किसान आंदाेलन:खुदकुशी करने वाले किसानों के अंतिम पत्र में एक ही दर्द- न जाने कब मिलेगा समाधान, इसलिए अब तो करिए बातसंघर्ष लगातार संघर्ष लंबा होता जा रहा है। बातचीत न होने से हौसला टूट रहा है
बढ़ता इंतजार समाधान का इंतजार किसान और सरकार के साथ पूरे देश को है
आंदाेलन के 79 दिन। बेनतीजा वार्ता के 12 दौर। फिर 19 दिनों से जारी गतिरोध। इसे न ताे किसान नेताओं की रणनीति तोड़ पा रही है और न ही सरकार की बातें। अब तक 13 किसान सुसाइड कर चुके हैं।
वार्ता के लिए हर पल तैयार रहने का दावा करने वालों को एक बार उन किसानों के अंतिम पत्रों को पढ़ना चाहिए, जिसमें दर्द की दास्तां और नाउम्मीदी की इंतहां का जिक्र है। शायद ऐसा करने से आंखें भीगेंगी जरूर, लेकिन नाक का सवाल बन चुकी पहल को करने में देरी नहीं होगी। बात के लिए पहल जरूरी है। एक्सपर्ट भी सुसाइड नोट की भाषा के आधार पर कह रहे हैं कि देरी ठीक नहीं… अब तो करिए बात।
हल में देरी हुई तो किसानों में बढ़ जाएगा मेंटल हेल्थ एपिडेमिक का खतरा: डॉक्टर राजीव गुप्ता
डॉ. राजीव गुप्ता, डायरेक्टर, इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ, रोहतक
आंदाेलनरत किसानों के मन में एक बात बैठ गई है कि उनकी सुनने के बजाय सरकारी मशीनरी आंदोलन को दबाने का प्रयास कर रही है। किसान भविष्य को लेकर निराश हैं। इसका उनके मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ रहा है। इससे वे पैरा सुसाइड का रास्ता अपना रहे हैं।
पैरा सुसाइड कैटेगरी में व्यक्ति बात मनवाने के लिए आत्महत्या का रास्ता चुनता है। यही कुछ किसानों ने किया भी है। जान देने वाले किसानों के कई सुसाइड नोट के अध्ययन में ऐसे संकेत दिखे हैं कि जल्द ही समाधान नहीं हुआ तो आंदोलनकारी किसानों में मेंटल हेल्थ एपिडेमिक (मानसिक स्वास्थ्य की महामारी) फैलने का खतरा बढ़ जाएगा। किसान डिप्रेशन में हैं। जल्द ठोस पहल न हुई तो पैरा सुसाइड के केस में इजाफे से इनकार नहीं किया जा सकता।
दो उदाहरणाें को ऐसे समझें
लुधियाना के किसान लाभ सिंह के सुसाइड नोट की भाषा से पता चलता है कि वे खेती में आने वाले खतरों से डरे हुए थे। उन्हें जमीन छिनने और परिवार का जीवन यापन संकट में आ जाने की आशंका थी। उम्मीद खत्म हो गई थी।
अमरजीत सिंह के सुसाइड नोट की भाषा बताती है कि किसान ने भरोसे के साथ सरकार को स्थापित किया, लेकिन आंदोलन लंबा खिंचने से वे हताश हो चुके थे। ऐसे में एक अवस्था ऐसी आती है कि व्यक्ति सुसाइड का रास्ता चुन लेता है। यही कदम अमरजीत ने उठाया।