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आर्मी में महिलाओं को स्थायी कमीशन का मामला:11 महीने बाद भी नहीं लागू हो सका फैसला

आर्मी में महिलाओं को स्थायी कमीशन का मामला:11 महीने बाद भी नहीं लागू हो सका फैसला; महिला अफसरों ने फिर खटखटाया सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा11 महीने बाद भी आर्मी में महिलाओं को स्थायी कमीशन देने का फैसला लागू नहीं हो पाया है। ऐसे में एक बार फिर से आर्मी की 17 महिला अफसरों ने फिर से सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। महिला अफसरों ने कोर्ट में याचिका दायर करके तुरंत फैसला लागू करने का आदेश देने की मांग की है। इस पर आज सुनवाई होनी है।

17 साल की कानूनी लड़ाई के बाद पिछले साल फरवरी में थलसेना में महिलाओं को बराबरी का हक मिलने का रास्ता साफ हुआ था। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था कि उन सभी महिला अफसरों को तीन महीने के अंदर आर्मी में स्थाई कमीशन दिया जाए, जो इस विकल्प को चुनना चाहती हैं। बाद में सरकार ने कोरोना की वजह से 6 महीने का और समय था, लेकिन कोर्ट ने एक महीने का और वक्त दिया था।

अभी तक केवल पुरुषों को स्थायी कमिशन का मौका मिलता था
सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले आर्मी में 14 साल तक शॉर्ट सर्विस कमीशन (एसएससी) में सेवा दे चुके पुरुषों को ही स्थाई कमीशन का विकल्प मिल रहा था, लेकिन महिलाओं को यह हक नहीं था। दूसरी ओर वायुसेना और नौसेना में महिला अफसरों को स्थाई कमीशन मिल रहा है।

अभी क्या स्थिति है?
महिलाएं शॉर्ट सर्विस कमीशन के दौरान आर्मी सर्विस कोर, ऑर्डिनेंस, एजुकेशन कोर, एडवोकेट जनरल, इंजीनियर, सिग्नल, इंटेलिजेंस और इलेक्ट्रिक-मैकेनिकल इंजीनियरिंग ब्रांच में ही एंट्री पा सकती हैं। उन्हें कॉम्बैट सर्विसेस जैसे- इन्फैंट्री, आर्म्ड, तोपखाने और मैकेनाइज्ड इन्फैंट्री में काम करने का मौका नहीं दिया जाता। हालांकि, मेडिकल कोर और नर्सिंग सर्विसेस में ये नियम लागू नहीं होते। इनमें महिलाओं को परमानेंट कमीशन मिलता है। वे लेफ्टिनेंट जनरल की पोस्ट तक भी पहुंची हैं।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले की 3 सबसे अहम बातें

स्थाई कमीशन : शॉर्ट सर्विस कमीशन के तहत आने वाली सभी महिला अफसर स्थाई कमीशन की हकदार होंगी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि शॉर्ट सर्विस कमीशन के तहत 14 साल से कम और उससे ज्यादा सेवाएं दे चुकीं महिला अफसरों को परमानेंट कमीशन का मौका दिया जाए।
कॉम्बैट रोल : महिलाओं को कॉम्बैट रोल देने का फैसला सुप्रीम कोर्ट ने सरकार और सेना पर छोड़ा है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘जंग में सीधे शामिल होने वाली जिम्मेदारियां (कॉम्बैट रोल) में महिलाओं की तैनाती नीतिगत मामला है। दिल्ली हाईकोर्ट ने भी यही कहा था। इसलिए सरकार को इस बारे में सोचना होगा।’
कमांड पोस्टिंग : सुप्रीम कोर्ट ने कहा है, ‘थलसेना में महिला अफसरों को कमांड पोस्टिंग नहीं देने पर पूरी तरह से रोक लगाना बेतुका है और बराबरी के अधिकार के खिलाफ है। महिलाओं को कमांड पोस्टिंग का अधिकार मिले।’ कमांड पोस्टिंग यानी किसी यूनिट, कोर या कमान का नेतृत्व करने वाली पोस्टिंग।

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