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पलायन-2:मजदूरों का दर्द, पहले लॉकडाउन, अब आंदोलन से छिना काम, घर जाना मजबूरी

पलायन-2:मजदूरों का दर्द, पहले लॉकडाउन, अब आंदोलन से छिना काम, घर जाना मजबूरीसोनीपत, कुंडली और बहादुरगढ़ की इंडस्ट्री में काम ठप
किराया देना भी मुश्किल, कुछ आसपास के जिलों में हुए शिफ्ट तो कई घर लौटे
कोई महामारी हो या आंदोलन इसकी सबसे पहली मार हमें ही झेलनी पड़ी है। कोरोना के चलते लॉकडाउन हुआ तो पैदल घर भागना पड़ा। हालात सामान्य हुए तो वापस कमाने लौटे अब किसान आंदोलन चल रहा है। किसान और सरकार की बैठकें हो रही हैं, लेकिन समाधान नहीं निकल रहा। सरकार दिल्ली में आराम से बैठी है तो किसान सड़कों पर डटे हैं, लेकिन हमारे हाथों में कटोरा आ गया है, वह किसी को नहीं दिख रहा। यह कहना है कुंडली से बिहार अपने गांव को लौट रहे कामगार कन्हैया का। ऐसे हजारों कामगार हैं, जो वापस लौटने काे मजबूर हो रहे हैं।

किसान आंदोलन के कारण सोनीपत, कुंडली, राई, बहादुरगढ़ और रेवाड़ी की सैकड़ों इंडस्ट्री प्रभावित हैं। ज्यादातर में काम बंद हो गया है या कम मजदूरों से काम चलाया जा रहा है। प्रतिदिन 100-200 रुपए की दिहाड़ी कर घर चलाने वाले मजदूर फिर पलायन कर रहे हैं। कुंडली बॉर्डर पर कोई महिला सिर पर बैग और गोदी में बच्चे लिए बॉर्डर पार कर रही थी तो कहीं कंधों पर बैग टांगे और सिर पर सामान के बोरे रखकर दिल्ली की तरफ जाने वाले वाहनों को तलाश रहे थे।

लंगर से जो मिले, उसी से बच्चों का पेट भरती रही: इंदु देवी ने बताया कि वे बिहार के आरा जिले से हैं। पति के साथ राई की इंडस्ट्री में काम करती थीं। सितंबर में वापस आकर काम शुरू किया था। हम तो रोज कमाने व रोज खाने वाले हैं। अब फिर काम बंद हो गया। सोचा कुछ दिन में खत्म हो जाएगा, बचत से गुजारा किया। अब पैसे व राशन दोनों खत्म हो गए। सोचा कि लंगर से बच्चों का पेट भर देंगे। शर्म छोड़ कुछ दिन रोज जाकर लाइन में लगती और जो मिलता उससे बच्चों का पेट भरती रही। किराए के पैसे नहीं रहे और मकान मालिक ने कह दिया किराए नहीं तो खाली करो। अब घर जाना ही ठीक है। वहीं, मोहन कुमार कहते हैं कि किसान अपनी मांगों के लिए बैठे हैं, यह उनकी मजबूरी है, लेकिन सरकार की क्या मजबूरी है, जो न आंदोलन खत्म करवा रही और न गरीबों की तरफ देख रही। लॉकडाउन में तो फिर आसपास के लोगों ने मदद की थी, लेकिन अब ऐसा नहीं है।

हाइवे पर लंगर प्रवासी मजदूर, महिलाएं और बच्चे ही नजर आते हैं। मंच से कुछ दूर लंगर के पास एक महिला एक बच्चे को गोदी व दूसरे का हाथ पकड़े खड़ी थी। एक बार वह खुद रोटी-सब्जी लेने जाती तो एक बार बच्चे को भेजती। फिर उसे इक्ट्ठा कर रही थी। महिला ने बताया कि दो बच्चे और हैं, पति बीमार हैं। खाने को कुछ नहीं। पूरे दिन बच्चों व पति को क्या खिलाऊंगी। दिनभर का खाना ले जा रही हूं। रोज मकान मालिक किराए के लिए आ जाता है। पति के ठीक होने का इंतजार है, फिर बच्चों को लेकर घर लौट जाएंगे।

मजदूरों का दर्द जानते हैं.. लेकिन हम खुद परेशानी में फंस गए

राई, कुंडली और सोनीपत के आसपास की इंडस्ट्री में हालात काफी खराब हैं। रोज फैक्ट्रियों में मजदूर काम मांगने पहुंच रहे हैं, लेकिन निराश होकर लौटना पड़ रहा है। फूड इंडस्ट्री से जुड़े संचालक का कहना है कि हमारा तो सारा बना हुआ माल खराब हो चुका है, आगे कैसे बनाएं। हम मजदूरों का दर्द समझते हैं, लेकिन जब कुछ काम हमारे पास ही नहीं होगा तो इनको कहां से दें। हमने कई जगह देखा कि मजदूरों को पुरानी मजदूरी भी नहीं मिल रही है। फैक्ट्री मालिकों का कहना है कि काम शुरू होगा तो मजदूरी भी देंगे। कुंडली की इंडस्ट्री में गए तो वहां के संचालक ने कहा कि हमें किसानों से कोई दिक्कत नहीं है, वे अपनी मांगों के लिए आंदोलन करें, लेकिन हमारा सामान आता-जाता रहे, इतनी जगह दे देंगे तो फैक्ट्रियां चल पड़ेंगी और मजदूरों को काम मिल जाएगा।

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