देश का पहला आदर्श गांव टेकुलोडु:यहां के लोग अपनी आत्मनिर्भरता की कहानी बताने को तैयार, बशर्ते आने वाले भी उन्हें कुछ सिखाकर जाएंआंध्र प्रदेश के प्रोटो विलेज गांव के नाम से मशहूर टेकुलोडु पर्यावरण संरक्षण की मिसाल बना
आंध्र प्रदेश के अनंतपुर जिले के चिल्लामत्तूरु से लगा गांव- टेकुलोडु। 2014 में ही टेकुलोडु आदर्श और आत्मनिर्भर बनकर ‘प्रोटो विलेज’ के रूप में पहचान बना चुका है। यह देश का पहला ऐसा गांव है, जिसने भोजन, पानी, बिजली जैसी तमाम जरूरतों के लिए आत्मनिर्भर मॉडल विकसित किया है, वह भी पर्यावरण संरक्षण के साथ।
कोरोना काल के दौरान गांव में प्रवासियों के आने पर लगी पाबंदी जनवरी से हटा दी गई है। अब गांव के लोगों ने आत्मनिर्भर बनने की कहानी लोगों को फिर से बतानी शुरू कर दी है। शर्त सिर्फ यह है कि यहां आने वाले उन्हें भी कुछ सिखाकर जाएं।
विजिटर्स यहां 300 रुपए रोज की फीस पर रह सकते हैं, लेकिन टूरिस्ट के बजाय उन लोगों को तरजीह दी जाती है, जो यहां कुछ दिन रुकें और वास्तव में कुछ सीखकर जाएं। यदि कोई ज्यादा समय तक रुकना चाहता है, तो उसे वालेंटियर के रूप में सेवाएं देनी पड़ती हैं। तब उनसे कोई शुल्क नहीं लिया जाता।
गांव को आत्मनिर्भर बनाने वाले कल्याण अक्कीपेड्डी बताते हैं कि ये तरीका साै फीसदी कारगर है। इस तरह हमें अलग-अलग लोगों की विशेषज्ञता हासिल होती है। जैसे कोई वॉलेंटियर यहां स्कूलाें में बच्चों को कोडिंग सिखा देता है, तो कोई गणित और इंजीनियरिंग। गांव में आने वाले हरेक शख्स से गांव के लाेग कुछ न कुछ ताे जरूर सीखते हैं।
गांव ने सीखने काे ही अपना मकसद बनाया है। आज गांव विंड मिल से अपनी जरूरत की बिजली खुद बनाता है। रेन हार्वेस्टिंग से पानी बचाकर उपयाेग में लाते हैं। खेती के साथ गाय-बकरी मुर्गी, मछली पालन भी करते हैं। जैविक खेती के लिए कम्पोस्ट और वुड कंक्रीट पैनल से पर्यावरण अनुकूल घर भी बनाते हैं। कल्याण जिस घर में रहते हैं, वह बांस और लकड़ी से बना है।
प्रोटो विलेज की मुख्य संरक्षिका शोभिता का कहना है कि गांव ने अगले 10 सालों की यात्रा का लक्ष्य निर्धारित कर लिया है। यहां सामुदायिक रसोई का संचालन करने वाली गीता बताती हैं कि लॉकडाउन के बाद से प्रोटो विलेज में लोगों का आना प्रभावित हुआ, लेकिन अभी भी 30-35 लोगों का भोजन यहां रोज बनता है। गीता प्रोटो विलेज के ‘ग्रामम योजना’ का हिस्सा है, जो उत्पादन और बिक्री का आत्मनिर्भर मॉडल है।
गांव में आने वाले हरेक मेहमान और वालेंटियर्स बच्चों को पढ़ाते हैं…
पर्यावरणीय संरक्षण के चलते गांव के बच्चों को 50 से ज्यादा तरह की चिड़िया और पेड़ों ने नाम मुंहजबानी याद हैं, क्योंकि यह उनकी दिनचर्या का हिस्सा हैं। अंग्रेजी में संवाद करते बच्चे ओपन स्कूल सिस्टम में आने वाले मेहमानों, वालेंटियर्स से बगैर किसी खास कक्षा में बंटे हुए पढ़ते हैं। बोर्ड के लिए अंतरराष्ट्रीय बोर्ड आईजीसीएससी का चयन किया गया है।