ईयर में थीं तो उन्होंने अपने कॉलेज में वर्मीकम्पोस्टिंग के प्रोजेक्ट पर काम शुरू किया, लेकिन यह कैसे किया जाता है, इसके बारे में उन्हें पहले से कोई जानकारी नहीं थी। जैसे-जैसे सना ने इस वर्मीकम्पोस्टिंग से होने वाले फायदे को देखना शुरू किया, उनकी दिलचस्पी इसमें और भी बढ़ने लगी। सना कहती हैं, ‘मुझे समझ में आया कि किसान इसका उपयोग बहुत ही सीमित स्तर पर करते हैं। ऐसे में मैंने इस प्रोजेक्ट को बड़े स्तर पर लागू करने का फैसला लिया। बाद में मैंने वर्मीकम्पोस्टिंग को बिजनेस का जरिया बना लिया।’
वर्मीकम्पोस्टिंग के बारे में सना बताती हैं, ‘ये केंचुओं के उपयोग से जैविक खाद तैयार करने की एक प्रक्रिया है। बायोमास केंचुओं का भोजन हैं और इनके द्वारा निकाली गई मिट्टी को ‘वॉर्म कास्ट’ कहते हैं जो कि सभी पोषक तत्वों से भरपूर होता है। यही वजह से है कि इसे ‘ब्लैक गोल्ड’ भी कहा जाता है।
चूंकि केंचुए तीन साल तक जिंदा रहते हैं और तेजी से प्रजनन करते हैं। ऐसे में यह प्रक्रिया बिजनेस के लिहाज से टिकाऊ और सस्ती बन जाती है।’
2014 में भाई के साथ मिलकर शुरू किया बिजनेस
साल 2014 में सना ने अपने भाई जुनैद की मदद से ‘एसजे ऑर्गेनिक्स’ कंपनी की शुरुआत की। बिजनेस की शुरुआत में प्रशासन के सहयोग से उन्हें मेरठ के ही गवर्नमेंट इंटर कॉलेज की खाली पड़ी जगह मिल गई थी, जहां वो वर्मीकम्पोस्टिंग साइट चलाती हैं। इसके बाद सना ने कुछ ठेकेदारों को चुना, जो मेरठ की डेयरी से गोबर और बायोडिग्रेडेबल वेस्ट को उनकी साइट तक पहुंचाने का काम करने लगे। इसके बाद इस साइट पर गोबर और कचरे को केंचुओं को खिलाया जाता है। इस गोबर और जैविक पदार्थों को वर्मीकम्पोस्ट में बदलने में करीब डेढ़ महीने का वक्त लगता है। इसके बाद इस कम्पोस्ट को छानकर उसमें गोमूत्र मिलाया जाता है, जो प्राकृतिक कीटनाशक और उर्वरक का काम करता है। वहीं तय मानकों को पूरा करने के लिए, वर्मीकम्पोस्ट के हर बैच का लैब टेस्ट कराया जाता है और रिपोर्ट आने पर उन्हें पैक करके मार्केट में भेज दिया जाता है। खुदरा दुकान और नर्सरी से किसान यह वर्मीकम्पोस्ट खरीदते हैं। सना बताती हैं कि साल भर बाद से इस बिजनेस में मुनाफा होने लगा तो वो बड़े स्तर पर काम करने लगीं। आज सना हर महीने करीब 150 टन वर्मीकम्पोस्ट का उत्पादन करती हैं। प्रोडक्शन का पूरा काम खुद सना ही देखती हैं, जबकि उनके भाई जुनैद और पति सैयद अकरम रजा बिजनेस और मार्केटिंग का काम देखते हैं।
‘गांव की साइट पर जाती थी तो लोग मुझे पागल कहते थे’
शुरुआती चुनौतियों के बारे में बात करते हुए सना बताती हैं, ‘मेरा शहर का बैकग्राउंड था और मुझे अपनी साइट के लिए 14 किमी दूर गांव में जाना होता था। उस वक्त मेरे पास स्कूटी नहीं हुआ करती थी तो मैं पैदल ही ज…