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अमेरिका में बाइडेन सरकार भी गूगल-फेसबुक जैसी टेक कंपनियों का समर्थन नहीं करती

अमेरिका में बाइडेन सरकार भी गूगल-फेसबुक जैसी टेक कंपनियों का समर्थन नहीं करती, दूसरे देश जो पाबंदी लगा रहे, उससे अमेरिका भी सीखेगा: मार्टी बैरनवॉशिंगटन पोस्ट के एग्जीक्यूटिव एडिटर मार्टी बैरन से खास बातचीत, वे रविवार को रिटायर हुए हैं
जाने-माने पत्रकार और अमेरिकी अखबार वॉशिंगटन पोस्ट के एग्जीक्यूटिव एडिटर मार्टी बैरन रविवार यानी 28 फरवरी को रिटायर हो गए। उससे पहले एक बातचीत में बैरन ने गूगल और फेसबुक जैसे सोशल मीडिया जाइंट्स को लेकर बड़ी बात कही।

मार्टी बैरन ने कहा कि अमेरिका में बनी नई बाइडन सरकार भी गूगल-फेसबुक जैसी टेक कंपनियों का समर्थन नहीं करती। बाइडेन प्रशासन या कांग्रेस के बड़े नेताओं का भी इन टेक कंपनियों से कोई खास लगाव नहीं है। बैरन ने कहा कि अमेरिकी सरकार दुनिया के दूसरे देशों में इन बड़ी टेक कंपनियों को कैसे रेगुलेट किया जा रहा है, उससे कुछ सीखना चाहेगी।

बैरन से बात की है इंडियन एक्सप्रेस के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर अनंत गोयनका ने। इस ऑनलाइन इंटरव्यू में बैरन ने सोशल मीडिया और सरकारों के टकराव से लेकर दुनियाभर के अखबारों के सामने मौजूद डिजिटल मीडिया की चुनौतियों के बारे में विस्तार से बताया। पढ़ें पूरा इंटरव्यू…

अनंत गोयनका: सबसे पहले एक सफल और प्रभावशाली कार्यकाल के अंतिम दिन समय निकालकर हमसे बात करने के लिए आपका शुक्रिया।
मार्टी बैरन: जी बिल्कुल… मेरे कार्यकाल के दौरान एक के बाद एक ऐसी घटनाएं और खबरें हुईं, जिसकी वजह से यहां मेरा कैरियर काफी इवेंटफुल रहा। हाल ही में डोनाल्ड ट्रम्प प्रशासन से जुड़ी खबरें, उसके पहले नेशनल सिक्योरिटी एजेंसी, एडवर्ड स्नोडेन डॉक्यूमेंट लीक केस, कैथोलिक चर्च इन्वेस्टिगेशन (2015 में मूवी स्पॉटलाइट की प्रेरणा इसी केस से मिली थी), 2000 में राष्ट्रपति चुनाव के दौरान फ्लोरिडा का विवाद हो या फिर 9/11 के साथ-साथ तमाम दुनिया में अमेरिकी सेना की कार्रवाई हो, वाकई मेरे कार्यकाल के दौरान काफी घटनाएं हुईं।

गोयनका: क्या बाइडन प्रशासन को आप सोशल मीडिया के प्रति पहले से ज्यादा सख्त रुख अपनाते हुए देख रहे हैं?
बैरन: यह तो साफ है कि डेमोक्रैट्स को इन टेक कंपनियों से कोई खास लगाव नहीं है। लेफ्ट समेत ये लोग भी अपने तरीके से इन्हें कोसते रहे हैं। जाहिर है टेक कंपनियां किसी न किसी रूप में हर विचारधारा के निशाने पर हैं। बाइडेन प्रशासन या कांग्रेस के बड़े नेताओं का भी टेक कंपनियों से कोई खास लगाव नहीं है।

गोयनका: परंपरागत तौर पर अमेरिकी सरकारों ने दुनिया भर में बिजनेस करने के लिए अपने देश की कंपनियों का समर्थन किया है..जैसे GE,पेप्सी और बोइंग। क्या गूगल, फेसबुक और टेस्ला को भी ऐसा ही समर्थन मिलेगा?
बैरन: मुझे ऐसा नहीं लगता, बल्कि अमेरिकी सरकार दुनिया के दूसरे देशों में इन बड़ी टेक कंपनियों को कैसे रेगुलेट किया जा रहा है, उससे कुछ सीखना चाहेगी। अमेरिका मैनुफैक्चरिंग सेक्टर की तरह इनका बचाव करे ऐसा मुझे नहीं लगता।

