कैंप में पहुंचे तो जान में जान आईलालकिले पर ट्रैक्टर परेड के दौरान हुए उपद्रव में फंस गए थे

किसान परेड:5 घंटे खौफ में जिए, कैंप में पहुंचे तो जान में जान आईलालकिले पर ट्रैक्टर परेड के दौरान हुए उपद्रव में फंस गए थे राजपथ की परेड में आए प्रतिभागी
गणतंत्र दिवस पर परेड में आईटी की झांकी को प्रस्तुत करने गई बूड़िया निवासी मिस्वा समेत काफी संख्या में प्रतिभागी उपद्रव के दौरान लाल किले में ही फंस गए। सभी 5 घंटे तक सिसकियां भरते हुए चुपचाप एक जगह ही बैठे रहे। रात 8 बजे उन्हें निकाला गया। पढ़िए, खौफनाक मंजर की पूरी कहानी

मैं 17 जनवरी को घर पर थी। शाम को फोन आया कि गणतंत्र दिवस परेड में आईटी की झांकी को प्रस्तुत करना है। 22 जनवरी को दिल्ली में मिलिट्री कैंप में रिपोर्ट की। 23 को रेस्ट के बाद 24 को प्रैक्टिस में हिस्सा लिया। पीएम के साथ रक्षा मंत्री राजनाथ, रविशंकर प्रसाद, किरन रिजीजू समेत अन्य केंद्रीय मंत्रियों ने हम सभी को संबोधित किया। हमें कॉमन सर्विस सेंटर (सीएससी) की झांकी को रिप्रजेंट करना था। हमारे साथ रेवाड़ी की सोनू वाला भी थीं। 26 जनवरी को सुबह 7 बजे हम राजपथ पर पहुंचे। यहां हमारी खुशी का ठिकाना नहीं था, जो टीवी पर देखते थे सेना के जवानों के करतब हमारी आंखों के सामने हो रहे थे। हम खूब सेल्फी ले रहे थे। सभी एक-दूसरे को बधाई दे रहे थे। राष्ट्रपति सामने थे। 10 बजे झांकी के साथ राष्ट्रपति को सलामी दी तो खुद पर कितना गर्व हुआ, यह शब्दों में नहीं बताया जा सकता।

इसके बाद लाल किले से बस में बैठकर कैंप में लाैटना था। जब हम लालकिले से मुश्किल से 200 मीटर की दूरी पर थे, वहां जो दृश्य था, वह बहुत डरावना था। हर तरफ भगदड़ मची थी। सामने से ट्रैक्टर आ रहे थे, तभी गोली चलने जैसी आवाजे आईं। पुलिस फोर्स दौड़ रही थी। हमें बसों में बैठने से सुरक्षा बलों ने रोक दिया। पास के पार्क में ले गए। पता चला कि कुछ शरारती तत्वों ने हमला कर दिया है। उन्होंने लाल किले पर अपना झंडा भी फहरा दिया है। उस समय हम करीब 200 लोग थे, सभी बहुत डर गए। किसी के पास मोबाइल भी नहीं था, जिससे हम अपने घरों भी बात नहीं कर पा रहे थे। हालात बहुत खराब थे। सभी घबरा गए थे। असम से आई लड़कियां तो रोने लगीं। किसी को समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या होगा। तनाव लगातार बढ़ रहा था। इसी बीच हमें पार्क से लालकिले के पीछे ले जाया गया, लेकिन तभी कुछ उपद्रवी अंदर की तरफ दाखिल हो गए। एक महिला पुलिसकर्मी हम सभी को किले के ऊपर फर्स्ट फ्लोर पर ले गई। यहां सभी को दीवार के साथ बैठा दिया गया, ताकि कोई शोर न करे। सभी सिसक रहे थे। पीने के पानी की भी कोई व्यवस्था नहीं थी।

लड़कियों के हालात और उनकी परेशानी को देखकर पुलिस अधिकारियों ने हमें अपने फोन दिए, ताकि हम अपने-अपने घर पर बात कर सकें और घबराएं नहीं। सुरक्षा बल हमें बार-बार हिम्मत बंधा रहे थे। दोपहर करीब एक से शाम 5 बजे तक सभी इसी तरह भय के माहौल जिए। फिर हालात नाॅर्मल हुए और हमें रिफ्रेशमेंट मिला। हम सभी को शाम करीब 6 बजे दरियागंज थाने ले जाया गया। यहां बिस्किट वगैरह भी दिए गए। रात करीब सवा 8 बजे जब हम अपने कैंप में लौटे तो सभी की जान में जान आई।

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