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हाथरस में गैंगरेप:उसकी रीढ़ की हड्डी तोड़ी, जीभ काट दी, 15 दिन सिर्फ इशारे से बताती रही,

दलित लड़की से हाथरस में गैंगरेप:उसकी रीढ़ की हड्डी तोड़ी, जीभ काट दी, 15 दिन सिर्फ इशारे से बताती रही, रात 3 बजे जिंदगी से जंग हार गई वो बेटी पिता कहते हैं – ये लोग गांव के ठाकुर हैं, ये लोग मेरी बेटी से दरिंदगी करने से पहले मेरे पिता से भी मारपीट कर चुके हैं, उनकी उंगलियां तक काट दी थी
पुलिस ने पहले सिर्फ हत्या का मामला दर्ज किया, एक व्यक्ति को अभियुक्त बनाया, दस दिन तक कोई गिरफ्तारी नहीं, पीड़िता का बयान लेने भी 5 दिन बाद पहुंचीउतर प्रदेश के हाथरस जिले में गैंगरेप की शिकार दलित लड़की आखिरकार जिंदगी से जंग हार गई। मंगलवार तीन बजे तड़के उसने दिल्ली के सफदरगंज अस्पताल में दम तोड़ दिया। 14 सितंबर को दरिंदों ने गैंगरेप के बाद उसकी जीभ काट दी थी, रीढ़ की हड्डी तोड़ दी थी। वह बाजरे के खेत में बेहोश मिली थी। तबियत बिगड़ने लगी थी तो उसे सोमवार को ही दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में इलाज के लिए लाया गया था। भास्कर रिपोर्टर पूनम कौशल सोमवार को सफदरगंज अस्पताल में उनके परिवार से मिली थीं। इस मुलाकात के 5-6 घंटे बाद ही पीड़िता की मौत हो गई थी। दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल की नई बनी इमारत के बाहर लोगों की भीड़ है। वहीं एक कोने में एक बुजुर्ग उदास बैठे हैं। उनके इर्द-गिर्द लोग जुटे हैं। कुछ को वो जानते हैं, कुछ को नहीं। कुछ उन्हें सांत्वना दे रहे हैं, कुछ ये भरोसा कि उनकी बेटी जिंदगी की जंग जीत जाएगी।

दो सप्ताह पहले उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले में गैंगरेप का शिकार हुई उनकी बेटी अस्पताल में वेंटीलेटर पर है। उसकी जीभ काट दी गई थी। रीढ़ की हड्डी टूटी हुई है। जिस्म पर कई गहरे जख्म हैं। दुपट्टे से उसका गला घोटा गया और उसे मरा जानकर छोड़ा गया।

उसके पास अभी कोई नहीं है। उसका छोटा भाई जो पिछले दो सप्ताह से उसकी देखभाल कर रहा है, दिल्ली पुलिस के जवानों के साथ गया है, जो ये देखने आए थे कि परिवार को अस्पताल में सुरक्षा मिली है या नहीं। पिता दीवार से कमर टिकाए गुमसुम बैठे हैं। लोग उनसे क्या कह रहे हैं इसका उन्हें बहुत ज्यादा होश नहीं है। मैं उनसे बात करने की कोशिश करती हूं तो वो कहते हैं कि मैं बहुत बोल नहीं पाऊंगा। मैं उनके पास ही बैठ जाती हूं।

कुछ देर बाद वो बोलना शुरू करते हैं। बेटी का नाम आते ही फफक पड़ते हैं। चेहरा मास्क से ढका था, आंखों में दर्द और डर साफ नजर आ रहा था। वो कहते हैं, ‘ये लोग गांव के ठाकुर हैं। ये लोग मेरी बेटी से दरिंदगी करने से पहले मेरे पिता से भी मारपीट कर चुके हैं। उनकी उंगलियां तक काट दी थी। इनकी मानसिकता पहले से ऐसी ही है। ये हमें डराते-धमकाते रहते थे, हम हमेशा बर्दाश्त करते और सोचते कि चलो जाने दो। अब इन्होंने हमारी बेटी के साथ ऐसा अत्याचार किया है।’वो बोलते-बोलते अचानक खामोश हो जाते हैं। खौफ उनके चेहरे पर तैरने लगता है। दलित संगठनों से जुड़े लोग उन्हें भरोसा देने की कोशिश करते हैं कि उन्हें और उनके परिवार को अब कुछ नहीं होगा। लेकिन उनका डर कम नहीं होता।

इसी बीच उनका सबसे छोटा बेटा हांफता हुआ आता है। उसका फोन दोपहर से ही बंद है। बहन की देखभाल, कागजों की लिखाई-पढ़ाई और अस्पताल में अलग-अलग जगहों के चक्कर काटने में उसे इतना भी समय नहीं मिला है कि कुछ देर रुककर अपना फोन भी चार्ज कर सके। उसके आते ही कई फोन बात करने के लिए उसे पकड़ा दिए जाते हैं। कुछ पारिवारिक रिश्तेदारों के हैं, कुछ पत्रकारों के, सभी बस वेंटिलेटर पर भर्ती उसकी बहन का हाल जानना चाहते हैं।

वो बताता है, ‘मैं 12 दिनों से घर नहीं गया हूं। बहन बोल नहीं पा रही है। बस वो आंखों से पहचान रही है। कभी-कभी इशारा करती है। उसकी हालत देखी नहीं जा रही है। मैं उसकी आवाज सुनने को बेचैन हूं। वो मौत से लड़ रही है।’

वो कहता है, ‘मैं नोएडा में रहकर काम करता था। फोन करता था तो बहन से बहुत बात नहीं हो पाती थी। वो घर के काम-धंधों में लगी रहती थी। अभी मैं कोशिश कर रहा हूं कि बहन से दो बातें हो जाएं तो वो बोल ही नहीं पा रही है क्योंकि उसकी जीभ कटी हुई है।’ 13 दिन अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के मेडिकल कॉलेज में इलाज कराने के बाद उसे एंबुलेंस के जरिए सोमवार को दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल लाया गया है।

14 सितंबर को हुआ क्या था?

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