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पेशे से डॉक्टर,खेती के लिए जुनून ऐसा कि वियतनाम में किसान के घर रहकर ड्रैगन फ्रूट उगाना सीखा

खुद्दार कहानियां:पेशे से डॉक्टर, लेकिन खेती के लिए जुनून ऐसा कि वियतनाम में किसान के घर रहकर ड्रैगन फ्रूट उगाना सीखा, 30 हजार पौधे लगाए, हर साल1.5 करोड़ रुपए कमाई अभी डॉ. श्रीनिवास 12 एकड़ जमीन पर ड्रैगन फ्रूट की खेती कर रहे हैं, करीब 30 हजार प्लांट्स हैं, 80 टन तक का प्रोडक्शन करते हैं
डॉ. श्रीनिवास 200 से ज्यादा किसानों को ड्रैगन फ्रूट उगाने की ट्रेनिंग दे रहे हैं, वे कहते हैं कि एक एकड़ जमीन से किसान 5-8 लाख रु तक कमा सकते हैंहैदराबाद के कुकटपल्ली के रहने वाले श्रीनिवास राव माधवराम पेशे से एक डॉक्टर हैं। हर दिन सुबह 7 बजे से दोपहर 12 बजे तक मरीजों का इलाज करते हैं। इसके बाद वे निकल पड़ते हैं अपने खेतों की तरफ। पिछले चार साल से वे ड्रैगन फ्रूट की खेती कर रहे है। अभी उन्होंने 12 एकड़ जमीन पर ड्रैगन फ्रूट लगाया है। इससे सालाना 1.5 करोड़ रुपए की कमाई हो रही है। 200 से ज्यादा किसानों को वे मुफ्त ट्रेनिंग दे रहे हैं।

हालांकि, श्रीनिवास इसे कमाई के लिए नहीं कर रहे हैं। वे कहते हैं कि खेती उनका जुनून है, पैशन है। 35 साल के श्रीनिवास ने 2009 में एमबीबीएस और 2011 में एमडी की। इसके बाद एक कॉलेज में बतौर असिस्टेंट प्रोफेसर उन्होंने काम किया। उन्हें ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से फैलोशिप भी मिली। अभी एक हॉस्पिटल में जनरल फिजिशियन हैं।

डॉक्टर होकर भी खेती क्यों?, जब हमने उनसे सवाल किया तो श्रीनिवासन कहते हैं, ‘हमारा परिवार बहुत पहले से ही खेती से जुड़ा रहा है। मेरे दादा जी किसान थे, सब्जियां उगाते थे। मेरे पिता उनके काम में हाथ बंटाते थे, वे हैदराबाद के मार्केट में सब्जियां बेचने जाया करते थे। बाद में उनकी नौकरी लग गई तो भी वे खेती से जुड़े रहे। इसका असर मेरी परवरिश पर भी हुआ। इसलिए मेरे मन में भी खेती को लेकर दिलचस्पी शुरू से रही।

मैं हमेशा से सोचता था कि खेती को लेकर लोगों का नजरिया बदला जाए। किसानों को समृद्ध किया जाए ताकि उन्हें आत्महत्या नहीं करना पड़े। हमारे तेलंगाना में बड़ी संख्या में किसान आत्महत्या करते हैं। डॉक्टर बनने के बाद भी मैं गांवों में जाता था, किसानों से मिलता था। मन में एक बात थी कि इनके लिए कुछ करना है। लेकिन, यह तय नहीं कर पा रहा था कि शुरुआत कैसे और किससे की जाए।
श्रीनिवास कहते हैं, ‘पहली बार ड्रैगन फ्रूट साल 2016 में देखा। उनके भाई एक पारिवारिक आयोजन के लिए ड्रैगन फ्रूट लेकर आए थे। मुझे यह फ्रूट पसंद आया और इसके बारे में जानने की जिज्ञासा हुई। फिर मैंने इसको लेकर रिसर्च करना शुरू किया कि यह कहां बिकता है, कहां से इसे इम्पोर्ट किया जाता है और इसकी फार्मिंग कैसे होती है।’

रिसर्च के बाद उन्हें पता चला कि इसकी सैकड़ों प्रजातियां होती हैं। लेकिन, भारत में कम ही किसान इसकी खेती करते हैं। सिर्फ दो तरह के ही ड्रैगन फ्रूट यहां उगाए जाते हैं। इसके बाद उन्होंने महाराष्ट्र के एक किसान से 1000 ड्रैगन फ्रूट के पौधे खरीदे, लेकिन उनमें से ज्यादातर खराब हो गए।

वजह यह रही कि वो प्लांट इंडिया के क्लाइमेट में नहीं उगाए जा सकते थे। 70 से 80 हजार रुपए का नुकसान हुआ। थोड़ा दुख जरूर हुआ, लेकिन पिता जी ने हिम्मत बंधाई कि अब पीछे नहीं मुड़ना है। इसके बाद श्रीनिवास ने गुजरात, कोलकाता सहित कई शहरों का दौरा किया।

वहां की नर्सरियों में गए। हॉर्टिकल्चर से जुड़े लोगों से मिले, एक्सपर्ट्स से राय ली लेकिन, कोई भी इस फ्रूट के बारे में ज्यादा कुछ नहीं बता पाया। सब यही कहते थे कि ये इम्पोर्टेड है, यहां इसकी खेती नहीं हो सकती है।श्रीनिवास कहते हैं, ‘जब हम किसी मरीज को तीन महीने वेंटिलेटर के सहारे जिंदा रख सकते हैं तो किसी प्लांट को क्यों नहीं। हम आर्टिफिशियल तरीके से ड्रैगन फ्रूट को तो उगा ही सकते हैं। इन सब को लेकर मैं रिसर्च कर ही रहा था कि मुझे आईआईएचआर बेंगलुरु के डॉ. करुणाकरण के बारे में पता चला जो ड्रैगन फ्रूट पर रिसर्च कर रहे थे। इसके बाद मैं उनसे मिला। उन्होंने बताया कि वियतनाम से सबसे ज्यादा ड्रैगन फ्रूट का इम्पोर्ट होता है और वहां के कई संस्थानों में इसकी खेती की ट्रेनिंग भी दी जाती है।’

इसके बाद श्रीनिवास ने वियतनाम के संस्थानों के बारे में जानकारी जुटाई और उन्हें मेल के माध्यम से बताया कि वे वहां आकर ड्रैगन फ्रूट के बारे में जानना चाहते हैं, इसे उगाने की प्रोसेस को समझना चाहते हैं। लेकिन कई दिन बाद उधर से कोई रिप्लाई नहीं मिला।

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