एनसीआर के लिए सीपीसीबी के निर्देश:14 जिलों में नए उद्योग अब गैस आधारित ही लग पाएंगे, उद्यमी हुए परेशानवायु प्रदूषण रोकने के लिए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में कोयला आधारित नए उद्योग लगाने पर प्रतिबंध लगा दिया है। अब सिर्फ गैस आधारित उद्योग लग पाएंगे। सीपीसीबी ने एनसीआर में शामिल जिलों के चारों राज्यों- हरियाणा, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, राजस्थान के राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के चेयरमैन को इसे लागू करने के निर्देश दिए हैं। एनसीआर में हरियाणा के 14 जिले हैं। इनमें पानीपत, सोनीपत, करनाल, जींद, रोहतक, भिवानी, चरखी दादरी, महेंद्रगढ़, फरीदाबाद, पलवल, गुड़गांव, नूंह, रेवाड़ी व झज्जर शामिल है। सीपीसीबी के चेयरमैन शिवदास मीना ने राज्य प्रदूषण नियंंत्रण बोर्ड के चेयरमैन को पत्र भेजकर 30 दिन में कार्रवाई की रिपोर्ट मांगी है।
पाॅलिसी का सबसे अधिक प्रभाव हरियाणा पर होगा
25,327 वर्ग मीटर क्षेत्र के साथ हरियाणा के 14 जिले एनसीआर में हैं। 14,826 वर्ग मी. क्षेत्र के साथ यूपी के 8 जिले गौतमबुद्ध नगर, गाजियाबाद, मेरठ, बुलंदशहर, बागपत, हापुड़, शामली, मुजफ्फरनगर एनसीआर में हैं। 13,447 वर्ग मी. क्षेत्र के साथ राजस्थान के 2 जिले अलवर, भरतपुर एनसीआर में हैं।
स्वच्छ हवा न दे पाना पब्लिक के मूल अधिकार का हनन है
सीपीसीबी ने कहा है कि वायु प्रदूषण का 7वां सबसे बड़ा कारण है फ्लाई ऐश यानी राख, जो कोयला आधारित उद्योग व थर्मल पावर प्लांट से निकलती है। स्वच्छ हवा न दे पाना पब्लिक के मूल अधिकार का हनन है।
बड़ा सवाल: अपकमिंग प्लांट पर नियम लागू होगा?
उद्यमियों का बड़ा सवाल यही है कि क्या अपकमिंग प्लांट, जिसने मशीनरी ऑर्डर कर दिए हैं। क्या उन पर यह नया नियम लागू होगा? सवाल इसलिए बड़ा है क्योंकि 50 नए प्लांट लगने वाले हैं, जिसमें अधिकांश कोल आधारित हैं।
निर्देश में क्या है?
सीपीसीबी ने जो राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के चेयरमैन को लेटर लिखा है कि अपकमिंग इंडस्ट्रियल यूनिट पर यह नियम लागू करना है। यह जिक्र नहीं है कि जिसे अनुमति मिल चुकी है, उस पर नियम लागू नहीं होगा। चेयरमैन से एक माह में कार्रवाई की रिपोर्ट मांगी है, आशंका बढ़ है कि नई इंडस्ट्रियल यूनिट पर नियम लागू होगा।
2 पाॅइंट से जानिए संकट क्यों ज्यादा
नई पर नियम लागू हो रहा और पुरानी को शिफ्ट करने का आदेश है। डायर्स एसोसिएशन के प्रधान भीम सिंह राणा ने कहा कि मिंक व पोलर कंबल, चादर, टावल सहित कृषि उपकरण के 300 से अधिक ऐसी इंडस्ट्रियल यूनिट हैं, जहां पर बायलर में कोयले का उपयोग होता है। इसके बायलर को गैस चैंबर में बदलने में नई मशीनरी का 80% खर्च लगेगा।
पानीपत इंडस्ट्रियल एसोसिएशन के प्रधान प्रीतम सिंह सचदेवा ने कहा कि जो हम बनाते हैं (मसलन- मिंक व पोलर कंबल, चादर, तौलिया सहित होम फर्निशिंग के आइटम) वह पंजाब, महाराष्ट, गुजरात, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु में भी बनता है। गैस आधारित होने से पानीपत में लागत बढ़ जाएगी। वहीं माल दूसरी जगह कम कीमत में बनकर तैयार होगा। ऐसी स्थिति में दूसरे राज्यों से कंपीटिशन करना बहुत मुश्किल होगा।