राजनाथ का जवाब:रक्षा मंत्री बोले-मैं किसान परिवारऔर मोदी गरीब घर में पैदा हुए,
December 30, 2020
श्रीनगर में एनकाउंटर:सुरक्षाबलों ने 3 आतंकी मार गिराए, 15 घंटे चला एनकाउंटर;
December 30, 2020

किसान कहते हैं- अभी तो हमने सिर्फ तंबू गाड़े हैं कानून वापस नहीं हुए तो हाईवे पर पक्के मकान भी बना लेंगे,

टिकरी बॉर्डर से रिपोर्ट:किसान कहते हैं- अभी तो हमने सिर्फ तंबू गाड़े हैं, कानून वापस नहीं हुए तो हाईवे पर पक्के मकान भी बना लेंगेधीरे-धीरे अब टिकरी बॉर्डर पर भी किसानों की संख्या लगभग उतनी ही हो चुकी है जितनी सिंघु बॉर्डर पर है
यहां से अखबार निकल रहा है, लाइब्रेरी खुल गई है, थिएटर चलाया जाने लगा है, किसान मॉल बन चुका हैकिसान आंदोलन का गढ़ बन चुका टिकरी बॉर्डर दिल्ली के सबसे पश्चिमी छोर पर है। ग्रीन लाइन पर दौड़ने वाली दिल्ली मेट्रो इसी टिकरी बॉर्डर को पार करके हरियाणा के बहादुरगढ़ में दाखिल होती है। यह मेट्रो तो आज भी अपनी रफ्तार से दिल्ली और हरियाणा के बीच दौड़ रही है, लेकिन इस मेट्रो लाइन के ठीक नीचे चलने वाली मुख्य रोहतक रोड बीते एक महीने से आंदोलन कर रहे किसानों का अस्थायी डेरा बन गई है।

इस सड़क पर चलने वाला ट्रैफिक 26 नवंबर से बंद है। दिल्ली से हरियाणा जाने के लिए कुछ वैकल्पिक रास्ते खुले हुए हैं। इनकी जानकारी दिल्ली ट्रैफिक पुलिस समय-समय पर जारी करती है। दिल्ली-रोहतक रोड पूरी तरह से किसानों के कब्जे में है और हर दिन के साथ उनकी संख्या लगातार बढ़ती जा रही है।

इस सड़क पर जगह-जगह खड़े मेट्रो के पिलर अब आंदोलन कर रहे किसानों का अस्थायी पता बन चुके हैं। मसलन, महिलाओं द्वारा चलाया जा रहा लंगर कहां लगा है, यह सवाल पूछने पर कोई बता देगा कि वह पिलर नंबर-788 के पास है। ऐसे ही यहां से निकल रहे अखबार ‘ट्रॉली टाइम्स’ के बारे में पूछने पर कोई भी आंदोलनकारी बता देता है कि ट्रॉली टाइम्स का ऑफिस पिलर नंबर-783 के पास है।टिकरी बॉर्डर पर किसान आंदोलन इतना मजबूत हो गया है कि यहां से न सिर्फ अखबार निकलने लगा है बल्कि लाइब्रेरी भी खुल गई है। ट्रॉली थिएटर नाम से एक थिएटर चलाया जाने लगा है। किसान मॉल बन चुका है, जहां जरूरत की लगभग सभी चीज़ें किसानों के लिए फ्री हैं। वॉशिंग मशीनें लग चुकी हैं। बूढ़े किसानों के लिए हीटर और फुट मसाजर लग चुके हैं। किसानों के अस्थायी डेरे किसी गांव जैसा रूप लेने लगे हैं।

दिल्ली में चल रहे किसान आंदोलन का शुरुआती दौर में सबसे बड़ा केंद्र दिल्ली के उत्तरी छोर पर बसा सिंघु बॉर्डर ही था। उस वक्त टिकरी बॉर्डर के मुकाबले सिंघु बॉर्डर कई गुना ज़्यादा किसान जमा हो चुके थे। धीरे-धीरे अब टिकरी बॉर्डर पर भी किसानों की संख्या लगभग उतनी ही हो चुकी है, जितनी सिंघु बॉर्डर पर है।

