चीन में सरनेम का अकाल:120 करोड़ लोगों के सिर्फ 100 सरनेम, डिजिटल सिस्टम से जुड़ने के दबाव में आकर लोगों ने बदलाव किएचीन की 30% आबादी यानी 43 करोड़ लोगों के सिर्फ 5 सरनेम- वांग, ली, झांग, लिउ और चेन
अगर आप चीन में किसी भी शख्स से उसका सरनेम पूछेंगे, तो जवाब मिलेगा- वांग, ली, झांग, लिउ या फिर चेन। यही वे 5 सरनेम हैं, जिसे चीन की 30% आबादी यानी 43.3 करोड़ लोगों ने अपनाया है। इससे पता चलता है कि चीन में सरनेम का अकाल पड़ गया है। चीन के लोक सुरक्षा मंत्रालय के दस्तावेजों के मुताबिक, 2010 की जनगणना की तुलना में 86% आबादी के बीच सिर्फ 100 सरनेम ही पसंद किए गए हैं।
सीएनएन की हालिया रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि चीन में पहले 23 हजार सरनेम चलन में थे। ये सिमटकर 6 हजार रह गए हैं। बीजिंग नॉर्मल यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफेसर चेन जियावेई का कहना है कि इसके तीन अहम कारण हैं- सांस्कृतिक विविधता की कमी, भाषाई दिक्कत और डिजिटल युग में तकनीकी समस्या।
भारत में सांस्कृतिक विविधता
चेन ने अमेरिका-भारत का हवाला देते हुए बताया कि यहां सांस्कृतिक विविधता है, जबकि चीन में नस्ल या समुदायाें के हिसाब से विविधता नहीं है। भाषाई कारणों से कोई भी अतिरिक्त अक्षर जोड़-घटाकर कोई नया सरनेम बना लेना चीनी भाषा में अंग्रेजी की तरह आसान नहीं है। कई लोगों ने अपने पुराने सरनेम छोड़कर इसलिए नए अपनाए हैं, ताकि डिजिटल दुनिया में वो पीछे न छूटें।
मजबूरन सरनेम बदल रहे लोग
दरअसल, चीन के सरकारी गजट के तहत कम्प्यूटर सिस्टम में चीनी भाषा के जो तरीके स्टैंडर्ड के तौर पर उपयोग में लाए गए हैं, उनके हिसाब से भाषा में फेरबदल कर बनाए गए नाम रजिस्टर नहीं हो पाते, इसलिए लोगों को मजबूरन सरनेम बदलना पड़ा। चीनी भाषा में कई कैरेक्टर हैं।
इनमें से 2017 तक 32,000 कैरेक्टर डेटाबेस में शामिल किए गए, लेकिन हजारों स्टैंडर्ड फॉर्मेट में रजिस्टर नहीं किए जा सके। चीन में पूरा सिस्टम डिजिटल हो चुका है, इसलिए कई सरनेम को इसमें जगह नहीं मिल पाया। जिन लोगों के सरनेम डिजिटल प्रणाली में फिट नहीं हुए, उन्हें 2013 में पुलिस ने सरनेम बदलने पर मजबूर कर दिया।
अपनी पहचान और परंपरा भूलने का दुख
प्रो. जियावेई ने कहा कि चीन में मंदारिन जैसी कई बोलियाें को डिजिटल सिस्टम में शामिल नहीं किया गया। कैरेक्टर स्टैंडर्ड अपनाने के कारण सरकार को क्यूआर कोड, पासवर्ड या पिन जनरेट करने में दिक्कत आ रही थी। समय लेने वाली इस प्रक्रिया से बचने के लिए बड़ी आबादी ने अपना सरनेम ही बदल लिया। हालांकि इन्हें दुख है कि उनकी पीढ़ियां अपने इतिहास, पहचान और परंपरा को भूल जाएंगी।’