6 साल की नौकरी छोड़कर मां के साथ फूड प्रोसेसिंग यूनिट शुरू की, आज 30 लाख रु. टर्नओवरपौड़ी गढ़वाल की रहने वाली दिव्या ने दिल्ली में 6 साल तक मल्टीनेशनल पब्लिशिंग हाउस में जॉब की
पिता के निधन के बाद वापस उत्तराखंड आईं और फल, सब्जी, ड्राई फ्रूट की प्रोसेसिंग शुरू कीउत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल की रहने वाली दिव्या की शुरुआती पढ़ाई लिखाई देहरादून में हुई। इसके बाद वो दिल्ली चली गईं। उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी से बैचलर्स और मास्टर्स की पढ़ाई की। इसके बाद 2008 में एक मल्टीनेशनल पब्लिशिंग हाउस में उनकी जॉब लग गई।
6 साल तक उन्होंने नौकरी की। फिर 2014 में वो उत्तराखंड लौट आईं और अपनी मां के साथ मिलकर फार्मिंग करने लगीं। आज वो अपने खेतों में उगने वाले फल, सब्जी, हर्ब्स और ड्राई फ्रूट को प्रोसेस करके अलग-अलग तरह के प्रोडक्ट्स बना रही हैं। उनका सालाना टर्नओवर 25 से 30 लाख रु. का है।
30 साल की दिव्या कहती हैं कि काम अच्छा था और सैलरी भी बढ़िया थी। मैं तो दिल्ली में सेटल भी हो गई थी। लेकिन, मां की चिंता सता रही थी। पापा की डेथ के बाद अकेली हो गई थी। मैंने कोशिश की कि वो भी यहीं आ जाए पर वो उत्तराखंड नहीं छोड़ना चाहती थीं।
दिव्या के पिता खेती करते थे। उन्होंने अच्छा खासा सेटअप भी तैयार किया था। 2014 में उनकी डेथ हो गई। जबकि दिव्या की मां इंदिरा सरकारी टीचर थीं, वो अब रिटायर्ड हो चुकी हैं।दिव्या बताती हैं कि मां जेली, सॉस वगैरह तैयार करती थीं और मुझे भेजती थीं। जो लोग भी इसका टेस्ट करते वो हमसे इसकी डिमांड करते थे। फिर मैंने सोचा कि क्यों न इस काम को आगे बढ़ाया जाए ताकि मां को सपोर्ट भी मिले और मैं उनके साथ भी रह सकूं। इसके बाद मैं 2014 में उत्तराखंड लौट आई।
दिव्या ने सबसे पहले अपने साथ काम करने वाले लोगों को मां के बनाये प्रोडक्ट भेजे। उन्हें अच्छे लगे तो उन्होंने और डिमांड की। इसी तरह थोड़े ही दिनों में माउथ पब्लिसिटी के जरिए उनके प्रोडक्ट की अच्छी बिक्री होने लगी। फिर उन्होंने रिटेलर्स के पास संपर्क किया। वहां भी अच्छा रिस्पॉन्स मिला।दिव्या ने हिमालयन हाट नाम से वेबसाइट लॉन्च की है। इस पर उनके सारे प्रोडक्ट मौजूद हैं। दिल्ली, महाराष्ट्र समेत पूरे देश से लोग ऑर्डर करते हैं। इससे हर महीने 2 से 3 लाख का ऑर्डर हो जाता है।
अभी दिव्या स्ट्रॉबेरी, माल्टा, संतरा, निंबू, आड़ू, प्लम, खुबानी, रोजमेरी, कैमोमाइल, लेमनग्रास, तेजपत्ता और सब्जियां उगाती हैं। इन खेतों में जो भी उपजता है, उसे प्रोसेस करके अलग-अलग प्रोडक्ट्स वो और उनकी मां तैयार करती हैं। जो प्रोडक्ट वो नहीं उगाते हैं, उसे स्थानीय किसानों से खरीदकर प्रोसेसिंग के बाद मार्केट में सप्लाई करते हैं।
दिव्या बताती हैं कि उन्होंने या उनकी मां ने पहले से कोई ट्रेनिंग नहीं ली थी। मां घर के लिए बनाती थी। जैसे जैसे काम बढ़ता गया वैसे-वैसे हम सीखते गए।
दिव्या अभी करीब 30 तरह के प्रोडक्ट तैयार करती हैं। इसमें सारे किचन प्रोडक्ट हैं। अभी वो 20 एकड़ जमीन पर खेती कर रही हैं। उनके साथ दो दर्जन से ज्यादा महिलाएं काम करती हैं।दिव्या कहती हैं कि उनके प्रोडक्ट्स नेचुरल हैं। इनमें किसी भी तरह के एडिटिव या फिर प्रिजर्वेटिव का इस्तेमाल नहीं करते।
दिव्या बताती हैं कि पहाड़ों में शिपिंग अच्छी व्यवस्था नहीं है। इसलिए हमने दिल्ली में एक जगह किराए पर लेकर डिस्ट्रीब्यूशन सेंटर बनाया है। प्रोडक्ट्स को पैक करके हम अपनी गाड़ी से इसे डिस्ट्रीब्यूशन सेंटर तक लेकर जाते हैं और फिर आगे शिप किया जाता है।
उनके प्रोडक्ट्स कुछ सीधे ग्राहकों को और लगभग 40 रिटेलर्स को जाते हैं। जिसकी कीमत 150 रुपये से लेकर 400-500 रुपये तक होती है।