गोयनका: जो ऑस्ट्रेलिया में हुआ उसे आप कैसे देखते हैं? किसी टेक कंपनी के साथ अपने झगड़े को एक देश का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या बाकी दुनिया के नेताओं को बता रहा है.. यह पहले कभी नहीं हुआ…
बैरन: ऑस्ट्रेलिया में जो हुआ, वह धीरे-धीरे बाकी जगह भी होगा। वहां फेसबुक के प्रभाव ने सरकार को कदम उठाने के लिए मजबूर किया। अब दोनों के बीच समझौता हो चुका है। नीतियां ऐसे ही बनती हैं। दुनिया के दूसरे देशो में भी पॉवर और रेवेन्यू को लेकर संघर्ष देखने को मिलेगा और वहां भी ऐसे कदम उठाए जा सकते हैं।

गोयनका: सरकारें अब सोशल मीडिया को नियंत्रित करने लगीं हैं। जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया के बाद हाल ही में भारत ने भी कुछ नियम बनाए हैं। अमेरिका के 40 से ज्यादा राज्यों केस दाखिल किए हैं.. इस तरह सरकारों के सक्रिय होने के क्या परिणाम हो सकते हैं?
बैरन: ये अच्छी बात नहीं है.. क्योंकि मुझे लगता है कि सरकार में काम कर रहे लोगों को या नेताओं को डिजिटल दुनिया की सही समझ नहीं है। हमें सही और गलत बताने वाली सरकार से सावधान रहना होगा। मुझे मेरे समाचार पत्र में क्या छापना है, क्या नहीं, यह मुझे कोई और नहीं बता सकता। फिर चाहे वहट्रम्प प्रशासन हो या बाइडन की सरकार। सरकारें हमें सही और गलत बताएं, इसके पक्ष में मैं बिल्कुल नहीं हूं।

फेसबुक और गूगल जैसी कंपनियों के साथ ऐसा नहीं है। उनकी जैसी टेक कंपनियों के विकल्प मौजूद हैं। हर कंपनी अपनी अलग पॉलिसी बनाने के लिए आजाद है। लेकिन यह इतना आसान भी नहीं। मैं तो किसी भी सरकारी नियंत्रण के खिलाफ हूं।

गोयनका: 6 जनवरी को कैपिटल हिल में जो हुआ उसे देखते हुए क्या राष्ट्रपति ट्रम्प को सोशल मीडिया से सेंसर करने का फैसला सही था?
बैरन: राष्ट्रपति ट्रम्प गलत जानकारी और झूठ फैलाकर हमारे चुनावी प्रक्रिया को नुकसान पहुंचा रहे थे। इसका परिणाम भी हमनें 6 जनवरी को देखा। मुझे लगता है यह सही फैसला था।

गोयनका: दुनिया के कुछ हिस्सों में इसे अपने वोटरों से बात करने के ट्रम्प के अधिकार पर हमला माना गया। सिलिकॉन वैली में बैठे लोग इतने ताकतवर हो सकते हैं कि वो अमेरिका के राष्ट्रपति को रोक सकें?
बैरन: मुझे लगता है कि इस गलत ढंग से पेश किया जा रहा है। ट्रम्प कभी भी फॉक्सन्यूज़, वन अमेरिका न्यूज़ नेटवर्क, न्यूज़मैक्स जैसे चैनलों पर जा सकते थे। ये समाचार समूह उनके मुखपत्र रहे हैं। अगर ये ट्रम्प के भोंपू बनने का तय कर सकते हैं तो दूसरों को भी अपनी नीति बनाने का अधिकार क्यों नहीं है?

