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ख्यात भारतवंशी लेखक वेद मेहता का निधन:देख नहीं सकते थे फिर भी लिखडालीं दो दर्जनसेअधिक किताबें,

ख्यात भारतवंशी लेखक वेद मेहता का निधन:देख नहीं सकते थे फिर भी लिख डालीं दो दर्जन से भी अधिक किताबें, अमेरिका का भारत से परिचय करायाभारतवंशी वेद मेहता ने न्यूयॉर्कर मैग्जीन के लिए 33 साल तक संस्मरण लिखे
ख्यात भारतवंशी लेखक वेद मेहता का 86 साल की उम्र में निधन हो गया। तीन वर्ष की उम्र में आंखों की रोशनी गंवाने वाले मेहता ने दृष्टिहीनता को कभी कमजोरी नहीं बनने दिया। वे 20वीं शताब्दी के मशहूर लेखक के तौर पर चर्चित हुए। उन्होंने अपनी रचनाओं से अमेरिकी लोगों का भारत और भारत के लोगों से परिचय कराया।

पत्रिका न्यूयॉर्कर ने शनिवार को उनके निधन की सूचना दी। मेहता इस पत्रिका के साथ करीब 33 साल तक जुड़े रहे थे। मेहता का जन्म भारत विभाजन के पूर्व लाहौर में 1934 में एक पंजाबी परिवार में हुआ था। मेनिन्जाइटिस के कारण तीन साल की उम्र में ही उनकी आंखों की रोशनी चली गई थी।

उनके पिता ने उन्हें दादर (बंबई) के ब्लाइंड स्कूल में पढ़ने भेजा। बाद में उन्होंने ब्रिटेन और अमेरिका में पढ़ाई की और अमेरिका में ही बस गए। दृष्टिहीन होने के बावजूद उनकी किताबों में किसी दृश्य का इतना जीवंत वर्णन होता था कि पाठक के लिए यकीन कर पाना मुश्किल होता था कि वे देख नहीं सकते।

आधुनिक भारत के इतिहास और दृष्टिहीनता की वजह से उनके प्रारंभिक संघर्ष पर आधारित 12 अंकों वाला उनका संस्मरण कॉन्टीनेंट्स ऑफ एक्जाइल बहुत प्रसिद्ध हुआ था। इसका पहला अंक डैडी जी पूरी दुनिया में काफी लोकप्रिय हुआ। उन्होंने कुल दो दर्जन से ज्यादा किताबें लिखीं। इनमें भारत पर रिपोर्ताज भी शामिल है।

उनकी मशहूर कृतियों में ‘वॉकिंग द इंडियन स्ट्रीट्स’ (1960), ‘पोर्टेट ऑफ इंडिया’ (1970) और ‘महात्मा गांधी एंड हिज अपासल’ (1977) शामिल हैं। साथ ही उन्होंने दर्शन, धर्मशास्त्र और भाषा विज्ञान पर कई रचनाएं लिखीं। 1982 में मेहता को मैकआर्थर फाउंडेशन द्वारा जीनियस ग्रांट के लिए चुना था।

मेहता ब्रेल लिपी के जरिए लिखना और पढ़ना दोनों जानते थे। हालांकि, बाद में अगर उन्हें कुछ लिखना होता था तो वे अपने सहायक को डिक्टेशन देते और सहायक टाइप करता। कई बार वे अपने लेख में 100-100 बार परिवर्तन कराते थे। मेहता कहते थे, ‘जब मैं लिखता हूं तो लगता है कि देख सकता हूं। लेखनी मुझे दुनिया देखने में मदद पहुंचाती है।’

कार की आवाज सुनकर बताते थे कंपनी का नाम
वेद मेहता की लेखनी में किसी घटना का इतना बेहतरीन चित्रण होता था कि पाठक क्या अन्य लेखक को भी संदेह होता था कि वे अंधे हैं भी या नहीं। अमेरिकी उपन्यासकार नॉर्मन मेलर ने कहा था कि वे मेहता को घूंसा मार कर देखना चाहते हैं कि क्या वे वाकई नहीं देख सकते। हालांकि, बाद में मेलर का संदेह भी दूर हो गया। मेहता के बारे में कहा जाता है कि उनकी सुनने की शक्ति अद्भुत थी। वे किसी कार की आवाज सुनकर बता देते थे कि वह किस कंपनी की है।

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