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स्मृति शेष:वोरा की जेब नहीं थी, पार्टी में किसी भी नेता को इस उम्र में इतना सक्रिय नहीं देखा,

स्मृति शेष:वोरा की जेब नहीं थी, पार्टी में किसी भी नेता को इस उम्र में इतना सक्रिय नहीं देखा, वे पार्टी की हर बैठक में पहुंच जाते थे: आजादकांग्रेस के वटवृक्ष कहे जाने वाले वरिष्ठ नेता मोतीलाल वोरा का 93 साल की उम्र में निधन राजनीति के मोती नहीं रहे। कांग्रेस के वटवृक्ष कहे जाने वाले वरिष्ठ नेता मोतीलाल वोरा का 93 साल की उम्र में निधन हो गया। उन्होंने सोमवार को दिल्ली के एक निजी अस्पताल में अंतिम सांस ली। छत्तीसगढ़ के दुर्ग में मंगलवार को उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा। कांग्रेस के लिए यह और भी बड़ा सदमा है, क्योंकि हाल ही में अहमद पटेल भी दुनिया छोड़ गए। कांग्रेस और गांधी परिवार के बीच यह दोनों नेता सेतु माने जाते रहे। मोतीलाल वोरा से पहले 25 नवंबर 2020 को अहमद पटेल का भी नई दिल्ली में देहांत हो गया था।

बात तब की है, जब मैं एआईसीसी का महाराष्ट्र प्रभारी था। मुझे वहां ऑब्जर्वर भेजना था। बहुत सारे नाम आए। लेकिन मुझे मोतीलाल वोरा चाहिए थे। मैंने कहा- मुझे वो आदमी चाहिए, जिसकी जेब न हो। उन्होंने मुझसे पूछा- इसका क्या मतलब? मैंने बताया कि इसका मतलब है आप पैसे नहीं लेंगे। किसी से प्रभावित नहीं होंगे। अगर कोई जबरदस्ती जेब में डाल दे तो निकालकर फेंक देंगे। सुनकर वे बहुत हंसे। एक और वाकया है। वरिष्ठ नेता गिरधारी लाल डोगरा का निधन हो गया था। उनका पार्थिव शरीर जम्मू भेजना था। मैं दिल्ली से बाहर था। मैंने वोरा जी से संपर्क किया।

उस समय रात के दो बजे थे। 15 मिनट में एंबुलेंस पहुंच गई और उन्होंने वापस फोन कर मुझे जानकारी दी। वे निर्णय लेने में बहुत तेज थे। राजीवजी जब पीएम थे, मैं एआईसीसी का मप्र प्रभारी था। वोराजी पीसीसी चीफ थे। जब वोराजी को सीएम बनाया गया, तब भी प्रभारी मैं ही था। उम्र के लिहाज से हमारे बीच 24-25 साल का फासला था, लेकिन हमारे बड़े घनिष्ठ संबंध थे। चार दशकों के दौरान उनके साथ पार्टी के बारे में, समाज के बारे में, देश के बारे में चर्चा का अवसर मिला। उनके विचार जानने का मौका मिला। वे बहुत सेक्युलर आदमी थे। पार्टी के लिए, देश के लिए अपनी जान दे सकते थे। उनके जाने से कांग्रेस पार्टी ने एक बड़ा स्तंभ खो दिया।

आखिरी समय तक वे पार्टी की सेवा करते रहे। मैंने पार्टी में और किसी को इतनी उम्र तक इतना सक्रिय नहीं देखा। वे हर बैठक में पहुंचते थे। संसद में वे सिर्फ भाषण नहीं देते थे, सवाल भी उठाते थे। उनके साथ सैकड़ों बैठकों की जाने कितनी यादें हैं। गांधी परिवार के साथ वोराजी, अहमद पटेल व मैंने काफी लंबे समय तक काफी निकटता से काम किया। कभी कभी हम तीनों साथ होते थे। कोई न कोई तो वहां होता ही था। दुर्भाग्य से कुछ दिनों पहले अहमद पटेल चले गए। और अब वोरा जी नहीं रहे। उनके जाने से हम अकेला महसूस कर रहे हैं। भगवान उनकी आत्मा को शांति दे। उन्हें स्वर्ग में जगह दे।

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