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आंदोलन का मेला तो है, मगर चेहरों के भाव बदल गएसिर से गुजर चुकी पूरी सर्दी

कुंडली बॉर्डर से ग्राउंड रिपोर्ट:आंदोलन का मेला तो है, मगर चेहरों के भाव बदल गएसिर से गुजर चुकी पूरी सर्दी, किसानों का जज्बा बरकरार
किसान बोले- सियासतदानों के बयान बदलते हैं, हमारी किस्मत नहीं
कृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली बॉर्डर पर तीन महीने से किसान डेरा जमाए हैं। पूरी सर्दी सिर से गुजर गई, आंदोलन लंबा खिंच रहा है तो यहां का नजारा भी मौसम की तरह बदल रहा है। जहां एक माह पहले कुंडली बॉर्डर पर तिल रखने की जगह भी नहीं होती थी, अब वैसी रौनक नहीं दिख रही।

किसानों के चेहरों की झुर्रियां गम और दर्द साफ बयां कर रही थीं। इतना सब होने के बावजूद किसानों का हौसला ठीक वैसा ही है, जैसा वे धरती का सीना चीरकर अनाज उगाने में दिखाते हैं। धरनास्थल पर यही कोई 10 से ज्यादा किलोमीटर में ट्रैक्टर-ट्रॉलियों का जमावड़ा लगा है। चौकस निगाह जमाए खड़े किसान बिंद्र सिंह से पूछा तो बोले- जिन लाेगों के ट्रैक्टर सुनसान दिख रहे हैं, वे रोटेशन पर घर गए हैं। बदले में दूसरा जत्था आ पहुंचा है। होशियारपुर से आई ट्रॉली में 28 किसानों के रहने-सोने के बंदोबस्त किए गए, पर यहां महज तीन धरतीपुत्र बैठे थे, संख्या कम होने का कारण पूछा तो जवाब मिला, अभी वे ट्रॉली में 9 लोग रह रहे हैं, शेष परिजनों से मिलने गए हैं।

जब वे लौटेंगे तब हमारी घर जाने की बारी आएगी। यहां 200-250 की क्षमता वाले पंडाल में तकरीबन 20 किसान ताश खेलते व हुक्का गुड़गुड़ाते दिखे। जब उनसे पूछा तो बोले- सियासतदानों के बयान बदलते रहते हैं, पर आज तक किसानों की किस्मत कभी नहीं बदली। उन्हें तो यूं ही संघर्ष करते रहना है, आर-पार की लड़ाई है, हर हाल में जीतकर ही लौटेंगे।

संयुक्त मोर्चा के रोटेशन सिस्टम के बाद से कुंडली, टिकरी व रेवाड़ी-राजस्थान के बीच खेड़ा बॉर्डर पर किसानों की संख्या घटी है। ट्रॉली में बैठे पंजाब के नवां शहर से आए किसानों ने बताया कि वे 5 दिन पहले ही आए हैं। तब से ही उनकी मज (भैंस) जहां बांधकर आए थे, वहीं खड़ी है, क्योंकि वह मारती है, घरवाले उसे दूर से घास-पानी दे देते हैं, लेकिन दूसरी जगह बांधने से डरते हैं। वहीं, खड़े पंजाब के बुजुर्ग ने मजबूरी में पड़े होने की बात कही तो दूसरे रोक दिया। खुद बोले- चाहे अगली सर्दी आ जाए, जाएंगे तो कानून रद्द होने के बाद ही।

फ्री बीपी चेकअप, चलिए कराइये चेक

एंबुलेंस के पास बीपी चेक कराने वाले बुजुर्गों की लाइन लगती है, जिनका बीपी सही मिले वे खुशी-खुशी उतरकर जाते हैं। एक किसान का बीपी बढ़ा मिला, वह मायूस चेहरा लेकर तेजी से आगे बढ़ गए। एंबुलेंस के पास बैठे पंजाब के बुजुर्ग जरनैल सिंह ने बताया कि बेले (खाली) बैठे हैं, सोचा फ्री चेकअप ही करवा लें। दो किसानों ने पहले सलाह बनाई, फिर अपने साथी से बोला- चलिए कराइये बीपी चेक।

आज काम नहीं छोड़ा तो पूरी जिंदगी छोड़ना पड़ेगा

ली में बैठे किसान से घर के कामकाज के बारे में पूछा तो बोले- आजकल काम कम ही है। आज काम नहीं छोड़ा तो फिर पूरी जिंदगी के लिए छोड़ना पड़ेगा। नुकसान पर कहते हैं- फ्यूचर खत्म होने से अच्छा है नुकसान। जब हमारा फ्यूचर ही नहीं रहेगा तो क्या करेंगे। आंदोलन के समाधान की बात की तो चुप हो गए, चेहरा भी उतर गया। फिर बोले- होना तो है ही। पर हम अब पीछे नहीं हटेंगे।

पंजाब का गांव ‘पद्दी जगीर- 0 किमी और गुढा- 0 किलोमीटर

आंदोलन में हाईवे से नीचे खड़ी ट्रॉली पर लगे पोस्टर पर पद्दी जगीर 0 किलोमीटर और गुढा 0 किलोमीटर लिखा है। उसमें 3 किसान अंदर सो रहे थे। उसके पास खड़ी ट्रॉली में बैठे किसान अवतार सिंह ने कहा- इन दोनों गांव के लोग 73 दिन से आंदोलन का हिस्सा हैं। अब तक अपने घर नहीं गए हैं। उनके परिजन ही हर 10 दिन में मिलने के लिए आंदोलन स्थल पर आते हैं।

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