जिला मुख्यालय की मांग:नेतृत्व की कमी के चलते पहले डीसी, एसपी तो बाद में जिला शिक्षा विभाग, जिला जेल व अन्य कार्यालय चले गए नारनौलमहेंद्रगढ़वासियों की दरकार- नांगल चौधरी के साथ-साथ दादरी सीमाओं से सटे गांवों के लोगों की परेशानियों को समझे सरकार
बुद्धिजीवी वर्ग ने कहा-इलाके को राजनीतिक मजबूती और जनप्रतिनिधियों की इच्छा शक्ति की जरूरत
महेंद्रगढ़ जिला मुख्यालय की मांग पर भले ही सरकार एक-दो दिन का मुख्यालय दरबार महेंद्रगढ़ में लगाकर यहां के लोगों को संतुष्ट करने का प्रयास करें परंतु जब तक महेंद्रगढ़ को उसका मुख्यालय स्थाई रुप से नहीं मिल जाता तब तक न तो क्षेत्र के लोगों की परेशानियों का समाधान होगा न ही यह क्षेत्र विकास की गति पकड़ पाएगा। नारनौल से उठ रही मांग को देखकर लग रहा है कि उन्हें महेंद्रगढ़ क्षेत्र के लोगों की परेशानियों से कोई मतलब नहीं हैं और वे नहीं चाहते कि यह क्षेत्र भी विकास की गति की राह पर आगे बढ़े।
क्षेत्र के बुद्धिजीवी वर्ग का कहना है कि उन्होंने अपना भाईचारा बनाए रखने तथा किसी का भी हक न मारा जाए इसके लिए वे शुरु से ही महेंद्रगढ़ व नारनौल को अलग-अलग जिला बनाकर उन्हें उनका हक दिए जाने की मांग सरकार से कहते आ रहे हैं परंतु कुछ लोग अपने निजी स्वार्थ के वशीभूत केवल अपनी ही सोच रहे हैं। उन्हें नांगल चौधरी के लोगों की समस्या नजर आ रही है परंतु महेंद्रगढ़ क्षेत्र के श्यामपुरा, कुम्हारान की ढाणी, श्याणा-पोता, कोटिया, भड़फ, करीरा सहित अन्य गांवों के लोग जो वर्षों से 60 से 70 किलोमीटर की दूरी तय कर रहे हैं, उनकी परेशानी दिखाई नहीं दे रही है।
आजादी से पहले का महेंद्रगढ़ संयुक्त पंजाब में भी जिला रहा है। हरियाणा बनने के बाद भी 7 जिलों में महेंद्रगढ़ शामिल रहा। नेतृत्व की कमी के चलते पहले डीसी, एसपी कार्यालय तो बाद में वर्ष 1972 में डिस्ट्रिक एक्साइज एंड टेक्सेशन कार्यालय, डिस्ट्रीक एजुकेशन कार्यालय, कुछ वर्षों पहले डिस्ट्रीक जेल, डीएम कार्यालय, जिला रजिस्ट्रार कोऑपरेटिव सोसायटी सहित एक-एक कर धीरे-धीरे महेंद्रगढ़ के सभी जिला स्तर के कार्यालय नारनौल में स्थापित कर दिए गए।
अब महेंद्रगढ़ क्षेत्र के लोगों द्वारा अपना हक मांगना गलत तो नहीं हैं। क्षेत्र के लोगों की सोच है कि नारनौल को उसका हक मिले, परंतु महेंद्रगढ़ का मुख्यालय महेंद्रगढ़ में स्थापित हो। अब महेंद्रगढ़ में जिला मुख्यालय स्थापित करने को लेकर पूर्ण सुविधाएं उपलब्ध है।
हांसी, गोहाना से पहले महेंद्रगढ़ को मिले उसका हक
जिला मुख्यालय की कमी शहर के पिछड़ेपन का मुख्य कारण रही। लोकमंच के महासचिव प्रो. रणबीर सिंह के अनुसार सरकार ने चरखी दादरी, रेवाड़ी जैसे जिले भी बनाए हैं, जो कि कभी महेंद्रगढ़ के हिस्से में रहे हैं। इसके अलावा अब हांसी और गोहाना तक को जिला बनाने पर विचार किया जा रहा है।
सरकार छोटे जिले बनाने के पीछे विकास का तर्क देती है। ऐसे में क्या विकास का अधिकार महेंद्रगढ़ को नहीं है। लोकमंच ने सुझाव भी रखा कि यदि सरकार एकदम से नारनौल में स्थापित जिला मुख्यालय के दफ्तरों को तोड़कर महेंद्रगढ़ में लाने को मुश्किल काम मानती है तेा फिर क्यों ने नारनौल को ही अलग कर महेंद्रगढ़ को उसका हक दिया जाए। दादरी जैसे जिलों को देखें तेा महेंद्रगढ़ इसकी शर्तें भी पूरी करता है। यदि नारनौल में ही हेड क्वार्टर रहे तो महेंद्रगढ़ का पिछड़ापन दूर होना मुश्किल है। यह इलाका राजनीतिक रूप से कमजोर रहा। इलाके को राजनीतिक मजबूती और जनप्रतिनिधियों की इच्छा शक्ति की जरूरत है।
तहसीलें विकसित हुईं, महेंद्रगढ़ पिछड़ता गया
वर्ष 1972 में पूर्व मुख्यमंत्री बंसीलाल ने भिवानी के विकास के लिए अलग जिला बनाया। उस समय चरखी दादरी सबसे पुराने जिलो में शामिल महेंद्रगढ़ जिले के अंतर्गत आती थी। चरखी दादरी को भिवानी में मिला लिया गया। अब दादरी का भाग्य भी चमका और सरकार ने उसे भी अलग जिला बनाकर मुख्यालय के दफ्तर भी खोले। इसी तरह रेवाड़ी भी गुड़गांव से अलग होकर महेंद्रगढ़ में शामिल किया गया था, जो उस समय तहसील ही था। वर्ष 1989 में महेंद्रगढ़ से अलग होकर रेवाड़ी भी जिला बना दिया और आज रेवाड़ी सक्षम जिलों में हैं। मगर मुखिया रहा महेंद्रगढ़ आज भी अपने विकास की लड़ाई लड़ रहा है।