हरियाणा के 12 गांवों से ग्राउंड रिपाेर्ट:किसान आंदोलन के लिए हर गांव में कमेटियां चंदा जुटा रहीं, रोज दूध और खाने का सामान भेज रहेनए कृषि कानूनों के विरोध में हरियाणा में सवा 2 महीनों से किसान आंदोलन जारी है। अब यह गांव-गांव, घर-घर तक पहुंच चुका है। बच्चे, युवा, बुजुर्ग, महिलाएं सभी इसमें जुड़े हैं। गांव के पंचायत घरों से लेकर दिल्ली बॉर्डर तक किसान आवाज उठा रहे हैं। गांव में इन दिनों सबसे ज्यादा चर्चा आंदोलन की ही हो रही है।बुधवार को जिले के 12 बड़े गांवों में पहुंचे। उन्होंने अग्रोहा, सुलखनी, बरवाला, उकलाना और बालसमंद, हांसी के लोगों से बातचीत की। इन गांवों में कहीं किसान पंचायत कर आगे की रणनीति बना रहे थे तो कहीं नौजवान दूध, सब्जी और खाने पीने का सामान इकट्ठा कर टोल नाकों और दिल्ली बॉर्डर पर पहुंचाने में लगे थे।गांव से रोज ट्रैक्टर और दूसरे वाहन दिल्ली के लिए निकल रहे हैं। घर-घर से चंदा जुटाया जा रहा है। कमेटियां चंदे और आंदोलन में भागीदारों का पूरा लेखा-जोखा रख रही हैं।
अग्रोहा: रोज 2 गाड़ियां सामान लेकर टीकरी बॉर्डर जाती हैं
किरमारा में किसान आंदोलन के लिए 2 कमेटियां बनीं हैं। एक टीम धर्मपाल लोहचब और रिटायर्ड टीचर सुमेर चंद जाखड़ के नेतृत्व में काम कर रही है। दूसरी टीम युवाओं की है। इसे सुभाष किरमारा और प्रदीप परड़ौदा लीड कर रहे हैं। सुबह युवाओं की टीम दूध और आटा जैसी चीजें इकट्ठा करती है। इसके लिए 2 गाड़ियां लगाई गई हैं। हर तीसरे दिन यह सामान टीकरी बॉर्डर भेजा जाता है। महिलाओं की टीम रोज लांधड़ी टोल पर भंडारे में सेवा करती हैं। किरमारा की चौपाल में भी तीन बार महापंचायत हो चुकी है।
सुलखनी: आंदोलनकारियों के लिए हर दिन 600 लीटर दूध
घिराय गांव से रोज 600 लीटर दूध आंदोलन कर रहे किसानों के लिए भेजा जाता है। एक एकड़ के 100 रुपए के हिसाब से चंदा जुटाया जा रहा है। इसके लिए 15 लोगों की कमेटी बनाई गई है। कमेटी के प्रधान देवी राम सोनी के मुताबिक, चंदे के लिए जबरदस्ती नहीं की जाती। लोग मर्जी से दे रहे हैं। गांव से हर रोज 20 लोग आंदोलन में शामिल होते हैं।
वहीं, डाटा गांव में प्रति एकड़ 50 रुपए और 100 रुपए कुढ़ी के हिसाब से चंदा लिया जा रहा है। यहां से रोज 100 लीटर दूध और 200 लीटर लस्सी आंदोलन में भेजी जा रही है। बारी-बारी से 10 लोग रोज आंदोलन में शामिल होने जाते हैं। 35 लोगों की कमेटी इसकी निगरानी करती है। ग्रामीण करीब 5 लाख रुपए का चंदा जुटा चुके हैं।
हांसी: आंदोलन लंबा चला तो चंदे की रकम भी बढ़ाई
सिसाय कालीरामण और सिसाय बोलान। 2 गांवों के समूह को सिसाय के नाम से जाना जाता है। यह प्रदेश का सबसे बड़ा गांव है। दोनों गांवों को मिलाकर अब बेशक नगर पालिका बना दिया गया है, लेकिन पहचान अब तक गांव की ही है। किसान आंदोलन में दोनों गांवों के लोग जान फूंक रहे हैं।
उन्होंने आंदोलन के समर्थन में 6 दिसंबर को दिल्ली बॉर्डर पर बहादुरगढ़ के पास कसार के नजदीक डेरा डाला। किसानों के लिए लंगर शुरू किया। लंगर अब तक चल रहा है। रोज गांव से 300 लीटर दूध, 500 लीटर लस्सी, सब्जियां और आटा भेजा जाता है। रोज ट्रैक्टर बॉर्डर पर आते-जाते हैं। किसान आंदोलन के लिए पहले तय किया था किसानों से प्रति एकड़ सौ रुपए चंदा लिया जाए।
आंदोलन लंबा खिंचा तो अब 2 सौ रुपए प्रति एकड़ के हिसाब से फिर से चंदा लिया जा रहा है। बुधवार को भी 5 बसों से किसान कंडेला गए हैं। कुछ अपने वाहनों से रैली के लिए रवाना हुए। पूर्व सरपंच अजीत कालीरामण ने कहा कि किसी को न्योता नहीं दिया। सभी अपनी मर्जी से जा रहे हैं।
उकलाना: 1 एकड़ जमीन पर 200 रुपए चंदा तय
यहां के ग्रामीणों ने बताया कि किसान आंदोलन के लिए प्रति एकड़ 200 रुपए का चंदा इकट्ठा किया जा रहा है। यह रकम दिल्ली बॉर्डर पर चल रहे आंदोलन में दी जाएगी। बिठमड़ा के लोग शुरुआत से ही दूध और दूसरी चीजें भेज रहे हैं। गांव के किसान दिल्ली बॉर्डर पर डटे हैं।
बालसमंद: किसानों से रोज उनकी जरूरत पूछते हैं
सरसाना और भिवानी रोहिल्ला के लोग दिल्ली में धरने के लिए चंदा जुटा रहे हैं। किसानों के लिए खाने और दूसरी जरूरी चीजों के लिए रोज संपर्क किया जा रहा है।
बरवाला: दिल्ली सामान भेजने का शेड्यूल बनाया
बधावड़ में बुधवार को किसानों ने बैठक कर फैसला लिया कि रोज 2 ट्रैक्टर-ट्रालियों से बाडो पट्टी टोल पर पहुंचेंगे। हर हफ्ते एक वाहन खाने का सामान लेकर दिल्ली जाएगा। गांव के 40 किसान टीकरी बॉर्डर पर डटे हैं। राजली में पंचायत में निर्णय लिया कि किसान चंदा इकट्ठा करेंगे। हर सप्ताह दिल्ली बॉर्डर एक ट्रैक्टर जाएगा। दूध और राशन पहुंचाया जाएगा। रोज टोल नाके पर एक ट्रैक्टर जाएगा।