किसान आंदोलन:महिलाएं बोलीं- पति व बच्चे सड़कों पर हैं तो हम घर जाकर कैसे बैठ जाएंमहिलाओं को सुप्रीम कोर्ट तक घर लौटने को कह चुका, लेकिन बॉर्डर पर चट्टान की तरह डटीं तीनों कृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली बॉर्डर पर धरना जारी है। सोमवार को आज महिला किसान दिवस मनाया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट भी महिलाओं को घर लौटने की सलाह दे चुका है, जिसे महिलाओं में अपना अपमान बताया था। इन चर्चाओं के बीच महिलाएं बॉर्डर पर चट्टान की तरह डटी हुई हैं।
आंदोलन में शामिल महिलाओं का कहना है कि जब सरकार चाहती है कि वोट हमें मिले, हम उसके अनुयायी हैं। हमने सरकार को वोट दिया है और अब वह हमें भूल गई है। हमें खालिस्तानी बना दिया है। ऐसे में क्या लोहड़ी और दिवाली सब त्योहार काले हैं। जब तक आंदोलन जारी रहेगा, तब तक हम भी यहीं बैठी रहेंगी। अपने घर, खेत, जमीन और परिवार सब छोड़कर दिल्ली के कुंडली बॉर्डर पर महिलाएं भी मजबूती के साथ डटी हैं। दादी व माताओं के लिए कठिन वक्त हैं, जो महसूस करती हैं कि यह ‘करो या मरो’ की लड़ाई है।
कई महिलाओं को बीत चुका 50 दिन से ज्यादा का समय
कुंडली बॉर्डर पर परमिंदर कौर अपने 50 दिन पूरे कर चुकी हैं, बैग और सामान के साथ यहीं पर शिफ्ट हुईं थी। उनके परिवार के 8 लोग कुंडली से टिकरी तक अलग-अलग जगहों पर प्रदर्शन कर रहे हैं। उनकी बेटियां काफी उत्साहित हैं। बॉर्डर पर बैठी किरण प्रीत कहती हैं कि उनकी जमीन करीब 30 एकड़ है। घर पर उनकी बहू है, वही उसे देखती है। यह हर घर की कहानी है, जहां इस तरह से खेती हो रही है और दिहाड़ी मजदूर को फसलों की कटाई के लिए काम पर रखा गया है। यहां पर हरियाणा की महिला किसान भी हैं।
कंपकंपाती ठंड में एक साल के बच्चे के साथ टेंट में रह रही मां
बॉर्डर पर बैठी अमृतसर से आई बिमला देवी कहती हैं कि एमएसपी का कोई उल्लेख नहीं है। हम ही जानते हैं कि हमने अपना गेहूं कैसे बेचा। गेहूं पैदा करने के लिए लागत करीब 1500-1400 रुपए है और हमें 1200 रुपए रेट मिला है। अब यह सरकार चाहती है हमारी जमीन नीलामी हो जाए, यह कैसे सही है? कंपकंपाती ठंड में कर्मजीत कौर एक साल के छोटे बच्चे के साथ टेंटनुमा घर में कई हफ्तों से रह रही है, जिसे वह घर बुलाती हैं। वह कहती है- यह किसी क्रांति से कम नहीं है, जहां हमारे पूर्वजों ने स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लिया था। मैं चाहती हूं कि मेरे बच्चे इस क्रांति का हिस्सा बनें।