मछुआरों के जाल में पॉलिटिक्स:केरल में 9% मछुआरा समाज के वोटर्स हैं; 40 से 45 सीटों पर इनका प्रभाव है, अभी हर जगह राहुल गांधी से इनकी मुलाकात की चर्चा हैपहले कोविड और अब डीजल के दाम बढ़ने से करीब 90% मछुआरे नियमित रूप से मछली पकड़ने नहीं जा रहे
यहां ट्रेड यूनियंस मछली के कारोबार में दखल रखती हैं, ज्यादातर पर कम्युनिस्ट ट्रेड यूनियंस की पकड़ है
कुछ दिन पहले आपने राहुल गांधी की दो तस्वीरें देखी होंगी। एक में वह समुद्र में तैर रहे हैं, दूसरे में वह मछुआरों के फिश नेट लिए हुए हैं। यह दोनों तस्वीरें केरल के कोल्लम जिले की हैं। यह वही इलाका है, जहां बड़ी संख्या में मछुआरे हैं। हालांकि अब यहां के विपक्षी नेता राहुल की दूसरी तस्वीर को लेकर अपनी रैलियों में सवाल उठा रहे हैं, कह रहे हैं कि राहुल के नेट में तो सिर्फ एक ही मछली फंसी। इसलिए मछुआरे भी उनके जाल में नहीं फंसेंगे।
केरल में मछुआरा समुदाय के 8% से 9% वोटर्स हैं
वैसे भी केरल में चुनाव हों और मछुआरे चर्चा में न हों, ऐसा संभव नहीं है, क्योंकि मछुआरे राज्य की 40 से 45 सीट पर हार जीत का फैसला करते हैं। सेंटर फॉर पब्लिक पॉलिसी रिसर्च (CPPC) के चेयरमैन डॉक्टर धनुराज कहते हैं कि राहुल गांधी कांग्रेस की स्ट्रेटजी के तहत ही मछुआरों से मिलने गए थे। कोल्लम, त्रिवेंद्रम, अल्लेप्पी, त्रिशूर, पोनानी और एर्नाकुलम जिले में इस समुदाय का काफी दबदबा है। केरल में समुदाय के 8% से 9% वोटर्स हैं। इन इलाकों में लैटिन कैथोलिक मछुआरे बड़ी संख्या में रहते हैं।
राहुल गांधी के जाने से लोग कांग्रेस से जुड़ेंगे
डॉ. धनुराज कहते हैं कि कोस्टल इलाका परंपरागत रूप से UDF का इलाका है, लेकिन पिछले कुछ चुनावों में यहां LDF जीत रही थी। लेकिन अब अमेरिकी कंपनी EMCC इंटरनेशनल के साथ विजयन सरकार की 2950 करोड़ रुपए की फिशिंग डील से LDF काफी डैमेज हुई है। ऐसे मौके पर मछुआरों के बीच में राहुल गांधी के जाने से और लोग जुड़ेंगे। इसलिए अब विजयन राहुल पर पसर्नल अटैक कर रहे हैं और उन्हें टूरिस्ट बता रहे हैं। कांग्रेस के अटैक के कारण ही विजयन को डील कैंसिल करनी पड़ी।
सी फूड एक्सपोर्ट यूनिट्स में काम करने वालों में 80% महिलाएं हैंअल्लेप्पी केरल का फिश और सी फूड एक्सपोर्ट का हब है। 80% फिश एंड सी फूड एक्सपोर्ट यूनिट्स यही हैं। करीब 3 लाख परिवार इस बिजनेस से जुड़े हैं। करीब 10 लाख लोग इसमें काम करते हैं। इनमें 80% से 90% महिलाएं हैं। यहां से यूरोपीय देशों, अमेरिका, चीन, जापान जैसे देशों को सी फूड सप्लाई होता है। लेकिन अभी यहां फूड एक्सपोर्ट्स की हालात खस्ता है।
डीजल का दाम बढ़ने से अल्लेपी में 90% मछुआरे समुद्र में मछली पकड़ने नहीं जा रहे
केरल के अल्लेप्पी में स्थित मंगला मरीन कंपनी केरल की सबसे बड़ी सी फूड एक्सपोर्टर कंपनियों में से एक है। कंपनी के मैनेजिंग प्रेमचंद्र भट्ट कहते हैं कि मेरी यहां चार फैक्टरी हैं, 650 से ज्यादा मजदूर यहां काम करते हैं, लेकिन कोविड के बाद से 80% काम ठप हो गया है। सरकार से हम पैकेज की मांग कर रहे थे लेकिन वो भी नहीं मिला। सी कैच और रॉ मैटेरियल की बहुत क्राइसिस है। ऊपर से अब डीजल के दाम 30% तक बढ़ गए हैं, ज्यादा खर्चे के चलते 90% मछुआरे अब भी नियमित रूप से समुद्र में नाव लेकर मछली पकड़ने नहीं जा रहे हैं। फिशिंग हार्बर को भी ट्रेड यूनियन्स ही चलाती हैंएर्नाकुलम से करीब 30 किमी दूर फिशिंग हार्बर पहुंचने पर गेट के एक छोर पर भाजपा का तो दूसरे पर CPM का झंडा लगा हुआ है। बगल में ही भारतीय मजदूर संघ (BMS) का ऑफिस है, अंदर दीनदयाल उपाध्याय और नरेंद्र मोदी की फोटो चस्पा है। पूछने पर पता चला इस हार्बर पर BMS ट्रेड यूनियन का कब्जा है। अंदर नावें एक तरफ से खड़ी हैं। हिनेश की नाव भी यहीं खड़ी है।
हिनेश कहते हैं कि हम अपनी बोट को पांच से सात दिन के लिए अंदर समुद्र में ले जाते हैं, इसमें एक से डेढ़ लाख रुपए का खर्चा आता है, लेकिन अब डीजल का दाम बढ़ जाने से इसे ले जाना मुश्किल हो गया है। अजीत बताते हैं कि आजकल मछली भी कम आ रही हैं, इसलिए भी नहीं जा रहे हैं। चुनाव पर बातचीत करने पर वहीं खड़े अजीत कहते हैं कि हमारे इलाके से तो BJP ही जीतेगी, अभी लोकल बॉडी इलेक्शन में भी वही जीती थी। सुरेश कहते हैं लेकिन बाकी जगहों पर कम्युनिस्ट मजबूत हैं।