गोयनका: इस विभाजित दुनिया में फेसबुक, गूगल और ट्विटर जैसे प्लेटफॉर्म्स पर भी पक्ष-विपक्ष का साथ देने या ना देने के आरोप लग रहे हैं। इसके बारे में आप क्या कहेंगे?
बैरन: मुझे लगता है कि जब फेसबुक, गूगल और ट्विटर ने अपना बिजनेस शुरू किया होगा, तब उन्हें अंदाजा भी नहीं होगा कि ऐसी परिस्थिति का सामना करना पड़ सकता है। फिलहाल वे किसी का पक्ष नहीं ले रहे। हां, दुनियाभर में उनका जैसा प्रभुत्व है, ऐसे में उन्हें अपनी भूमिका तय करने की मशक्कत करनी पड़ रही है।

हमारे जैसे समाचार संस्थानों को मालूम है कि हमें किस तरफ रहना है। हमें आलोचना झेलने की आदत है, लेकिन इन्हें ऐसा अनुभव नहीं है। मुझे मालूम के उनके पास क्या विकल्प हैं, लेकिन जल्दी ही उन्हें अपनी राय स्पष्ट करके उस पर टिके रहने की तैयारी कर लेनी चाहिए।

गोयनका: ऑस्ट्रेलिया में कानून बनने के बाद दुनियाभर में समाचार प्रकाशकों और टेक कंपनियों के रिश्तों पर काफी हलचल देखने को मिल रही है। फेक न्यूज या गलत जानकारी को लेकर इन कंपनियों की भूमिका या जिम्मेदारी को आप कैसे देखते हैं?
बैरन: मुझे लगता है कि यदि आपके पास लोगों को प्रभावित करने की ताकत है तो आपको जिम्मेदारी भी लेनी पड़ेगी। अब ऐसा नहीं चल सकता कि आप पैसा तो कमाएं, लेकिन किसी तरह की जिम्मेदारी न लें। अभी तक तो टेक कंपनियां जिम्मेदारी की बात आते ही समाचार समूहों पर टाल देती थीं। अपनी जिम्मेदारी तय करने को लेकर ही ये टेक कंपनियां मुश्किलें झेल रही हैं।

गोयनका: आप समाचार प्रकाशकों के प्रति इनकी क्या जिम्मेदारी मानते हैं?
बैरन: मुझे लगता है कि मुद्दा हमारे कंटेंट से पैसा कमाने को लेकर है। यह तो साफ है कि केवल हमारे समाचार दुनियाभर में पहुंचाकर वो आसानी से पैसा कमा रहे हैं। अगर गूगल नहीं होता तो हम वॉशिंगटन तक ही सीमित रहते, लेकिन फेसबुक गूगल और ट्विटर जैसे प्लेटफॉर्म की मदद से हम अब दुनियाभर में पढ़े जा रहे हैं। हमें इस बात का इल्म है कि उनसे हमें फायदा हुआ, लेकिन उनका भी फायदा हुआ। यह भी उन्हें मानना होगा। तो सवाल यह है कि कि कमाई को बांटा कैसे जाए?

गोयनका: अपनी पोस्ट से ज्यादा फॉलोअर वाले पॉप स्टार्स के बारे में आपका क्या विचार है, खासकर अब जब रिहाना या ट्रेवर नोआ जैसे स्टार्स जो अब समसामायिक मुद्दों पर ट्वीट करते हैं।
बैरन: सोशल मीडिया पर बात करने को लेकर मैं थोड़ा नर्वस रहता हूं, लेकिन जब हम ऑनलाइन या अपने अखबार में कुछ लिखते या छापते हैं तो वह कई स्तर से गुजरता है। उसकी सत्यता की जिम्मेदारी हमारी होती है। लेकिन ऐसा सोशल मीडिया पर कर पाना मुश्किल है। मुझे लगता है कि सोशल मीडिया पर भी पत्रकारों को उसी तरह से बर्ताव करना चाहिए जैसे वो अपने अखबार या ऑनलाइन संस्करण के लिए खबरें लिखते वक्त करते हैं।

चिंता उन लोगों से होती है जो बिना सोचे समझे कुछ भी पोस्ट कर देते हैं। पढ़ने वालों को लगता है कि यह उनके संस्थान की राय है या संस्थान का रुख वैसा है। पॉप स्टार जो कर रहे हैं, वो तो बंद नहीं होने वाला। आम जनता को तय करना होगा कि स्टार जिस विषय अपने विचार पोस्ट कर रहा है, उस मुद्दे से स्टार का कितना लगाव है या उसे कितना मालूम है।

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