अनपढ़ शांति देवी की उदार सोच को सलाम:सात बेटियों को पढ़ा-लिखा बनाया काबिल, प्रिंसिपल से लेकर डीएसपी पद की बढ़ाई शोभा, एक बेटी को मिला राष्ट्रपति अवाॅर्डप्रेरणादायक शख्सियत : 1950 के दशक में जब लड़कियों को घर से नहीं निकलने दिया जाता था तब शांति देवी ने अपनी 7 बेटियों को 7 किलोमीटर दूर पढ़ने भेजा
छुआ बुलंदी का शिखर भेड़ बकरी पालने वाले परिवारों में भी आने लगी एमए-बीएड बहुएं
इरादे नेक हों तो परिस्थितियां इंसान को कमजोर नहीं बना सकती। इस बात को सार्थक किया है जिला महेंद्रगढ़ के अटेली खंड के छोटे से गांव गणियार की शांति देवी ने। 1950-60 के दशक में जब लड़कियों को घर से निकलने तक नहीं दिया जाता था।
तब शांति देवी ने 2 बेटों के साथ अपनी बेटियों, एक दो नहीं बल्कि 7 बेटियों को गांव से 7 किलोमीटर दूर दूसरे गांव गोकलपुर पढ़ने भेजा। बेटियों ने भी मां के हौसलों को पंख देते हुए न केवल प्रभाकर से लेकर पीएचडी तक की उच्च शिक्षा ग्रहण की बल्कि शिक्षक से लेकर प्रिंसिपल तक का पद हासिल कर शिक्षा का प्रकाश फैलाया।
मां शांति देवी की सार्वभौमिक, सार्वकालिक, प्रगतिशील व आर्यसमाजी सोच का ही बेटियों पर यह प्रभाव है कि उनकी शिक्षा व प्रेरणा से उनके बेटे-बेटियां डॉक्टर, इंजीनियर, सेना कैप्टन जैसे पदों को सुशोभित कर रहे हैं। खुद उनके ही नहीं बल्कि समाज के अनेक बेटे बेटियों को भी उन्होंने इस दिशा में आगे बढ़ाया है और अब भी उनका यह प्रयास निरंतर जारी है। उनके छोटे बेटे यूटी पुलिस चंडीगढ़ से सेवानिवृत्त डीएसपी एवं वालीबॉल फेडरेशन ऑफ इंडिया के उपाध्यक्ष विजय पाल का कहना है कि उनके पिता महाशय परमानंद आर्य समाज के उपदेशक थे। पिता खेत में काम करते। बिना पानी की महज 7 एकड़ जमीन थी। उसी से घर, घर आने वाले आर्य समाजियों व हम भाई बहनों की पढ़ाई लिखाई का खर्च चलता था।
हम बहन भाइयों की कामयाबी ने गांव ही नहीं बल्कि संपूर्ण क्षेत्र में खासकर बेटियों के लिए शिक्षा के द्वार खोल दिए। भेड़ बकरी पालने वाले परिवारों में एमए बीएड बहुएं आने लगीं। इसी का परिणाम है कि उनके छोटे से गांव गणियार के 70 बेटे-बेटियां तो अकेले चंडीगढ़ में विभिन्न विभागों में सेवारत हैं। इनमें 20 बेटियां हैं।
अपना भाग्य लेकर आती हैं बेटियां
छठे नंबर की बेटी डॉ. कृष्णा आर्या कहती हैं कि माता-पिता को महामानव की संज्ञा से विभूषित कर सकते हैं। साधन कम थे और जिम्मेदारियां बहुत थीं। आर्थिक कठिनाइयों के बावजूद भी उनके चेहरे पर चिन्ता की कोई लकीर तक नहीं देखी। जब आस-पड़ोस वाले कहते कि बेटियों की शादी कैसे करोगे तो मां का जवाब होता था भगवान बेड़ा पार करेगा। हमारे पालन पोषण के साथ साथ माता पिता को उन लोगों के सवालों का जवाब भी देना होता था। जो हमें देखकर हमारे माता पिता से भी ज्यादा परेशान रहते थे। मां अक्सर कहती थी कि मेरे घर में बेटियां आई तो अपना अपना भाग्य साथ लेकर आई और घर के हालात पहले से बेहतर होते चले गए।
भतेरी, धापली नहीं विधि-विधान से कराया नामकरण
