म्यांमार में तानाशाही को ड्रैगन का सपोर्ट:सैन्य शासन के समर्थन में चीन का वीटो; संसद में 25% सीटें आरक्षित होने से लोकतांत्रिक सत्ता पर सेना ही हावीम्यांमार में आम चुनाव के नतीजों को ठुकराने के बाद हुए तख्तापलट और आंग सान सू की समेत सभी नेताओं को जेल में डाले तीन दिन बीत चुके हैं। संयुक्त राष्ट्र, भारत और अमेरिका समेत अन्य देशों ने लोकतंत्र के बहाल करने को कहा है। जबकि, चीन ने म्यांमार के संविधान का हवाला देकर इससे पल्ला झाड़ लिया है।
दरअसल, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में मंगलवार को निंदा प्रस्ताव आया। परिषद के 5 स्थाई सदस्यों में शामिल चीन ने इसके खिलाफ अपनी वीटो ताकत का इस्तेमाल कर अड़ंगा लगा दिया। तख्तापलट करने वाले जनरलों का समर्थन कर उसने एक बार फिर जता दिया कि वह लोकतंत्र में विश्वास नहीं रखता।
2011 में लोकतंत्र बहाल हुआ
म्यांमार के इतिहास पर नजर डालें, तो 1962 से 2011 तक सैन्य शासन रहा। जब आंग सान सू की मुक्त हुई और 2011 में लोकतंत्र बहाल हुआ, तब भी देश की सत्ता पर सेना का ही नियंत्रण रहा। दरअसल, 2008 के संविधान के तहत सुरक्षा से जुड़े सभी मंत्रालयों पर सेना का नियंत्रण है। संविधान के तहत संसद की 25% सीटें सेना के लिए आरक्षित हैं। उसे म्यांमार सरकार द्वारा संविधान में किसी बदलाव पर वीटो लगाने का अधिकार है।
प्रमुख मंत्रालयों भी सेना के पास ही थे
प्रमुख मंत्रालयों भी सेना को ही मिलने के चलते सत्ता से सेना की पकड़ एक दशक बाद भी ढीली नहीं पड़ी। मौजूदा सरकार में भी 11 मंत्री सेना से जुड़े हुए लोग हैं, जो विदेश, गृह, वित्त, स्वास्थ्य जैसे मंत्रालय संभाल रहे हैं। तख्तापलट करने वाले जनरल मिन आंग ह्लाइन ने तख्तापलट को जरूरी बताया है। उधर, संयुक्त राष्ट्र ने चिंता जताई है कि देश में अभी भी 6 लाख रोहिंग्या हैं। कहीं सेना उनका दमन शुरू न कर दे।
तख्तापलट की वजह भी साफ
म्यांमार में डॉक्टर, मेडिकल स्टाफ तख्तापलट के खिलाफ हड़ताल पर हैं। जनता भी थाली पीटकर, गाडियों के हॉर्न बजाकर विरोध जता रही है। सू की पार्टी ने विवादित दस्तावेज में बदलाव का वादा किया था। इसी क्रम में एक समिति बनाने के प्रस्ताव पर संसद में मतदान कराया गया था, जो पारित हो गया था। इससे सेना को लगा कि उसका नियंत्रण अब खत्म हो सकता है। इसलिए तख्तापलट किया।