असम में भाजपा के लिए अब एनआरसी मुद्दा नहीं:असम-पश्चिम बंगाल चुनाव से पहले बदलने लगी है मुद्दों की प्राथमिकताअसम विधानसभा चुनाव में तीन महीने बचे हैं। 23 जनवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राज्य के शिवसागर में एक सरकारी कार्यक्रम में यहां पहुंचे और उसके अगले दिन गृहमंत्री अमित शाह ने नलबाड़ी में एक रैली में हिस्सा लिया। लेकिन दोनों ने ही एनआरसी का जिक्र तक नहीं किया। लिहाजा एनआरसी और अवैध घुसपैठ को लेकर नवगठित क्षेत्रीय दल असम जातीय परिषद समेत कई संगठन भाजपा सरकार पर सवाल उठा रहे हैं।
असम जातीय परिषद के अध्यक्ष लुरिनज्योति गोगोई कहते हैं, ‘यह सरकार एनआरसी को लेकर गंभीर नहीं है। उन्हें अहसास नहीं है कि त्रुटि-रहित, विदेशी-मुक्त एनआरसी बनाना उनकी जिम्मेदारी थी। भाजपा ने अवैध विदेशियों को बाहर निकालने का वादा किया था।’ सुप्रीम कोर्ट की देखरेख में भारतीय नागरिकों की इस सूची को तैयार करने में 10 साल का समय लगा था और 1220 करोड़ रुपए खर्च हुए थे। प्रदेश में जब एनआरसी का काम हो रहा था उस दौरान कई लोगों ने आत्महत्या कर ली थी।
प्रदेश के हजारों लोगों को एनआरसी की बेहद जटिल प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ा था। लेकिन असम सरकार की कैबिनेट ने अबतक इसे अपनी मंजूरी नहीं दी है। एनआरसी की फाइनल लिस्ट से बाहर हुए 19,06,657 लोगों को कानूनी तौर पर अपनी नागरिकता साबित करने का मौका तब मिलेगा जब सरकार इन लोगों को नोटिस जारी करेगी।
एनआरसी की फाइनल लिस्ट जारी करने के बाद सरकार ने अपील दायर करने की समय सीमा 120 दिन तय की थी। लेकिन अब तक एक नोटिस जारी नहीं हुआ। असम के भाजपा उपाध्यक्ष विजय कुमार कहते है, एनआरसी से चुनाव का कोई लेना-देना नहीं हैं। घुसपैठियों की शिनाख्त के लिए एनआरसी का काम हुआ था। लेकिन इसमें बहुत त्रुटियां रह गई हैं। कई भारतीयों के नाम लिस्ट में नहीं आए और काफी संख्या में अवैध बांग्लादेशी शामिल हो गए।
एनआरसी में सैकड़ों हिंदू बंगाली लोगों के नाम शामिल नहीं किए गए हैं, क्या इसी वजह से भाजपा अब इस मुद्दे को आगे नहीं बढ़ा रही है? इस पर वे कहते हैं, ‘कोविड के कारण सरकारी कामकाज ठप पड़ गए थे। हमारी प्राथमिकता लोगों को इस महामारी से बचाना है। देशभर में टीकाकरण का काम शुरू हुआ है और जैसे ही स्थिति सामान्य होगी फिर से एनआरसी को लेकर पक्ष रखेंगे। भाजपा एनआरसी चाहती है।’