महाकिन्नर सम्मेलन:किन्नर हूं इसमें मेरा क्या दोष, आज तक मलाल है कि पिता ने कभी गले नहीं लगाया

महाकिन्नर सम्मेलन:किन्नर हूं इसमें मेरा क्या दोष, आज तक मलाल है कि पिता ने कभी गले नहीं लगाया: सपनादेहरादून की सपना ने अपने बचपन के दिनाें काे याद किया
ताने सहकर पढ़ाई की, जिम में पोछा मारकर फैशन डिजाइनिंग में टॉपर बनीं, यूनिवर्सिटी में पढ़ाया लेकिन बिना कारण बताए निकाल दिया, अब फ्रीलांसर मेकअप अार्टिस्ट की तौर पर काम कर रहीं
किन्नर शब्द सुनते ही दिलाें-दिमाग में नाचने-गाने व लाेगाें के घर बधाई मांगने वाले छा जाते हैं, लेकिन वक्त के साथ पूर्वधारणाओं में बदलाव आ रहे हैं। अब वही नाचने-गाने वाले किन्नर खुद काे आत्मनिर्भर बना रहे हैं। महाकिन्नर सम्मेलन में मुलाकात हुई देहरादून की रहने वाली सपना से।

वह बिजनेसमैन परिवार से संबंध रखती हैं। बचपन में जब परिवार वालाें काे पता चला कि गाैरव (बदला हुआ नाम सपना) किन्नर है ताे पिता साेमप्रकाश ने उससे नजरें चुरा ली। उसे घर में ताे रखा लेकिन पिता का प्यार नसीब नहीं हुआ। अगर बेटे गाैरव काे काेई बात कहनी हाेती ताे वह उसकी मां के हाथ संदेश दे देते। मां संताेष ने हमेशा उसे बेटा मानकर हर पल उसका साथ दिया। देहरादून गवर्नमेंट इंटरकाॅलेज से 12वीं की। स्कूल में उसे अक्सर बच्चे हिजड़ा व गे कहकर बुलाते। लेकिन उसने कभी भी लाेगाें की परवाह नहीं की।

सपना फैशन डिजाइनर बनना चाहती थी। मां ने उसके इस फैसले में साथ दिया। वाे चंडीगढ़ फैशन डिजाइनिंग का काेर्स करने अाई। जब उसे पढ़ाई व खर्चाें के लिए पैसाें की जरूरत महसूस हाेने लगी ताे उसने जिम में झाड़ू लगाने का काम करना शुरू किया।

अपने कमरे से टिफिन सर्विस शुरू की। जब फाइनल एग्जाम आए ताे टाइफाइड हाे गया। बुखार में ही उसने एग्जाम दिए। रिजल्ट जब आया ताे उसने टाॅप किया। टाॅपर हाेने के चलते वीएलसीसी की तरह से मेकअप आर्टिस्ट का एडवांस काेर्स करने के लिए स्काॅलरशिप मिली। 2016 में काेर्स पूरा हाेने के बाद सपना अपने घर देहरादून लाैट गई। वहां उसने दून यूनिवर्सिटी में बताैर फैशन डिजाइनिंग टीचर का काम शुरू किया। क्याेंकि पापा हमेशा कहते थे कि तेरा इस घर में कुछ नहीं है। जाे कुछ भी करना है अपनी कमाई से ही कराे।

उसे यूनिवर्सिटी में काम करते हुए एक साल हाे गया था कि अचानक एक दिन जाॅब से बिना कारण निकाल दिया। लेकिन उसे पता चल गया था कि ट्रांस हूं इसलिए वहां के अन्य टीचर्स नहीं चाहते थे कि काम करूं। दाेबारा चंडीगढ़ आईं। उस समय खाने के लिए राेटी व रहने के लिए छत भी नहीं थी। ताे काजल मंगलामुखी, जिनसे उसे एजीबीटीक्यू परेड के दाैरान मिली थी। उनकाे काॅल किया ताे उन्हाेंने अपने डेरे पर मनीमाजरा बुलाया। वहां जाकर उन्हाेंने उसे कहा कि तुम यहीं रहाे।

वहां उनकी गुरु महंत नीलम ने उसे कहा कि तुम बधाई लेने का काम नहीं कराेगी। पढ़ी-लिखी हाे ताे अपनी पहचान बनाओ। डेढ़ साल से डेरे में रह रही हूं। यहां उसे नया नाम सपना मिला। अब वह बताैर फ्रीलांसर मेकअप आर्टिस्ट काम कर रही हैं। इसके साथ ही फैशन डिजाइनर की जाॅब की तलाश में भी हैं। अब सिर्फ तीज-त्याेहार पर ही घर जाती हैंं। जब घर जाती हूं ताे पापा कहते हैं बाहर मत निकला कराे, घर में ही रहा कराे। सपना बताती हैं कि जब पापा काे छाेटी बहन प्रिया और रानी काे प्यार करते हुए देखती हूं ताे दिल दुखता है, क्याेंकि मेरे पापा ने मुझे आज तक गले नहीं लगाया। इसका हमेशा मलाल रहेगा।

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