पद्मश्री पुरस्कार के लिए झज्जर का पहलवान चयनित:जब काम नहीं था तो कपड़े सिलकर अपनी रोजी-रोटी जुटाते थे वीरेंद्र सिंहएक समय मूक-बधिर वीरेंद्र सिंह के पास जब कोई काम नहीं था तो वह किशोरावस्था में ही गांव के लोगों के कपड़े सिलने लग गया था। सीआईएसएफ में कार्यरत पिता दिल्ली में रहकर कंपनी के जवानों को पहलवानी के गुर सिखाते थे। तब अचानक पिता के पैर में चोट लगी और वीरेंद्र उनकी सेवा के लिए दिल्ली पहुंचा। बस यहीं से उसकी किस्मत पलट गई। वह अखाड़े में कुश्ती करने वाले पहलवानों को घंटों खड़ा रहकर ताकता और इस खेल की बारीकियों को समझता।
दिल्ली के अखाड़े से जो कुछ वीरेंद्र सीखता उसका गांव में लाैटकर अभ्यास करता। धीरे-धीरे गांव देहात के दंगलों में हिस्सा लेने लगा। यहां हर कुश्ती जीती। आज वीरेंद्र देश का पहला पैरा एथलीट है जो 4 बार का ओलिंपिक में हिस्सा ले चुके हैं और तीन बार के वर्ल्ड चैंपियन हैं। वीरेंद्र सिंह गूंगा पहलवान के नाम से देश भर में मशहूर है और उसे अब फरवरी माह में पदम श्री मिलने जा रहा है। वीरेंद्र सिंह झज्जर के सासरौली गांव के रहने वाले हैं। मूक और बधिर होने के बावजूद उन्होंने कभी भी इस कमी को अपने सपनों की उड़ान में आड़े आने नहीं दिया।