किसान बिल पर राजनीति:जिन आढ़तियों को बिचौलिया बता रही है सरकार उन्हीं के पैसों से किसान बेटी की शादी से लेकर बच्चों की पढ़ाई का खर्च निकालता है, वरना उधार कौन देगा? आढ़ती किसानों को जो पैसा देते हैं उस पर ब्याज वसूला जाता है, यह ब्याज अमूमन 12% से लेकर 18% तक होता है
मानसा के किसान बीरबल सिंह कहते हैं, ‘आढ़तियों के बिना हमारा गुजारा नहीं है, एक बार तो हम अपनी फसल बेच कर पैसा खा लेंगे, लेकिन फिर आगे का क्या होगा‘सरकार किसानों को बिचौलियों से मुक्ति दिलाना चाहती है और बिचौलियों को खत्म करने के लिए ही नए कानून बनाए गए हैं।’ अखबार में छपी इन पंक्तियों को पढ़ते हुए राकेश कुमार गुस्से से भर जाते हैं और अखबार एक तरफ पटक देते हैं। उन्हें गुस्सा इसलिए आया, क्योंकि जिन बिचौलियों को खत्म करने की बात अखबार में लिखी गई है, वे उन्हीं कथित बिचौलियों में से एक हैं।’
60 साल के राकेश कुमार एक आढ़ती हैं और यही उनका पुश्तैनी काम है। पंजाब के मानसा जिले की पुरानी मंडी में करीब 70 साल पहले उनके दादा ने आढ़त का काम शुरू किया था। आज उनके आप-पास के करीब 300 किसान जुड़े हुए हैं जिनका पूरा बही-खाता उनके पास दर्ज है।
राकेश कहते हैं, ‘किसानों और आढ़तियों का रिश्ता दशकों पुराना है। उनके बिना हमारा गुजारा नहीं हो सकता और हमारे बिना उनका गुजारा नहीं है। दोनों दीया और बाती की तरह हैं जो एक-दूसरे के बिना अधूरे हैं। ये भाजपा सरकार आज हमें बिचौलिया बताकर खत्म करने की बात कर रही है, लेकिन यही लोग जब विपक्ष में थे तो इनकी बड़ी नेता सुषमा स्वराज ने संसद में हमारे और किसानों के रिश्ते की जम कर तारीफ की थी।’दिवंगत भाजपा नेता सुषमा स्वराज के जिस बयान की बात राकेश कर रहे हैं, वह इन दिनों सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है। 2012 में विदेशी पूंजी निवेश का विरोध करते हुए सुषमा स्वराज ने लोक सभा में कहा था, ‘ग्रामीण अर्थव्यवस्था कहती है कि बैंकों के एटीएम तो आज आए हैं, आढ़ती किसान का पारंपरिक एटीएम है।
किसान को बेटी की शादी करनी हो, बुआ का भात भरना हो, बहन का छुछक देना हो, बच्चे की पढ़ाई करानी हो, बाप की दवाई करानी हो, किसान सिर पे साफा बांधता है और सीधा मंडी में आढ़ती के यहां जाकर खड़ा हो जाता है। मैं पूछना चाहती हूं क्या वॉलमार्ट और टेस्को उसे (किसान को) उधार देगा? क्या उसे संवेदना होगी बेटी की शादी या बहन का भात भरने की?
उसे तो धोती और साफे वाले किसान से बदबू आएगी। कौन किसान से सीधा खरीदेगा? अरे नई एजेंसियां खड़ी होंगी, नए बिचौलिये खड़े हो जाएंगे। इसलिए ये कहना कि बिचौलिये को आप समाप्त कर देंगे, ये बात सिरे से गलत है।’ सुषमा स्वराज की कही यही बातें आज उन भाजपा नेताओं के लिए मुश्किल खड़ी कर रही हैं जो दावा कर रहे हैं कि नए कानून लागू होने से बिचौलिये खत्म हो जाएंगे।
मानसा आढ़तिया एसोसिएशन के अध्यक्ष मुनीश बब्बू दानेवालिया कहते हैं, ‘सबसे पहले तो हमें बिचौलिया शब्द से ही आपत्ति है। अगर हम बिचौलिये हैं तो ये तमाम पेट्रोल पंप वाले क्या हैं जो कमिशन पर काम करते हैं। ये सभी गैस एजेंसी वाले क्या बिचौलिये नहीं हैं? इनकी ही तरह हमारा काम भी कमिशन एजेंट का है। बल्कि आढ़त का काम तो इनसे कहीं ज्यादा पुराना और पारंपरिक है।’
आढ़त की व्यवस्था देश के कई राज्यों में है, लेकिन इसका सबसे मजबूत स्वरूप हरियाणा, पंजाब और राजस्थान में देखा जा सकता है। इन राज्यों में किसान लगभग पूरी तरह से ही आढ़तियों पर निर्भर होते हैं। यहां किसानों की सारी उपज आढ़तियों से होकर ही बिकती है और किसानों का सारा खर्च भी आढ़तियों से लिए गए पैसे से चलता है।
किसान की जमीन के आधार पर आढ़ती उन्हें पैसा देते हैं। पंजाब की बात करें तो यहां औसतन एक किले (एकड़) जमीन पर किसान को आढ़ती से पचास हजार तक की रकम मिलती है। इसी रकम से फिर किसान खेती की लागत में पैसा लगाता है और अपने बाकी खर्चे चलाता है। छह महीने बाद जब फसल तैयार होती है तो किसान फसल लेकर आढ़ती के पास आता है जिसे बेचकर आढ़ती अपना पैसा वसूलता है और फिर अगली फसल के लिए किसान को पैसा देता है।