पड़ोस से शांतिवार्ता के बोल क्यों?:पाकिस्तान बदला नहीं है, आर्थिक तंगी के कारण शांति का दिखावापाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा ने बुधवार को कहा कि, कश्मीर मुद्दे का हल बातचीत से निकालना चाहिए। अब प्रधानमंत्री इमरान खान ने शनिवार को कहा कि वो कश्मीर का हल शांतिपूर्ण ढंग से चाहते हैं। तीन साल पहले भी बाजवा ने शांति वार्ता की बात कही थी। लेकिन इसके बाद पुलवामा जैसा आतंकी हमला हुआ। पीएम और सेना अचानक शांति से समाधान का बयान क्यों दे रहे हैं?
शांति वार्ता की बात में बाजवा और इमरान की क्या मंशा है?
पाकिस्तान में जो जनरल बाजवा का बयान होता है वही प्रधानमंत्री इमरान खान का भी होता है। शातिर व चालाक इमरान और बाजवा जानते हैं कि पाकिस्तान की आर्थिक हालात बहुत खराब है। अमेरिका में बाइडेन के आने के बाद उसे आर्थिक मदद नहीं मिल रही है।
अमेरिका ने तालिबान समझौता क समीक्षा की बात कही है। चीन भी भारत के मामले में उसकी कोई मदद नहीं कर पा रहा है। पाकिस्तान के आतंकी भी भारत में कुछ नहीं कर पा रहे हैं। बाजवा और इमरान मजबूर हो गए हैं। वो चाहते हैं कि किसी भी तरह से भारत से बातचीत शुरू हो।
ऐसे बयान से पाक चीन पर कोई दबाव बनाना चाहता है?
नहीं। चीन खुद भारत से बात करना चाहता है। चीन को मालूम है कि भारत से नहीं लड़ सकता है। उसकी अर्थव्यवस्था भारत के साथ काफी जुड़ी हुई है। इस मामले में चीन से उसे कोई फायदा मिलने की संभावना नहीं है।
क्या इस बयान में ये संदेश है कि पाकिस्तान झुक रहा है।
ये गलतफहमी कतई नहीं पालना है। देश के प्रमुख रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि वो बातचीत से एक इंच जमीन भी भारत को नहीं देगा। पाकिस्तान भी परमाणु शक्ति वाला देश है। बातचीत से कतई हल नहीं निकलना है।
फिर ये अमेरिकी दबाव है?
पाकिस्तान पर सबसे बड़ा दबाव है भारत की मजबूत सेना का। हमारा देश हर क्षेत्र में बहुत ही मजबूत है। पाकिस्तान को समझ आ गया है कि वो सामने से मुकाबला नहीं कर सकता। रही अमेरिकी दबाव की बात तो बाइडेन के राष्ट्रपति बनने के बाद अमेरिका किसी भी एग्रीमेंट पर पाकिस्तान के साथ नहीं आ रहा है। अमेरिकी पत्रकार डेनियल पर्ल की हत्या के आरोपी को छोड़ने पर भी वह नाराज है।
पाकिस्तान के साथ अभी कौन-कौन से देश हैं?
यूएई, सोवियत अरब जैसे मुस्लिम देश भी पाकिस्तान के खिलाफ और भारत के साथ हैं। केवल टर्की और मलेशिया को छोड़ दिया जाए तो वैश्विक संबंधों में पाकिस्तान की हालत बहुत खराब है।
क्या पाकिस्तान खुद को बदलना चाहता है?
कतई नहीं। वो अकेला, कमजोर, मजबूर और आर्थिक रूप से बर्बाद है, इसलिए चालाकी कर रहा है। 1965 से पहले पाकिस्तान की इकॉनामी मजबूत थी, लेकिन 65 और 71 के युद्ध ने उसे बर्बाद कर दिया। खुद को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर शांतिदूत दिखाने के लिए ऐसे बयान पाकिस्तान की चाल हैं।
यही समय बाजवा और इमरान को क्यों उपयुक्त क्यों लगा?
दोनों ने किसान आंदोलन से समझ लिया कि अभी देश में परेशानी चल रही है। पाकिस्तान की सोच है कि भारत के आंतरिक हालातों से उसे कुछ फायदा मिल सकता है। यही सोचकर यह कदम उठाया गया होगा।