डॉ. कृष्णा आर्या का कहना है अल्ट्रासाउंड न होने से उस समय बेटियों को गर्भ में नहीं बल्कि जन्म के बाद दाइयों द्वारा नमक की घुट्टी देकर या चारपाई के पाये के नीचे गर्दन दबाकर या नाक से सांस रोककर मार दिया जाता था। मेरी मां की मैं शुक्रगुजार हूं कि उन्होंने कन्यावध नहीं करवाया और मुझे छठी बेटी के रूप में जन्म देकर समाज को पाठ पढ़ाया कि बेटियों के कारण घर में गरीबी नहीं आती है। माता पिता चाहते तो चुपचाप बेटियों को जन्म लेते ही मार कर परिवार को सीमित रख सकते थे। उन्होंने ऐसा नहीं किया, बल्कि बेटों के साथ-साथ सभी बेटियों का नामकरण संस्कार करवाया, पढ़ाया लिखाया और कामयाब बनाया।
जानिए सातों बेटियों का संघर्ष… जिन्होंने हासिल किया मुकाम
शांति देवी की सबसे बड़ी संतान विद्या देवी हैं। 1948 में स्कूल में पहला कदम रखकर ही उन्होंने बाकि में शिक्षा की नींव डाली। उन्होंने शिक्षा विभाग दिल्ली में नौकरी हासिल की फिलहाल वे दिल्ली रह रहीं। उनके दो बेटियां हैं। दोनों स्वास्थ्य विभाग में बेटी बचाओ बेटी बढ़ाओ मुहिम को आगे बढ़ा रही हैं।
चौथी संतान व दूसरी बेटी डॉ कौशल्या यादव थीं। (दूसरी संतान सत्यवीर शास्त्री व तीसरी विजयपाल हैं) कौशल्या हिंदी साहित्य में पीएचडी थीं। शिक्षा विभाग दिल्ली में प्रिंसिपल रहीं। बेहतर सेवाओं बालिका शिक्षा के क्षेत्र में उन्होंने राष्ट्रपति अवार्ड हासिल किया। कोरोना काल के दौरान असामयिक निधन हो गया। उनके दो बेटे हैं दोनों डॉक्टर हैं तथा दोनों बहुएं डॉक्टर हैं।
पांचवी संतान व तीसरी बेटी आचार्य कलावती हैं। जो एमए संस्कृत हैं तथा गोकलपुर में ही शिक्षक रहते हुए कन्या गुरुकुल का संचालन किया और सैकड़ों बेटियों को शिक्षित कर उच्च मुकाम पर पहुंचाया। जिला पार्षद के रूप मेंं भी उन्होंने विकास में सहयोग दिया। फिलहाल वे ब्रह्मवादिनी आश्रम गणियार में अपनी सेवाएं दे रही हैं। सामाजिक सेवा के लिए वे अविवाहित रहीं।
चौथी बेटी व छठी संतान संतोष देवी हैं। जो शिक्षा विभाग हरियाणा में ड्राइंग टीचर के पद से सेवानिवृत्त हो चुकी हैं। इससे पहले उन्होंने अनेक बेटे बेटियों को चित्रकला के क्षेत्र में आगे बढ़ाया। उनकी बेटी डॉक्टर है तथा दो बेटों का निजी व्यवसाय है।
पांचवी बेटी बिमला देवी ने भी स्नातकोत्तर स्तर की शिक्षा हासिल की। शिक्षा विभाग दिल्ली में शिक्षक के रूप में अपने सेवाएं देते हुए अनेक बेटे बेटियों के भविष्य को प्रकाशमान कर रही हैं। उनकी खुद की बेटी डॉक्टर है तथा बेटे का खुद का व्यापार है।
छठी बेटी डॉ कृष्णा आर्या। हेड मिसटे्रस के पद पर रहते हुए बेटी बचाओ बेटी मुहिम के साथ सामाजिक व साहित्यिक कार्यो में भागीदार रहती हैं। 6 बेटियों को गोद लिया है। बड़ा बेटा इंजीनियर, छोटा सेना में कैप्टन है। बहु बैंक ऑफिसर है।
7वीं बेटी व सबसे छोटी संतान हैं पुष्पा शास्त्री। संस्कृताचार्य पुष्पा शास्त्री ख्याति प्राप्त उपदेशक हैं तथा रेवाड़ी में प्रवास कर रही हैं। देश के कोने कोने में वेद व शिक्षा का प्रचार प्रसार कर रही हैं। उनको एक बेटी है। जो महिलाओं को स्वरोजगार व आत्मनिर्भर बनाने का कार्य कर रही हैं।