महिला दिवस पर विशेष:101 साल पुराने श्री प्रेम मंदिर में अनूठी परंपरा- पूरे देश में हैं कुल 9 मंदिर, सभी में महिलाएं अध्यक्ष1920 में पाकिस्तान में शुरू हुआ था मंदिर, बंटवारे के बाद श्री शांति महाराज लाई थी श्रीकृष्ण-राधा की प्रतिमा
मंदिर में पूजा-पाठ से लेकर सत्संग, सुंदरकांड पाठ, खाना बनाना सहित सब कार्य यहीं करती हैं
प्रेम का रूप भगवान और भगवान का रूप प्रेम। इसी भावना से इंसार बाजार में श्री प्रेम मंदिर प्रेम का पाठ पढ़ा रहा है। इस मंदिर की अनूठी परंपरा है, मंदिर में केवल महिला ही गद्दीनशीन हाेती हैं। ये पानीपत का भी पहला मंदिर है, जिसमें सभी कार्य महिलाएं ही देखती हैं। 1957 में पानीपत में शुरुआत के वक्त इसमें 40 महिला जुड़ी थी। अब करीब 30 देवी यहां हैं। इसमें मानसिक रूप से कमजाेर, बुजुर्ग, बाल ब्रह्मचारी हैं।
मंदिर में पूजा-पाठ से लेकर सत्संग, सुंदरकांड पाठ, खाना बनाना सहित सब कार्य यहीं करती हैं। मंदिर से जुड़ी महिलाएं बताती हैं कि 1920 से पहले भारत में महिलाओं की स्थिति बहुत कमजाेर थी। उन्हें मजबूत करने काे नियम बनाया था कि मंदिर में गद्दीनशीन महिला ही हाेगी। पूरे देश में श्री प्रेम मंदिर की 8 अन्य शाखाएं और हैं। उनमें भी महिला ही गद्दीनशीन हैं।
1920 में हुई थी स्थापना
श्री प्रेम मंदिर की वर्तमान अध्यक्ष श्री कांता देवी महाराज ने बताया कि 13 फरवरी 1920 पाकिस्तान के लैय्या शहर (उस समय भारत) में श्री शांति देवी महाराज ने प्रेम मंदिर की स्थापना की थी। बंटवारे के दाैरान वहीं से श्री शांति देवी महाराज श्रीकृष्ण-राधा की प्रतिमा पानीपत लाई थी। वाे आज भी सुरक्षित हैं।
सत्संग, सेवा, संयम, सादगी, सिमरन ये मंदिर के पंचशील
मंदिर से करीब 30 सालाें से जुड़ी सुमन देवी बताती हैं कि वाे 11वीं कक्षा के बाद से मंदिर में रह रही हैं। उन्हाेंने मंदिर में रहते ही 12वीं की पढ़ाई की। इसके बाद बीए की। मंदिर में आने वाले छाेटी देवियाें काे वाे काेचिंग भी देती हैं। वहीं, कई गुप्त रूप से कार्याें में भी सेवा की जाती है। सत्संग, सेवा, संयम, सादगी, सिमरन ये मंदिर के पंचशील हैं। मंदिर में सभी देवियां इन्ही नियमाें पर चलती हैं।
2020 में मनाया गया था शताब्दी वर्ष
मंदिर के प्रधान परमवीर ने बताया कि 2020 में शताब्दी वर्ष मनाया गया था। पिछले साल पाकिस्तान के नईम अफगानी और इमदाद ने प्रेम मंदिर की हिस्ट्री के बारे में 7 वीडियाे और फाेटो भेजे थे। पाकिस्तान में आज भी वैसा ही मंदिर है, जैसा महाराज जी छाेड़कर आए थे।
काैन किस समय रही गद्दीनशीन
महाराज का नाम- कब से कब तक
श्री शांति देवी महाराज- 1920 से 1980 तक
श्री बंसदी बाई महाराज- 1980 से 1985 तक
श्री बंती देवी महाराज- 1985 से 2001 तक
श्री प्रकाश देवी महाराज- 2001 से 2014 तक
श्री कांता देवी महाराज- 2014 से अब तक