कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन:फसलों की याद कम कर रही जोश, बच्चे रोज पूछ रहे- घर कब आओगेमेहनतकश किसान बोले- केंद्र सरकार के कानूनों के चक्कर में खराब हो रही है फसल
दिनभर बैठकों का दौर – सभी किसान संगठन दिन में बैठकर बनाते हैं अागे की रणनीतिकृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली बॉर्डर पर आंदोलन के 13 दिन बीत चुके हैं। हल अब तक नहीं निकला है। हर बार नई उम्मीदें जगती हैं और वार्ता में अगली तारीख मिल जाती है। ऐसे में ट्रैक्टर-ट्रॉलियों में दिन काट रहे अन्नदाताओं का उत्साह कई बार कम होने लगता है, क्योंकि मेहनतकश किसानों के लिए खाली बैठना भारी लगने लगा है।
उन्हें आंदोलन के साथ ही घर और खेती की चिंता भी सता रही है। ट्रॉली मेें बैठे पटियाला से आए बुजुर्ग हरजीत सिंह अपनी 10 साल की पोती से बात कर रहे थे। पोती ने बार-बार पूछ रही थी कि दादा जी कब आओगे। वे उसे समझा रहे थे कि बेटा अस्सी तां आना चहोंदे हां, पर ये सरकार साडी गल्लां नी मन्न रई। इससे आगे बढ़े तो एक रोपड़ से आए अवतार सिंह भी घर पर फोन कर रहे थे।
वे फसल के बारे में पूछ रहे थे। उन्होंने कहा कि घर में खेती का काम मैं ही देखता हूं। सरकार के चक्कर में फसल खराब हो रही है। गेहूं में पानी देना है, यहां से जाऊंगा, तभी दे पाऊंगा। मोगा के 60 वर्षीय किसान अमरिंदर कहते हैं कि पहली बार ऐसा है जब खेती से इतने दिन तक दूर हूं। मन तो करता है कि लौट जाऊं, बड़ा नुकसान हो रहा है, पर कदम आगे बढ़ा दिया है तो हक की लड़ाई जीत कर ही जाऊंगा।
किसानों से बातचीत के दौरान ही पास से एक ट्रैक्टर पर युवाओं का एक जत्था निकला। तेज आवाज में म्यूजिक के साथ सरकार के खिलाफ नारेबाजी कर रहे थे। उनकी आवाजें सुनते ही वहां ट्रॉलियों में बैठे किसानों में नया जोश आ गया, सभी उन युवाओं के साथ नारे लगाने लगे। कुछ देर रुक कर देखा तो हर 15 मिनट में ऐसे ही जत्थे आ रहे थे। कोई ट्रैक्टर पर तो कोई जिप्सी या ऑटो में। काफी युवा तो पैदल ही घूम रहे थे और नारे लगाए जा रहे थे।
जत्थे में शामिल जालंधर के युवा परमीत कुमार ने बताया कि लंबा समय खाली बैठकर हर कोई परेशान होने लगता है और उसका जोश कम होने लगता है। इसलिए हमारे जैसे युवाओं की 50 से अधिक टीम बनाई गई हैं जो ऐसे ही 5 किलोमीटर में घूमकर आंदोलन के गानों और नारों से किसानों में उत्साह जगाए रखने का काम करते हैं। कुछ आगे बढ़े तो देखा कि यहां किताबों की स्टॉल लग गई हैं, जिनमें शहीदी देने वालों और गुरुओं की प्रेरक कहानी वाली किताबें हैं। टोकन देकर किताब दी जाती हैं, जिससे इन्हें खाली बैठे किसान और युवा पढ़ें व उनमें भी वैसा ही जोश आए।
टोलियों में ताश व सबक सिखाने की तैयारी
ट्रॉलियों में बैठे कुछ किसान ताश खेल रहे हैं। पत्तों में पीएम मोदी, शाह, तोमर भी हैं। किसानों ने हुकुम का बादशाह पीएम मोदी को बनाया है। लाल बादशाह अमित शाह को और मीटिंग में शामिल होने वाले मंत्रियों को बेगम का नाम दिया है। वहीं, गुलाम खुद को बता रहे हैं। यहां अमृतसर के किसान जसविंदर सिंह ने बताया कि मोदी और शाह बादशाह की तरह ही हमें गुलाम समझकर राज कर रहे हैं। मीटिंग में जो मंत्री आते हैं उनकी तो बेगम की तरह चलती ही नहीं। वहां बैठा दूसरा किसान बोला- हमने दुग्गी तिग्गी जोड़कर ताश के पत्तों की तरह संगठन बनाया है। अब हम दिखा देंगे कि हम गुलाम नहीं, बल्कि हुकुम के इक्के हैं।
रात में आंदोलन का रंग बिल्कुल अलग
रात में आंदोलन का रंग बिल्कुल अलग होता हैं। बुजुर्ग किसान जगह-जगह इक्कट्ठे होकर कीर्तन से थकान मिटाते हैं तो युवा अपने ट्रैक्टरों के बड़े-बड़े म्यूजिक सिस्टम पर आंदोलन वाले गाने बजाकर आधी रात तक डांस करते हैं। 5 किलोमीटर के दायरे में 200 से ज्यादा टोलियों में ऐसे ही म्यूजिक बजाती हैं। ऐसे ही युवा बलविंदर से ने बताया कि आंदोलन में काम करते-करते सब स्ट्रेस में रहने लगे थे, इसलिए बुजुर्ग कीर्तन करके और हम युवा म्यूजिक से स्ट्रेस दूर करके जोश भरते हैं। बुजुर्गों का कहना है कि लगता है मोदी, इसबार म्हारे जाड्डे बॉर्डर पर ही कटवावेगा। उन्होंने कृषि कानून वापस न होने तक यहीं बैठने की बात कही।