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भारत की वैक्सीन डिप्लोमेसी:चीन की कंपनी ने कोरोना वैक्सीन की कीमत मांगी,

भारत की वैक्सीन डिप्लोमेसी:चीन की कंपनी ने कोरोना वैक्सीन की कीमत मांगी, तो भारत की तरफ मुड़ा बांग्लादेशयह अक्टूबर-2020 की बात है। उस समय पूरी दुनिया कोरोना की भयावहता से जूझ रही थी। हर देश भविष्य में आने वाली वैक्सीन से अपने लिए राहत खोज रहा था। वैक्सीन बना रहे देशों में तब चीन आगे था। लिहाजा, बांग्लादेश सरकार ने उससे संपर्क किया। चीन की कंपनी सिनोफार्म उसे अपनी सिनोवैक वैक्सीन देने पर राजी भी हुई। लेकिन शर्त के साथ कि जितनी वैक्सीन बांग्लादेश को मिलेगी, उसकी लागत का तय हिस्सा उसे चुकाना होगा।

राजनयिक सूत्रों की मानें तो इसी समय भारत अपनी वैक्सीन डिप्लोमैसी को अंजाम दे रहा था। तभी चीन की शर्तों से असहज बांग्लादेश ने भारत से कॉन्टैक्ट किया। भारत सरकार ने उसके लिए सीरम की कोवीशील्ड वैक्सीन के 3 करोड़ डोज का इंतजाम करा दिया। वह भी सस्ते दाम पर। यही नहीं, 16 जनवरी को भारत सरकार ने देश में वैक्सीनेशन शुरू किया तो पड़ोसियों का भी ख्याल रखा।

शुरू में ही बांग्लादेश को 30 लाख खुराकें पहुंचाईं गई। कुल 7 पड़ोसी देशों को 22 जनवरी तक 50 लाख डोज मुफ्त दिए जा चुके हैं। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के मुताबिक, कुल वैक्सीन उत्पादन में भारत की हिस्सेदारी 60% है। यहां से सालाना 150 देशों को 1.5 अरब डोज मिलते हैं।न्यूजीलैंड: दो महीने बाद केस मिला, ब्रिटेन में लॉकडाउन 17 जुलाई तक

दुनिया में मरीजों की संख्या 9.94 करोड़ हो गई है। सोमवार को आंकड़ा 10 करोड़ पार हो सकता है। इनमें से सात करोड़ से ज्यादा मरीज ठीक हो चुके हैं।
न्यूजीलैंड में दो महीने बाद कोरोना के कम्यूनिटी स्प्रेड का पहला मामला सामने आया है। वहां 56 साल महिला संक्रमित मिली, जो यूरोप से देश लौटी है। उसने 14 दिनों का क्वारैंटाइन पीरियड पूरा किया और दो बार रिपोर्ट निगेटिव भी आई। 13 जनवरी को वह घर लौट गई। कुछ दिन बाद फिर पॉजिटिव हो गई।
स्टडी: ठीक होने वाले मरीज नए वायरस से छह महीने तक सुरक्षित

एक नई स्टडी में पता चला है कि कोरोना महामारी से ठीक हो चुके लोग कम से कम छह महीने या उससे भी ज्यादा वक्त तक वायरस के नए वैरिएंट से सेफ रहते हैं। स्टडी के अनुसार, संक्रमित होने के बाद लंबे वक्त तक एंटीबॉडी विकसित होती हैं। यह वायरस के दूसरे वैरिएंट जैसे दक्षिणी अफ्रीकी स्ट्रैन को भी रोक सकती है।

अमेरिका के रॉकफेलर विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों की इस रिसर्च की रिपोर्ट नेचर मैग्जीन में पब्लिश हुई है। इसमें कहा गया है कि प्रतिरोधी कोशिकाएं एंटीबॉडीज बनाती हैं, जो बाद में विकसित होती रहती हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक ये स्टडी अब तक का सबसे मजबूत सबूत है कि प्रतिरोधी तंत्र वायरस को याद रखता है।

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