इस आंदोलन में पहले दिन से शामिल हरियाणा के किसान मीत मान कहते हैं, ‘सिंघु बॉर्डर पर पहले दिन से ही किसानों की संख्या इसलिए ज्यादा थी, क्योंकि पंजाब से आए किसानों के जत्थे जीटी रोड होते हुए पहुंच रहे थे। सिंघु बॉर्डर उसी रोड पर था इसलिए वहां एक साथ हजारों किसान पहुंच चुके थे। टिकरी में किसान धीरे-धीरे और अलग-अलग जत्थों में ज्यादा पहुंचे हैं। इसलिए यहां आंदोलन को बड़ा होने में समय ज़्यादा लगा।’
मीत मान यह भी दावा करते हैं कि आज टिकरी बॉर्डर पर किसानों की संख्या हजारों में हो चुकी है। मीत मान का यह दावा अतिशयोक्ति भी नहीं है। टिकरी बॉर्डर से दिल्ली-रोहतक रोड पर किसानों का जमावड़ा लगभग 20 किलोमीटर लंबा हो चुका है। टिकरी से लेकर सापला के पास रोहद टोल प्लाजा तक, किसानों की ट्रैक्टर-ट्रॉली खड़ी दिखती हैं।

टिकरी बॉर्डर पर आंदोलन के धीरे-धीरे बढ़ने का एक कारण यह भी है कि यहां हरियाणा से आए उन किसानों की संख्या ज्यादा है जो आंदोलन में एक साथ न आकर अलग-अलग समय पर शामिल हुए हैं। हरियाणा के झज्जर, रोहतक, जींद, कैथल, फतेहाबाद, हिसार, सिरसा, भिवानी, और चरखी दादरी जैसे जिलों में तमाम किसानों के लिए सिंघु की तुलना में टिकरी बॉर्डर ज्यादा नजदीक है। लिहाजा वे यहीं जमा हो रहे हैं।

संख्या की बात करें तो आज टिकरी बॉर्डर पर लगभग उतने ही किसान जमा हो चुके हैं, जितने कि सिंघु बॉर्डर पर। इसके बाद भी आंदोलन के इन दोनों केंद्रों पर कई अंतर पहली नज़र में ही देखे जा सकते हैं। टिकरी के मुकाबले सिंघु बॉर्डर पर व्यवस्थाएं ज्यादा हैं। उनका मैनेजमेंट भी बेहतर तरीके से हो रहा है। मसलन रात को पूरे इलाके की सिक्योरिटी से लेकर सड़कों की सफाई तक की जो व्यवस्था सिंघु बॉर्डर पर नजर आती है वैसी टिकरी बॉर्डर पर नहीं है।राजस्थान से आए किसान गौरव सिंह कहते हैं, टिकरी बॉर्डर की अव्यवस्थाओं में दिल्ली सरकार की भी बड़ी भूमिका है। अरविंद केजरीवाल भले ही किसानों के साथ होने की बात बोल रहे हैं लेकिन उनकी तरफ से यहां कोई मदद नहीं पहुंच रही। सिर्फ दो मोबाइल टॉयलेट दिल्ली सरकार ने यहां लगवाए हैं। यहां सफाई तक नहीं हो रही है। हरियाणा की नगर पालिकाएं कहीं बेहतर काम कर रही हैं। यहां सड़क के एक तरफ दिल्ली है और दूसरी तरफ हरियाणा। हरियाणा के इलाकों में नगर निगम के लोग दिन-रात सफाई के लिए मौजूद रहते हैं।’

गौरव कहते हैं, ‘ये अव्यवस्थाएं भी धीरे-धीरे दूर हो रही हैं और किसान ही सब कुछ व्यवस्थित कर रहे हैं। भयानक ठंड में किसी तरह वे अपनी लड़ाई को जारी रखने के लिए वे सब कुछ कर रहे हैं। वे ये संकल्प लेकर आए हैं कि कानून वापस करवाने से पहले किसी हाल में नहीं लौटेंगे चाहे इसमें जितना भी समय लग जाए। अभी तो किसानों ने हाइवे पर सिर्फ तंबू गाड़े हैं, अगर सरकार ने कानून वापस नहीं लिए तो किसान यहीं पक्के मकान बना लेंगे।’

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Updates COVID-19 CASES