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ITBP की डॉग स्क्वॉड में 16 नए मेंबर्स:बेल्जियम के कुत्तों को लद्दाख के प्रचलित नाम दिए गए,

ITBP की डॉग स्क्वॉड में 16 नए मेंबर्स:बेल्जियम के कुत्तों को लद्दाख के प्रचलित नाम दिए गए, इसी ब्रीड ने ओसामा को खोज निकाला थाITBP के कॉम्बैट यूनिट K9s में 16 नए मेंबर्स शामिल किए गए हैं। यह सभी बेल्जियन प्रजाति के डॉग्स हैं। पहली बार ऐसा हुआ है कि इन डॉग्स को भारतीय और लद्दाख क्षेत्र के प्रचलित नाम दिए हैं। इनमें गलवान और श्योक भी शामिल हैं। लद्दाख के मुश्किल हालात में इस K9 यूनिट की जिम्मेदारी अहम होगी।

अमेरिका ने 2011 में जब ओसामा बिन लादेन को पाकिस्तान के ऐबटाबाद में मार गिराने के लिए कमांडो ऑपरेशन किया था, तब इन डॉग्स ने उसे खोजने में बड़ा रोल प्ले किया था। इसलिए बेल्जियन डॉग्स की इस ब्रीड को ‘ओसामा हंटर्स’ भी कहा जाता है।

नामकरण समारोह
ITBP के डीआईजी एस नटराजन ने कहा- हमने इस स्क्वॉड के मेंबर्स का नाम उन स्थानों के नाम पर रखा है, जहां ITBP की तैनाती है। यह उन लोगों के प्रति सम्मान भी है जो वहां तैनात हैं। यह सभी सितंबर में डॉग्स पंचकूला के भानु में ITBP के नेशनल सेंटर फॉर डॉग्स में पैदा हुए थे। यह पहली बार है जब इन्हे देश के नाम दिए गए हैं। इसके पहले कुत्तों के नाम विदेशी ही होते थे। जैसे एलिजाबेथ, सीजर या ओल्गा।इस बार ये नाम दिए गए
डॉग्स के फादर का नाम गाला है। ये मांओं की संतान हैं। इनके नाम ओल्गा और ओलेशिया है। डॉग्स के नाम हैं- ससोमा, दौलत, श्योक, चेन्चिनो, गलवान, अनिला, चुंग थुंग, मुखपरी, युलु, सुल्तान चुक्सु, साशेर, सिरिजल, चार्डिंग, इमिस, चिप चाप और रेजांग। इनमें से ज्यादातर नाम वे हैं जहां ITBP की तैनाती है। अब इस बल के जवान गर्व से इनके नाम ले सकेंगे, क्योंकि यह नाम उनकी रगों में बहते रहे हैं।
ITBP का कहना है कि अगले डॉग बैच के सदस्यों का नामकरण भी इसी तरह किया जाएगा। भारत और चीन के बीच 3488 किलोमीटर लंबी सीमा है। यह काराकोरम से जेचाप तक है।

दूसरे बलों से डिमांड
अब दूसरे केंद्रीय सशस्त्र बल (CAPFs) भी ITBP इन डॉग्स की मांग कर रहे हैं। उनका मानना है कि इनकी मदद से वे अपनी सेवाओं को ज्यादा बेहतर बना सकेंगे। ITBP ने करीब 10 साल पहले इस बल की पहली बार तैनाती की थी। इनकी ब्रीडिंग के लिए तकनीक की मदद ली जा रही है। होम मिनिस्ट्री के निर्देश पर इन्हें दूसरे बलों को भी दिया जाएगा।
ITBP में करीब 90 हजार पर्सनल हैं। इसकी स्थापना 1962 में चीन से जंग के बाद की गई थी। यह बल ऊंचाई पर जंग में माहिर है। एंटी नक्सल ऑपरेशन्स में इसकी मदद ली जाती रही है।

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