शाहजहांपुर में एक स्कूल ऐसा भी:कोरोना काल में छूटी पढ़ाई तो शुरू की मुफ्त पाठशाला; जिन्हें ABCD पढ़ना मुश्किल था, आज वे फर्राटेदार अंग्रेजी बोल रहेमाधव राव सिंधिया पब्लिक स्कूल प्रबंधन ने शुरू की अनोखी पहल
दो माह पहले सात बच्चों से शुरु की थी क्लासेस, आज 220 बच्चे ले रहे शिक्षा
उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में एक प्राइवेट स्कूल चर्चा में है। कारण यहां प्रबंधन अपने व्यवसायिक हितों के साथ सामाजिक दायित्वों का भी बखूबी निर्वहन कर रहा है। यहां दो घंटे की पाठशाला शुरू की गई है जिसमें सिर्फ वही बच्चे पढ़ते हैं, जिनके माता-पिता की आंखों में अपने बेटे को पढ़ाने के सपने तो हैं, लेकिन उनका पेट पालना ही उनके लिए मुश्किल है। इन बच्चों को मुफ्त पढ़ाया जा रहा है। वर्तमान में यहां 220 बच्चे शिक्षा ले रहे हैं। कभी इन बच्चों के लिए ABCD पढ़ पाना मुश्किल था, अब वे फर्राटेदार अंग्रेजी बोलते हैं। बच्चों को पढ़ाने के लिए आने वाली टीचरों का कहना है कि, सब कुछ पैसा नहीं होता है। हम चाहते हैं कि गरीब बच्चों का भविष्य संवार दें। क्योंकि ऐसा करने से दिल को सुकून मिलता है।
कैसे आया ख्याल?
यह अनोखी पहल माधव राव सिंधिया पब्लिक स्कूल ने शुरू की है। स्कूल के डायरेक्टर मून जौहरी ने दैनिक भास्कर से बताया कि समाज में तमाम अभिभावक ऐसे हैं जिनका जीवन दो जून की रोटी का इंतजाम करने में ही बीत जाता है। वे चाहकर भी अपने बच्चों को अच्छी बुनियादी शिक्षा नहीं दे पाते हैं। कोरोना संकट काल में सबसे ज्यादा नुकसान बच्चों का हुआ है। ऐसे में सोचा गया कि गरीब बच्चों के लिए भी कुछ किया जाए। टीचरों से भी बात की गई तो उनका उत्साह वर्धक जवाब मिला। सभी शिक्षक बिना किसी अतिरिक्त पेमेंट के गरीब बच्चों को पढ़ाने के लिए तैयार हो गए। इसी के बाद दो माह पहले सात बच्चों से पाठशाला की शुरूआत की गई।
सोशल डिस्टेंसिंग का रखा जाता है पूरा ध्यान, निशुल्क किताबें भी
इस स्कूल की शहर में दो ब्रांच हैं। पाठशाला की देखरेख करने वाली नुजहत अंजुम ने बताया कि सात बच्चों से शुरु हुआ कारवां आज 220 बच्चों तक पहुंच चुका है। जिसमें 15 साल से 18 साल तक आयु के बच्चे हैं। जिनको सोशल डिस्टेंसिंग के साथ बैठाया जाता है और उनको मास्क और सैनिटाइजर भी दिया जाता है। सभी सब्जेक्ट पढ़ाए जाते हैं। इस काम में 7 टीचर अपना सहयोग करते हैं। ये वह टीचर होते हैं, जो दिन में स्कूल हाईस्कूल और इंटरमीडिएट तक के बच्चों को पढ़ाते हैं। बाद में 2 घंटे की पाठशाला में गरीब बच्चों को निशुल्क पढ़ाने आते हैं।
इस पाठशाला में हर वर्ग का गरीब बच्चा एडमिशन ले सकता है। एडमिशन पूरी तरह से निशुल्क होता है। इतना ही नहीं अगर बच्चे के अंदर पढ़ने की लगन है और वह पढ़ना चाहता है तो जरूरत के हिसाब से स्कूल की तरफ से उसको किताबें भी दी जाती हैं।
पाठशाला हर दिन शाम के 4 बजे से 2 घंटे की पाठशाला लगाई जाती है। जिस तरह से फीस देकर पढ़ने वाले बच्चे आते हैं, बिल्कुल वैसे ही गरीब, मजदूर, रिक्शा चलाने वाले परिवार के बच्चों को स्कूल के अंदर क्लास में बैठाकर बिल्कुल फ्री में शिक्षा दी जाती है। नुजहत कहती हैं कि सरकार ने कोरोनाकाल के दौरान ऑनलाइन पढ़ाई का फरमान सुनाया था। लेकिन गरीबों के पास महंगे मोबाइल नही हैं। आखिर वह शिक्षा कैसे प्राप्त करें? इसी बात का ख्याल रखते हुए ही उनके बच्चों को क्लास में बैठाकर फ्री शिक्षा दे रहे हैं। सबकुछ पैसा नहीं होता है, मेरे पास एजुकेशन है। हम एजुकेशन को ट्रांसफर कर बच्चों का अच्छा भविष्य बनाने की पहल कर रहे हैं।जगह-जगह ऐसे सेंटर चलाने की आवश्यकता
स्कूल के डायरेक्टर का मून जौहरी ने कहा कि मेरी मंशा जनपद में अलग-अलग जगहों पर सेंटर खोलने की है, ताकि किसी गरीब परिवार का बच्चा अनपढ़ न रह जाए। साथ ही वह चाहते हैं कि आने वाले दौर में हर बच्चा इंग्लिश में बात करें। खास बात ये है कि दिन में स्कूल आकर फीस देने वाले बच्चों को पढ़ाने वाला स्टाफ शाम में 2 घंटे के लिए निशुल्क गरीब परिवार के बच्चों को पढ़ाने के लिए आते हैं। 2 घंटे का वक्त देने का वह कोई सैलरी भी नहीं लेते हैं।