उम्मीद और मानवता की कहानी:तमिलनाडु में गांव को भोज पर बुलाते हैं जरूरतमंद और लोग आर्थिक मदद करते हैं, हर जिले में ऐसे आयोजनों से 250 करोड़ तक जुटते हैंउत्तरायण के साथ तमिलनाडु में मानवता का महापर्व मोई विरुंधु शुरू
सूर्य के उत्तरायण के साथ तमिलनाडु के गांवों में उम्मीदों और मानवता की सदियों पुरानी पंरपरा मोई विरुंधु का दौर शुरू हो गया है। यहां जरूरतमंद नया काम शुरू करने, बेटी की शादी के लिए पैसों की जरूरत आदि के लिए मोई विरुंधु का आयोजन करते हैं। इसके तहत गांव के लोगों को खाने पर बुलाते हैं। भोज में पूरा गांव शामिल होता है और लौटते वक्त हर कोई अपनी क्षमता के हिसाब से मेजबान की आर्थिक मदद करता है। मददगार की मेजबान से एक ही आस होती है कि जब उसकी स्थिति सुधरेगी तो वो इसी तरह दूसरे लोगों की मदद करेगा।
‘साथ खाएंगे, साथ निवेश करेंगे और साथ बढ़ेंगे’ की यह संस्कृति दुनिया में और कहीं देखने को नहीं मिलती है। इसके पीछे मूल भाव यह है कि अपने साथ दूसरों के आर्थिक और सामाजिक स्तर को बेहतर बनाना है। पुदुकोट्टई जिले के वडकडु गांव की माया थेवर बताती हैं, ‘मदद राशि को ‘मोई’ कहते हैं। जो ‘विरुंधु’ आयोजित कर मदद मांगता है, उसे भी ऐसे ही पैसे लौटाने होते हैं।
वह चाहे तो इसमें रकम बढ़ाकर लौटा सकता है, ताकि उसकी साख बढ़े। इस तरह एक पेमेंट साइकिल बन जाती है। एक व्यक्ति 5 साल में एक बार ही ऐसा आयोजन कर सकता है।’ पेरूवुरानी गांव के कृष्ण कुमार बताते हैं, ‘मैंने भी दो बार ऐसे भोज आयोजित किए हैं। इससे मैंने 55 लाख और 45 लाख रुपए जुटाए। इससे मैंने अपना बिजनेस शुरू किया। घर बनाया। अब मैं अपनी क्षमतानुसार दूसरे लोगों की मदद करता हूं।’ शेष | पेज 10 पर
लोग कम से कम 500 रुपए मोई देते हैं। जो सक्षम हैं वह 5 लाख रुपए तक मदद करते हैं। 2018 में एक ऐसे ही भोज में 5 करोड़ रुपए इकट्ठे हो गए थे। आधिकारिक रूप से यह डेटा नहीं मिल पाता कि हर जिले में एक सीजन में ऐसे आयोजनों से कितनी राशि इकट्टा होती है। एक अनुमान के मुताबिक हर जिले में 250 करोड़ तक की राशि इकट्ठा होती है।
खर्च कम करने के लिए अब ऐसी दावतों के 2 से 30 संयुक्त मेजबान होते हैं
पहले एक या दो व्यक्ति मेजबान होते थे लेकिन आज खर्चे बढ़ गए हैं, इसलिए अधिकतम 30 लोग संयुक्त मेजबान होते हैं। विरुंधु के लिए मेजबान ही आमंत्रण छपवाता है और बड़ा हॉल भी किराए पर लेता है। एक बार में 400 से 1000 किलो मटन और 1800 से 2500 किलो तक चावल बनता है।