राजद्रोह पर भास्कर 360°:भाजपा शासित राज्यों में केस बढ़े, कांग्रेस सरकार में एकसाथ सबसे ज्यादा लोगों पर लगाया गया राजद्रोहकानून का दुरुपयोग रोकने के लिए विधि आयोग ने की है अनुशंसा, भारत की शिक्षा नीति बनाने वाले मैकाले ने ही तैयार किया था ड्राफ्ट
कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के आंदोलन के बीच IPC की धारा-124 (ए) यानी राजद्रोह कानून एक बार फिर से चर्चा में है। बीते मंगलवार को ही दिल्ली की एक अदालत ने किसान आंदोलन के दौरान सोशल मीडिया पर फेक वीडियो पोस्ट कर अफवाह फैलाने और राजद्रोह के मामले के दो आरोपियों को जमानत देते हुए इस कानून को लेकर टिप्पणी की है।
अदालत ने कहा है कि उपद्रवियों का मुंह बंद कराने के बहाने असंतुष्टों को खामोश करने के लिए राजद्रोह का कानून नहीं लगाया जा सकता। हालांकि ऐसा पहली बार नहीं है, जब कोर्ट ने इस कानून के दुरुपयोग को लेकर कोई टिप्पणी की हो। सुप्रीम कोर्ट और विधि आयोग भी इसके दुरुपयोग को लेकर टिप्पणी कर चुके हैं।
150 साल पहले कानून लागू हुआ
दरअसल, 1870 में जब से यह कानून प्रभाव में आया, तभी से इसके दुरुपयोग के आरोप लगने शुरू हो गए थे। अंग्रेजों ने उनके खिलाफ उठने वाली आवाजों को दबाने के लिए इस कानून का इस्तेमाल किया। इस धारा में सबसे ताजा मामला किसान आंदोलन टूलकिट मामले से जुड़ी पर्यावरण कार्यकर्ता दिशा रवि पर दर्ज हुआ है।
आजादी के बाद केंद्र और राज्य की सरकारों पर भी इसके दुरुपयोग के आरोप लगते रहे। केंद्र में भाजपा की सरकार आने के बाद से राजद्रोह के मामलों पर चर्चा बढ़ गई है। हालांकि इसके पहले की सरकारों में भी राजद्रोह के मामले चर्चित रहे हैं। साल 2012 में तमिलनाडु के कुडनकुलम में परमाणु संयंत्र का विरोध करने पर 23,000 लोगों पर मामला दर्ज किया गया, जिनमें से 9000 लोगों पर एक साथ राजद्रोह की धारा लगाई गई।
हालांकि गौर करने वाली बात यह है कि केंद्र में भाजपा की सरकार आने के बाद से ही NCERB ने 2014 से राजद्रोह के मामलों का अलग से रिकॉर्ड रखना प्रारंभ किया है। खास बात यह है कि हमारे देश में ब्रिटिश दौर का यह कानून जारी है पर ब्रिटेन ने 2009 में इसे अपने देश से खत्म कर दिया है।क्या है राजद्रोह?
