35 रुपए लेकर गुजरात से मुंबई पहुंचे थे, अब 17 करोड़ रुपए का टर्नओवर; पांच दुकानें तो लॉकडाउन में खोलींकच्छ के वीरल पटेल साल 1982 में मुंबई गए थे, शुरुआत में एक स्टेशनरी शॉप में नौकरी की, वहां पगार नहीं मिलती थी
साढ़े चार लाख रुपए जोड़कर 1991 में खुद की दुकान खरीदी , 2005 में दोस्त के कहने पर मिठाई के बिजनेस में आए
कच्छ के वीरल पटेल साल 1982 में मुंबई पहुंचे थे। तब उनकी उम्र 14 साल थी। पिताजी ने उन्हें सौ रुपए दिए थे। उसमें से 65 रुपए ट्रेन के किराये में लग गए। इसके बाद वीरल की जेब में 35 रुपए बचे थे। जिस रिश्तेदार के कहने पर मुंबई आए थे, उन्हीं के घर रहने लगे। पास में ही एक स्टेशनरी शॉप थी, उसमें वीरल को काम मिल गया। सेठ ने कहा कि, ‘मैं पगार नहीं दे सकता लेकिन तुम्हें यहां दोनों वक्त खाना मिलेगा और ठहरने का इंतजाम भी हो जाएगा।’ वीरल ने बात मान ली, क्योंकि उनके पास कोई काम नहीं था।
वह सुबह दुकान खोलते। साफ-सफाई करते। ग्राहकों को हैंडल करते। ऐसा छह महीने तक चलता रहा। सेठ काम से खुश हो गए तो उन्होंने वीरल को पगार देना शुरू कर दिया। पहली पगार 250 रुपए थी। उस समय 250 रुपए की वैल्यू बहुत ज्यादा थी। वीरल के मुताबिक, मैंने पूरा काम संभाल लिया था इसलिए सेठ ने अपने दस साल पुराने कर्मचारी को हटा दिया। उसकी पगार 400 रुपए महीना थी।
साल 1991 में खरीदी खुद की दुकान
वीरल का प्लान था कि कुछ समय पैसे जोड़ लूं। फिर ट्रैक्टर खरीदकर गांव में खेती करूंगा, लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। स्टेशनरी में काम करते हुए उन्हें इस बिजनेस का पूरा आइडिया मिल गया। फिर एक रिश्तेदार ने उन्हें ठाणे में अपनी स्टेशनरी शॉप से जोड़ लिया।वीरल बताते हैं कि उनके साथ मैं वर्किंग पार्टनर के तौर पर जुड़ा था। मुझे इस बिजनेस की पूरी समझ हो गई थी। ग्राहकों को जोड़ना भी सीख गया था। ढाई साल साथ में काम किया और पैसे जोड़ते रहे। साल 1991 में उन्होंने सवा पांच लाख रुपए में ठाणे में खुद की दुकान खरीद ली। पहले ही साल मुझे दुकान से सवा पांच लाख रुपए की कमाई हुई थी। इस तरह दुकान खरीदने में जो पैसा लगाया था, वह पूरा वापस आ गया था।
सौ-सौ किलो का वजन कंधे पर उठाते थे
अपनी दुकान में सामान भरने के लिए वीरल लोकल से बड़े मार्केट जाया करते थे। वहां से झोले में सामान भरकर लाते थे। वीरल कहते हैं कि सौ-सौ किलो का वजन कंधे पर उठाकर लाता था। सुबह सात बजे से काम में लगता था और खत्म होते-होते रात के बारह बज जाते थे।
साल 1996 में बसंत विहार में एक बड़ी दुकान मिली तो उन्होंने पुरानी दुकान बेचकर उसे खरीद लिया। वहां सामने ही बड़ा स्कूल था। लोकेशन ज्यादा अच्छी थी तो अर्निंग भी पहले से ज्यादा होने लगी। सब कुछ बढ़िया चल रहा था फिर 2005 में एक दोस्त ने सलाह दी कि, आपको स्वीट्स और स्नैक्स के बिजनेस में आना चाहिए। इसमें प्रॉफिट काफी है। वीरल को भी दोस्त की बात अच्छी लगी।
दोस्त के कहने पर मिठाई में बिजनेस में आए
उन्होंने अपनी दुकान से ही समोसे-कचौड़ी जैसे आइटम के साथ मिठाइयां बेचना शुरू कीं। रिस्पॉन्स अच्छा मिलने लगा तो चार महीने में ही एक अलग दुकान ले ली। फिर फैक्ट्री शुरू कर ली। आज वीरल की 12 ब्रांच हैं। इनमें से पांच तो लॉकडाउन के दौरान खोली हैं।कोरोना के पहले टर्नओवर 17 करोड़ रुपए रहा था। वीरल अब फ्रेंचाइजी मॉडल पर काम कर रहे हैं। दो साल में सौ करोड़ के टर्नओवर तक पहुंचना चाहते हैं। वीरल के मुताबिक, फ्रेंचाइजी मॉडल से सौ ब्रांच खोलने की योजना है। बीते चार साल से गांव में ऑर्गेनिक खेती भी करवा रहे हैं।
ऑर्गेनिक आइटम अपनी शॉप से ही सेल करते हैं। कहते हैं, बिजनेस में जमकर मेहनत और अच्छी क्वालिटी देना जरूरी होता है, लेकिन बहुत कुछ आपकी किस्मत पर भी डिपेंड करता है। कई बार हम जो करते जाते हैं, उसमें कामयाबी मिलती चली जाती है।