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पुलिस में भर्ती हो रहे किन्नरों की कहानी:घरवालों ने छोड़ा तो भीख मांगकर गुजारा किया,

पुलिस में भर्ती हो रहे किन्नरों की कहानी:घरवालों ने छोड़ा तो भीख मांगकर गुजारा किया, मरने का ख्याल तक आया, अब पहनेंगी सम्मान की खाकीयह पहली बार हुआ है जब छत्तीसगढ़ पुलिस में 15 किन्नरों का सिलेक्शन हुआ है
आरक्षक भर्ती के नतीजे सोमवार को जारी कर दिए गए। 2259 पदों पर पूरे राज्य से उम्मीदवारों का चयन हुआ है। खास बात ये है कि पहली बार छत्तीसगढ़ पुलिस में थर्ड जेंडर शामिल होने जा रहे हैं। प्रदेश के 15 किन्नरों का भी आरक्षक पद के लिए चयन हुआ है। संभवत: यह देश का पहला राज्य है, जहां इतनी संख्या में किन्नर पुलिस में शामिल हो रहे हैं।

रायपुर की रहने वाली विद्या राजपूत किन्नर समुदाय के अधिकारों के लिए पिछले कई सालों से काम कर रही हैं। सोमवार की दोपहर जब पुलिस भर्ती के नतीजे आए तो लिस्ट में अपने साथियों का नाम देखकर हैरानी भी हुई और खुशी भी। यह पहली बार है जब इस तरह की सरकारी नौकरी में समाज का तिरस्कार झेल रहे वर्ग को मौका दिया गया।शबूरी ने बताया, ‘खाकी पुलिस का गौरवशाली यूनिफॉर्म तो है ही, उससे भी कहीं ज्यादा ये मेरे लिए सम्मान की खाकी है। इस वर्दी की सभी इज्जत करते हैं। बचपन में मैं लड़कों से अलग थी। सभी मेरा मजाक बनाते थे, गालियां देते थे। तब मैंने देखा था कि सभी पुलिस से डरते हैं, सम्मान करते हैं। तभी सोच लिया था कि बड़ी होकर पुलिस में जाऊंगी। जब साल 2017 में ये पता चला कि हमें भी पुलिस भर्ती में मौका मिल सकता है तो तैयारी में लग गए। मैदान में जाना और फिजिकल ट्रेनिंग की तैयारी करना बेहद मुश्किल रहा। मगर अब जब सिलेक्शन हुआ है तो बहुत खुशी है। अब तक हम ‍जिस सम्मान के लिए तरसते थे, वो पुलिस यूनिफॉर्म हमें वो सम्मान दिलाएगी।’शिवन्या ने बताया, ‘पैसों की तंगी की वजह से मां के साथ घरों में झाड़ू-पोछा लगाने का काम भी किया। जब लड़कियों की तरह रहने लगी तो मालिकों ने काम से निकालने का दबाव बनाया। वो काम हाल ही छोड़ना पड़ा। कॉलेज में पढ़ाई के लिए पहुंची तो टॉयलेट जाते वक्त लड़के छेड़ते थे। जब लंच टाइम होता था तो टॉयलेट नहीं जाती थी, क्योंकि सभी स्टूडेंट बाहर ही होते थे और मजाक बनाते थे। क्लास शुरू होने पर टॉयलेट जाने से टीचर डांटते थे। कभी लोग मामू तो कभी किन्नर कहकर चिढ़ाते थे। एक बार कॉलेज के लड़कों ने टॉयलेट में बंद कर दिया था। इस तरह की छेड़छाड़ झेलकर पढ़ाई जारी रखी। मुझे देखकर लड़कियां भी मुंह बनाती थीं, आपस में फुसफुसाया करती थीं। मगर मैंने भी कुछ बनने की कोशिश जारी रखी और कामयाबी मिली।’दिप्शा ने बताया, ‘बचपन में जब लोग मुझे लड़कियों की तरह कपड़े पहनने या सजने पर चिढ़ाते थे तो बुरा लगता था। मैं सोचती थी कि भगवान ने मुझे क्यों नॉर्मल जिंदगी नहीं दी। इस वजह से मैंने सुसाइड करने की भी कोशिश की थी। मैंने जहर पी लिया था। मगर मुझे डॉक्टरों ने नया जीवन दिया। किन्नरों के अधिकारों के लिए काम करने वाली विद्या जी के संपर्क में आने के बाद मैंने हालातों से लड़ना सीखा। मैंने समझा कि मुझे खुद को स्वीकारते हुए आगे बढ़ना होगा। हमारे मुहल्ले के एक लड़के ने मुझसे छेड़छाड़ की थी, मैंने विरोध किया तो उसने चाकू से हमला कर दिया था। समाज का यह रूप देखकर मैंने खुद को संभाला। मेरे घर वाले भी कहते थे कि कुछ बनकर दिखाओ, खुद को साबित करो। इसी से मैंने खुद को मोटीवेट किया और अब पुलिस सर्विस में मेरा ‍सिलेक्शन हुआ है।’रायपुर की नैना ने बताया, ‘4 साल पहले व्यवहार बदलने पर घर वालों ने मुझे घर से निकाल दिया था। घर वाले मुझ पर लड़कों की तरह रहने के लिए दबाव बनाते थे। मगर मैं अपने अंदर एक औरत महसूस करती थी। मैं लड़कियों की तरह रहना चाहती थी। मैं रायपुर में एक कपड़े की दुकान पर काम करती थी। लॉकडाउन में नौकरी चली गई। इसके बाद हाईवे पर ट्रक वालों से भीख मांगकर दो वक्त की रोटी का इंतजाम किया। इसी हाल में पुलिस भर्ती की तैयारी की। प्रैक्टिस की बदौलत अब सिलेक्शन भी हो गया है।’

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