15 साल की बच्ची गाउचर टाइप-1 से पीड़ित:पेट सख्त और दिमागी हालत बिगड़ी, 20 लाख के इंजेक्शन हर माह लगेंगे; अमेरिकी कंपनी ने मुफ्त भेजे 4.80 करोड़ के इंजेक्शनबिलासपुर संभाग के एक ग्रामीण की 15 साल की बच्ची बेहद रेयर बीमारी गाउचर टाइप-1 से पीड़ित है। बच्ची के पिता गांव में छोटी सी किराना दुकान चलाते हैं। जिंदगी बचाने बच्ची को हर माह 20 लाख के इंजेक्शन की दो डोज लग रही है। बच्ची को अब तक 4 करोड़ 80 लाख के 48 इंजेक्शन मिल चुके हैं। इतने महंगे इलाज का खर्च उठाना बच्ची के परिवार वालों के संभव नहीं था।मेरी बेटी उस समय 15 साल की थी। वो 2018 नवंबर का महीना था। अचानक एक दिन बेटी ने बताया उसका पेट सख्त हो गया है। वह काफी दिन से कड़ापन महसूस कर रही थी, लेकिन पेट की खराबी सोचकर नहीं बताया। हमने भी सोचा पेट खराब होगा।
एक-दो दिन कुछ दवाएं दीं। पर इसी बीच उसकी दिमागी हालत बिगड़ने का अहसास हुआ। वह असामान्य हरकतें करने लगी। उसके सोचने समझने की शक्ति कम होती गई। हम घबरा गए। उसे अस्पताल ले जाया गया। यहां तीन-चार बड़े डाक्टरों को दिखाया, लेकिन वे कुछ समझ नहीं सके। इस बीच कुछ डाॅक्टरों ने दिल्ली जाने की सलाह दी। हमारे एक रिश्तेदार गुड़गांव में रहते हैं।
हमें उनका ख्याल आया और उनसे संपर्क किया। उनके कहने पर हम बेटी को लेकर वहां गए। दिल्ली के एक बड़े अस्पताल में बेटी को ले गए। तीन-चार दिन जांच के बाद पता चला कि बेटी को गाउचर टाइप-1 बीमारी है। डाक्टरों ने बताया कि ये काफी रेयर बीमारी है। डॉक्टर भी बीमारी की पहचान के बाद भौंचक रह गए। उन्होंने बच्ची के इलाज का इतना खर्च बताया कि हमारे पैरों तले जमीन खिसक गई। चिंता में पड़ गए। चारों ओर अंधेरा सा छा गया। पूरा परिवार गम में डूब गया। हमारी स्थिति देखकर वहीं के कुछ भले डॉक्टरों ने बताया कि यहां कुछ एनजीओ और कंपनियां इस तरह की बीमारियों के इलाज में मदद करती है। हम उनके संपर्क में रहने लगे। डाॅक्टरों ने ही पता लगाया कि अमेरिका की कुछ कंपनियां इस बीमारी के इंजेक्शन फ्री में उपलब्ध करवाती हैं। डाॅक्टरों ने ही बच्ची की मेडिकल रिपोर्ट अमेरिका भेजी। पूरा परीक्षण करने के बाद कंपनी बच्ची के इलाज के लिए मदद करने को राजी हो गई। दो साल हो गए वही कंपनी हर 15 दिन में बच्ची के लिए इंजेक्शन भेज रही है। एक इंजेक्शन 10 लाख का है।शेष|पेज 2 जैसा कि राजेंद्र सिंह (बदला हुआ नाम) ने बताया।
एक महीने में मेरी बेटी को 20 लाख का इंजेक्शन लग रहा है। साल में अब तक 48 इंजेक्शन लग चुके हैं। भगवान की कृपा रही कि इसके लिए जेब से पैसे खर्च नहीं करने पड़े। शुरूआती दिनों में बेटी को दिल्ली में ही इंजेक्शन लगे। उसके बाद डाक्टरों ने सहायता की और एड्रेस रायपुर का करवा दिया। अब राजधानी के एक बड़े अस्पताल में हर महीने दो इंजेक्शन लग रहे हैं। इलाज के बाद बिटिया ठीक होने लगी है। उसका मानसिक व शारीरिक विकास भी हो रहा है। परिवार की आधी से ज्यादा चिंता दूर हो गई है। इंजेक्शन के पैसे लगते तो हमारा सबकुछ बिक जाता, तब भी हम पूरा इलाज नहीं करवा पाते। हमारी गांव में छोटी सी दुकान है। किसी तरह उसी से परिवार का गुजारा चल रहा है। डाक्टरों के अनुसार प्रदेश में गाउचर टाइप वन का यह पहला केस है।
बेहद रेयर बीमारी, इसके तीन टाइप
टाइप-1 – इस बीमारी में जिगर व तिल्ली बढ़ जाती है। हड्डी में दर्द व हडि्डयों में फ्रैक्चर। कई बार फेफड़े व किडनी की समस्या। यह बीमारी किसी भी उम्र में हो सकती है। इसमें पेट पत्थर की तरह सख्त हो जाता है।
टाइप-2 – यह ज्यादातर बच्चों को होता है। इस बीमारी में ब्रेन में असर पड़ता है और मानसिक स्थिति बिगड़ जाती है।
टाइप-3 – हार्ट व तिल्ली को धीरे-धीरे प्रभावित करता है। सामान्यत: ये बचपन और किशोरावस्था में शुरू होता है। इसमें दिल कमजोर हो जाता है।
क्या है गाउचर
यह अनुवांशिक रोग है। यह ग्लूको सेरिब्रो साइडेज एंजाइम की कमी से होता है।