गाबा के गबरुओं की रियल लाइफ स्टोरी:एक कान से ही सुन सकते हैं सुंदर, नटराजन के पास जूतों के पैसे नहीं थे और सिराज ने डेब्यू से पहले पिता को खोयागाबा में भारत की जीत महज जीत नहीं है, ये उन किरदारों के हौसलों की कहानी भी है, जिन्होंने हालात से कभी हार नहीं मानी। टी नटराजन, मो. सिराज, वॉशिंगटन सुंदर, नवदीप सैनी और शार्दूल ठाकुर गाबा की जीत के हीरो हैं। मैदान ही नहीं, असल जिंदगी में भी इन लोगों ने अपनी काबिलियत से चुनौतियों को जमीन चटाई है।1. मो. सिराज: पिता की मौत पर भी घर नहीं आए, क्योंकि उन्हीं का सपना पूरा करना थामोहम्मद सिराज ने ऑस्ट्रेलिया दौरा शुरू होने से पहले ही अपने पिता को खो दिया था, पर पिता का ही सपना था कि बेटा देश के लिए खेले। BCCI ने सिराज को वापस जाने की मंजूरी दे दी थी, पर पिता का सपना पूरा करने के लिए वो भारत नहीं लौटे। सिराज के पिता रिक्शा चालक थे। ब्रिस्बेन टेस्ट (गाबा) में वो लीडिंग बॉलर थे।
सिराज ने एक इंटरव्यू के दौरान कहा था, ‘पिताजी मुझे 70 रुपए पॉकेट मनी देते थे। इसमें से 60 रुपए पेट्रोल में जाते थे। इसके बाद उन्होंने मेरी पॉकेट मनी 10 रुपए बढ़ा दी। मैं 2017 में रणजी ट्रॉफी में तीसरा सबसे ज्यादा विकेट लेने वाला गेंदबाज था। उसके बाद भरत अरुण सर मेरे जीवन में आए। इससे मेरी जिंदगी बदल गई। मैं सनराइजर्स हैदराबाद की टीम में चुना गया और मेरा इंटरनेशनल लीग में खेलने का सपना सच हो गया। सनराइजर्स ने मुझे 2.6 करोड़ रुपए में खरीदा।’
इस क्रिकेटर का नाम भी दिलचस्प है और ऐसा नाम रखे जाने की कहानी भी। उनके पिता एम सुंदर ने एक इंटरव्यू में कहा था कि बेटे का नाम अपने गॉडफादर के नाम पर रखा था। उन्होंने बताया था, ‘हमारे घर के पास आर्मी से रिटायर्ड पीडी वॉशिंगटन रहते थे। वो खुद भी क्रिकेट के शौकीन थे और उन्हें मेरा खेल भी पसंद था। वो हमारा हर मैच देखने आते थे। हमारे रिश्ते यहीं से गहरे हो गए। वो मेरे लिए यूनिफॉर्म खरीदते, स्कूल की फीस भरते, किताबें लाते और साइकिल पर मुझे ग्राउंड लेकर जाते थे। हमेशा हौसला बढ़ाया।’
एम सुंदर ने कहा था कि जब रणजी की संभावित टीम में मेरा सिलेक्शन हुआ तो पीडी वॉशिंगटन ही सबसे ज्यादा खुश थे। 1999 में उनकी डेथ हो गई थी और उसी साल बेटे का जन्म हुआ। हम हिंदू हैं, पर बेटे के जन्म से पहले ही मैंने यह तय कर लिया था कि उसका नाम पीडी वॉशिंगटन के नाम पर ही रखूंगा, जिन्होंने मेरे लिए बहुत कुछ किया। इस तरह बेटे का नाम रखा गया वॉशिंगटन सुंदर।
नवदीप जब गंभीर और सहवाग जैसे दिग्गज खिलाड़ियों की फोटो अखबार में देखते थे तो खुश हो जाते थे। एक बार वह दिल्ली टीम की प्रैक्टिस देखने के लिए पहुंचे थे। यहीं से उनकी किस्मत पलट गई। सुमित नरवाल करनाल प्रीमियर लीग के दौरान नवदीप की बॉलिंग के फैन बन गए थे। दिल्ली की प्रैक्टिस के दौरान सुमित ने गंभीर से नवदीप की मुलाकात करवाई। गंभीर ने नवदीप की गेंदबाजी देखने के बाद उन्हें दिल्ली की टीम में शामिल कर लिया। इसके बाद नवदीप ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।