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विधायक दे रहे ऑनलाइन एग्जाम:देशभर में चल रही परीक्षा कैंसिल करने की मांग,

विधायक दे रहे ऑनलाइन एग्जाम:देशभर में चल रही परीक्षा कैंसिल करने की मांग, 72 साल के विधायक दो बार पास होने के बाद तीसरी बार दे रहे एमएम की परीक्षा मैं 10वीं पास विधायक था, प्रदेशभर के छात्रों के लिए लेने थे फैसले, इसलिए छोड़ दिया था शिक्षा बोर्ड के चेयरमैन का पदराज्य की सियासत में चर्चित नाम- 71 वर्षीय ईश्वर सिंह। कैथल जिले के गुहला-चीका से विधायक। तीसरी बार एमए कर रहे हैं। इन दिनों ऑनलाइन परीक्षा दे रहे हैं। वह भी तब जब स्टूडेंट बिना परीक्षा के ही प्रमोट करने की मांग कर रहे हैं। ईश्वर सिंह का प्रयास जितना प्रेरक व रोचक है, उतनी ही प्रभावी कहानी है उनकी पढ़ाई की। बात 1978 की है जब वे पहली बार विधायक बने। फिर 1979 में भजन लाल सरकार में शिक्षा बोर्ड के चेयरमैन का पद मिला। कुछ ही दिनों में उन्होंने इस्तीफा दे दिया, क्योंकि तब वे महज 10वीं पास थे। उन्हीं के शब्दों में जानते हैं उनकी कहानी।

नई पीढ़ी को संदेश: परेशानियों से न भागें, एग्जाम देकर डिग्री लें, बिना एग्जाम तो कोरोना की डिग्री होगी आपकी नहीं

मैं पिहोवा से 5 कोस दूर स्कूल पैदल ही जाता था। उस समय दसवीं के बाद मैंने 1968 में जेबीटी कर ली। फिर राजनीति में आ गया और 1979 में स्व. भजन लाल मुख्यमंत्री थे और उन्होंने मुझे शिक्षा बोर्ड का चेयरमैन बना दिया। तब बोर्ड भिवानी में नहीं चंडीगढ़ में होता था। मैंने चेयरमैन पद पर तीन महीने मुश्किल से निकाले। पहली मीटिंग तो जैसे-तैसे निकाली। फिर जब दूसरी मीटिंग आई तो मैं सभी को फेस नहीं कर पाया, क्योंकि मेरे सामने बोर्ड के डायरेक्टर और मेंबर आदि सभी ज्यादा पढ़े-लिखे थे। मुझे लगा कि मैं इस पद के लिए डिजर्व नहीं करता, क्योंकि मुझे चेयरमैन मेरी योग्यता के कारण नहीं बल्कि इसलिए बनाया गया है कि मैं एक एमएलए हूं।

मुझे यह अच्छी नहीं लगी कि मैं केवल दसवीं पास होते हुए दसवीं-बारहवीं के छात्रों और पूरे प्रदेश की शिक्षा को लेकर प्लानिंग करूं। इसलिए मैंने इस पद से इस्तीफा दे दिया। मैं रोज सोचता था कि कैसे खुद को योग्य बनाऊं। फिर जब 1982 में मेरा विधायक का समय पूरा हुआ तो मैंने 33 वर्ष की उम्र में 1983 में 11वीं की पढ़ाई प्रैप से शुरू की कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी से। फिर 37 वर्ष की उम्र में ग्रेजुएशन की डिग्री ली। बीए के बाद 39 वर्ष की उम्र में एमए की हिस्ट्री से। जब मैं पेपर दे रहा था तो उस समय के वीसी मेरे पास आए और बोले कि क्या कर रहे हो आप तो मैंने उनको अपनी पूरी कहानी बताई और कहा कि मुझे अपना अधूरापन पूरा करना है।

उन्होंने कहा कि आपको तो एलएलबी करनी चाहिए। फिर मैंने लॉ करने की ठान ली और तीन साल उसमें लगाए। 42 की उम्र में लॉ करने के बाद मैंने 6 महीने कुरुक्षेत्र में वकालत भी की। मैं अब भी बार का मेंबर हूं। इसी दौरान मैं राज्यसभा से एमपी बन गया। जब मैं पहले ही दिन राज्यसभा में गया तो पहली सीढ़ी पर पैर रखते ही मेरे सामने सारा सीन आ गया। मैंने खुद में सोचा कि अगर यह सब नहीं करता तो आज मुझे कोई यहां पर गेटकीपर भी नहीं लगाता। मेरे एमपी बनने में मेरी एजुकेशन का बड़ा हाथ है। इसके बाद नेशनल कमीशन ऑफ शेड्यूल कास्ट में सदस्य बन गया। इसमें तीन साल काफी काम किया।

जब मैं 2015 में कमीशन में था तो मेरे पास दो जज दोस्त आए। उन्होंने कहा कि हमने एलएलएम पास कर ली है। फिर मैंने खुद से प्रश्न किया कि क्या इस समय मैं एलएलएम कर सकता हूं। मैंने फिर 67 साल की उम्र में एलएलएम भी पास की। इसके बाद मैं फिर से सक्रिय राजनीति में आ गया और 2019 में चुनाव जीतकर विधायक बन गया। अब कोरोना के कारण जब लॉकडाउन शुरू हुआ तो मैंने सोचा कि इस खाली समय का सही प्रयोग किया जाए। इसलिए मैंने तीसरी एमए करने की सोची। इसलिए मैंने एमए पॉलिटिकल साइंस के लिए आवेदन कर दिया। दूसरी एमए मैंने पब्लिक एड से कर रखी है।

अभी मैं ऑनलाइन एग्जाम दे रहा हूं। काफी बच्चे मांग कर रहे थे कि एग्जाम नहीं होने चाहिए और ऐसे ही डिग्री दी जाए। ऐसे युवाओं को मैं कहना चाहता हूं कि जो भी आपके पास हो वो आपकी मेहनत का होना चाहिए, मुफ्त का नहीं। बिना एग्जाम दिए डिग्री मिलती तो वो आपकी नहीं बल्कि कोरोना की डिग्री कही जाती। मैंने ये डिग्री कोई नौकरी के लिए नहीं की बल्कि मैं बताना चाहता हूं कि कोई भी आदमी किसी भी स्थिति में पढ़ सकता है, बस मन में ठान लेने की जरूरत है।

जब मैंने लॉ की तो उस समय कॉलेज में बच्चे सीटियां मारते थे और मेरा उनसे कोई मेल नहीं होता था। मैं क्लास के बाद अपने टीचरों से नोट्स आदि लेकर जाता था। मेरे लिए सबसे बड़ी दिक्कत राजनीति और पढ़ाई में समन्वय बनाकर रखना था। दिन में पब्लिक से मिलता हूं और अपने काम देखता हूं, फिर रात को पढ़ाई करता हूं। सोने के लिए मुझे 4 घंटे ही चाहिए होते हैं।’

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