कोई भी व्यक्ति देश-विरोधी सामग्री लिखता, बोलता है या ऐसी सामग्री का समर्थन करता है, या राष्ट्रीय चिन्हों का अपमान करने के साथ संविधान को नीचा दिखाने की कोशिश करता है, तो उसे आजीवन कारावास या तीन साल की सजा हो सकती है।- आईपीसी 124-ए
सर्वाधिक मामलों वाले 5 राज्यों में 3 भाजपा के
10 साल में राजद्रोह के सर्वाधिक मामले जिन पांच राज्यों में दर्ज हुए उनमें बिहार, झारखंड और कर्नाटक में अधिकांश समय भाजपा या भाजपा समर्थित सरकार रही। इन राज्यों में 2010 से 2014 की तुलना में 2014 से 2020 के बीच हर वर्ष 28% की बढ़ोतरी दर्ज की गई।
पहले अंग्रेजों ने दुरुपयोग किया, फिर सरकारों पर लगे आरोप
1891 राजद्रोह के तहत पहला मामला दर्ज किया गया। बंगोबासी नामक समाचार पत्र के संपादक के खिलाफ ‘एज ऑफ कंसेंट बिल’ की आलोचना करते हुए एक लेख प्रकाशित करने पर मामला दर्ज हुआ।
1947 के बाद आरएसएस की पत्रिका ऑर्गनाइजर में आपत्तिजनक सामग्री के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था। सरकार की आलोचना पर क्रॉस रोड्स नामक पत्रिका पर भी केस दर्ज हुआ था। सरकार विरोधी आवाजों और वामपंथियों के खिलाफ भी इसका इस्तेमाल होता रहा।
2012 इस कानून के तहत सबसे बड़ी गिरफ्तारी हुई। तब केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी। तमिलनाडु के कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा संयंत्र का विरोध कर रहे लोगों में से 9000 के खिलाफ धारा लगाई गई।कानून कैसे बना, कितना बदला, अब आगे क्या?
कब से शुरू हुआ, किसने बनाया- ब्रिटिश काल में 1860 में आईपीसी लागू हुई। इसमें 1870 में विद्वेष भड़काने की 124ए धारा जोड़ी गई। थॉमस बबिंगटन मैकाले ने इसका पहला ड्राफ्ट तैयार किया था। मैकाले ने ही भारत की शिक्षा नीति तैयार की थी।
क्यों बनाया- 1870 के दशक में अंग्रेजी हुकूमत के लिए चुनौती बने वहाबी आंदोलन को रोकने के लिए बनाया गया था।
पहली बार राजद्रोह कब जुड़ा- बालगंगाधर तिलक पर 1897 में इसके तहत मुकदमा दर्ज हुआ। इसके मामले में ट्रॉयल के बाद सन 1898 में संशोधन से धारा 124-ए को राजद्रोह के अपराध की संज्ञा दी गई।
आजादी के बाद क्या हुआ- आजादी के बाद भी यह IPC में बनी रही। हालांकि इसमें से 1948 में ब्रिटिश बर्मा (म्यांमार) और 1950 में ‘महारानी’ और ब्रिटिश राज’ शब्दों को हटा दिया गया।
सजा में क्या बदलाव हुआ- 1955 में कालापानी की सजा हटाकर आजीवन कारावास का प्रावधान किया गया।
विरोध का क्या हुआ-1958 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इसे असंवैधानिक करार दिया। पर 1962 में सुप्रीम कोर्ट ने वैध ठहराते हुए इसके दुरुपयोग को रोकने के लिए शर्तें लगा दीं। 2018 में विधि आयोग ने भी इसका दुरुपयोग रोकने के लिए कई प्रतिबंध लगाने की अनुशंसा की। सुप्रीम कोर्ट के फैसले और विधि आयोग की अनुशंसा लागू करने के लिए संसद के जरिए कानून में बदलाव करना होगा।
चार देश जहां राजद्रोह जैसे कानून पर हुए विवाद, दो ने इसे खत्म किया
ब्रिटेन : अभिव्यक्ति पर दमनकारी प्रभाव और लोकतंत्र के मूल्यों पर आघात की वजह से 2009 में इसे खत्म कर दिया गया।
न्यूजीलैंड : लोकतांत्रिक मूल्यों को आघात पहुंचाने और विपक्ष का मुंह बंद कराने का औजार बनने के चलते 2007 में यह कानून समाप्त।
अमेरिका : कोर्ट ने अभिव्यक्ति की आजादी पर राजद्रोह कानून के दमनकारी प्रभाव की आलोचना की है। राजनीतिक भाषणों को व्यापक संरक्षण है।
आस्ट्रेलिया : कई राज्यों में राजद्रोह कानून मौजूद। 1985 के बाद से इस कानून का दायरा सीमित हुआ है। जेल की जगह जुर्माने का दंड है।