समुद्र के बीच बसी 40-45 घरों वाली इस बस्ती में बाहरी दुनिया के लोग कम ही आते हैं। हम बात कर रहे हैं समुद्र से घिरे आंध्र के होप आइलैंड की। यह आइलैंड प्राकृतिक ब्रेक वाटर का काम करता है और बंगाल की खाड़ी में आने वाले चक्रवातों से काकीनाडा शहर को बचाता है। बंगाल की खाड़ी से उठने वाले तूफान इस द्वीप से पहले टकराते हैं, लेकिन कोई यहां से हिलता तक नहीं। मछुआरों को शिफ्ट होने की सलाह दी जाती है लेकिन वो कभी यहां से जाने की बात नहीं करते।आइलैंड पर ना कोई हेल्थ सेंटर है ना कोई आपातकालीन दवा का प्रबंध। जरूरी राशन की भी कोई दुकान नहीं, छोटी से बड़ी हर जरूरत के लिए काकीनाडा तक पैतालीस मिनट से एक घंटे का सफर करना होता है।
40-45 घरों की बस्ती, कभी पलायन नहीं हुआ, लोग बोले-तूफानों से डर नहीं लगता
द्वीप पर बसे लोग कहते हैं कि उन्हें तूफानों से डर नहीं लगता। पिछले 15 वर्षों से होप आइलैंड जा रहे एचएमटीवी के स्थानीय पत्रकार श्रीधर कहते हैं कि लोगों का ये दावा गलत भी नहीं है क्योंकि अभी तक किसी भी चक्रवात से यहां किसी की जान नहीं गई है। इनके घर जरूर क्षतिग्रस्त हो जाते हैं लेकिन ये घर बनाने के लिए भारी सामग्री का इस्तेमाल नहीं करते, अस्थायी घर बनाते हैं।
श्रीधर ये भी कहते हैं कि होप आइलैंड के इन मछुआरों के कारण ही फिलहाल द्वीप सुरक्षित और संरक्षित है। इस द्वीप तक काकीनाडा तट से बोट के जरिए 13 किमी का सफर तय करके ही पहुंचा जा सकता है। राशन, कपड़े आदि जरूरी समान लेने के लिए यहां के लोग बोट से काकीनाडा का सफर तय करते हैं।
स्थानीय मछुआरे सती बाबू ने बताया यहां के मछुआरे महीने में औसतन 10 से 15 हजर तक की कमाई कर लेते हैं। लॉकडाउन में बहुत मुश्किल हुई फिर भी ये लोग खुश हैं, ना द्वीप छोड़ना चाहते हैं और ना ही कोई दूसरा काम करना पसंद करते हैं।
यहां अब स्कूल, मतदान केंद्र भी
बीते कुछ साल में स्कूल खुला है जहां 15-20 बच्चे इकलौते शिक्षक से पढ़ते हैं। बीते साल ही मतदान केंद्र खोला गया है।
5-6 साल से सौर ऊर्जा से बिजली मिल रही है। टीवी-फ्रिज यहां नहीं हैं।
यह द्वीप बंगाल की खाड़ी में टैडपोल के आकार में 8.04 वर्ग किमी में है। यह 200 वर्षों में कोरिंगा नदी की रेत से बना है।